मालती जोशी की प्रमुख कहानियों में चित्रित सामाजिक यथार्थ
मालती जोशी हिन्दी
कहानीकारों में से एक प्रमुख महिला कहानीकार ह | अपने कहानी साहित्य के द्वारा अपनी अलग पहचान बनाई है | मालती जी ने कहानी के साथ-साथ उपन्यास भी लिखे हैं |
मालती जोशी का जीवन परिचय : मालती जी का जन्म ४जून
१९३४ को औरंगाबाद,महाराष्ट्र में हुआ | मालती जोशी का जन्म मराठवाडा में होंने के कारण उन्होंने मराठी में साहित्य
सृजन किया,इतना ही नहीं बल्कि उनकी
मराठी में लिखी गई कृतियाँ पुरस्कृत भी हुई हैं | मालती जोशी की शिक्षा किसी
एक जगह पर पूरी नहीं हो पाई तो भी अपने अलग-अलग स्थानों से बी.ए. और एम.ए. हिन्दी तक की उपाधियाँ
प्राप्त की हैं |
मालती जोशी का रचना संसार : मालती जोशी ने प्रमुख रूप से कथा साहित्य ही
लिखा है जिसमें कहानी,उपन्यास और बालसाहित्य को सम्मिलित कर सकते हैं |
कहानी-साहित्य : मालती जोशी ने लगभग दस कहानी-संग्रह लिखें हैं | जो इस तरह हैं - ‘आखिरी शर्त’, ‘एक घर हो सपनों का’,’मालती जोशी की कहानियाँ’ ,’मध्यांतर’ , ‘अंतिम संक्षेप’ ,’बोल री कठ पुतली’ ,’मोरी रंग दी चुनरिया’, ‘पिया पीर न जानी’ ,’औरत एक रात है’ ,’शापित शैशव तथा अन्य
कहानियाँ’ |
उपन्यास साहित्य : मालती जोशी ने ‘पठाक्षेप’, ‘सहचारिणी’,’राग-विराग’, ‘पाषाण युग’, ‘समर्पण का सुख’ और ‘विश्वास गाथा’ आदि उपन्यासों का लेखन किया हैं |
बाल-साहित्य : मालती जोशी का बालसाहित्य इस प्रकार हैं – ‘दादी की घड़ी’ , ‘रिश्वत एक प्यारी सी’,’रंग बरसते खरबूज’,’बेचैन’, ‘सच्चा सिंगार’,’वही लड़की’ , ‘एक कर्ज : एक अदायगी’ आदि |
यथार्थ का अर्थ : अंग्रेजी के ‘Realisam’ को ही हिन्दी साहित्य में यथार्थवाद का पर्यायी रूप कहा जाता है | दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी वस्तु को उसके मूल
रूप में दिखाना या चित्रित करना यथार्थ है | यथार्थवाद की परिभाषा अनेक विद्वानों ने दी हैं | रामचन्द्र वर्मा जी कहा है कि –“ यथार्थवाद में आदर्शों का ध्यान छोड़कर उसी रूप में
कोई चीज या बात लोगों के सामने रखी जाती है जिस रूप में वह नित्य या प्रायः सबके
सामने आती रहती है | उसमे कर्ता न तो अपनी ओर से टिप्पणी करता है, न अपना दृष्टिकोण बतलाता
है और निष्कर्ष निकालने का काम दर्शकों या पाठकों पर छोड़ देता है |”1 वर्तमान साहित्य को सही
ढंग से समाज का चित्रण करने की क्षमता यथार्थवाद से ही मिली है | आज साहित्य के द्वारा जीवन के अनेक रूपों को
चित्रित किया जा रहा है | यथार्थवाद के बारे में डॉ. त्रिभुवन सिंह का कहना है कि, “जो साहित्यकार मानव जीवन
एवं समाज का सम्पूर्ण वास्तविक चित्र काल्पनिक संसार से न लेकर वास्तविक संसार से
लेता है,उसे ही हम यथार्थवादी साहित्यकार कह सकते हैं | यथार्थवादी कलाकार अपनी प्रतिभा के बल पर बाह्य
पदार्थो का यथातथ्य चित्र उपस्थित करता है | अत: इस प्रकार के चित्र प्रस्तुत करते समय वह अपनी
भावुकता तथा अनुभूतियों का सहारा लेता है उनको बाधक नहीं होने देता |“२ साहित्य समाज का दर्पण है
इसलिए समाज में घटित होने वाली हर घटना साहित्य के द्वारा साकार रूप धारण करती है | समाज में आ रहे बदलाव और
घटित घटनाओं को साहित्यकार अपनी रचना का विषय बनाता है | जिस साहित्य में समाज का चित्र न दिखता हो उसका कोई महत्व दिखाई नहीं देता |सामाजिक यथार्थवाद : सामाजिक यथार्थवाद में समाज की वास्तवता को अधिक
महत्व दिया जाता है | इसके संदर्भ में डॉ. त्रिभुवन सिंह लिखते है कि –“ समाज की वास्तविक अवस्था में किसी भी वस्तु का
तद्वत चित्र उतार देना श्रेष्ठ साहित्य के लिए हानिकारक होता है | साहित्यिक चित्र कैमेरे द्वारा लिया गया चित्र
नहीं होता,बल्कि वह साहित्यकार की
लेखनी द्वारा चित्रित किया गया ऐसा चित्र होता है कि जिसमें साहित्यकार के अनुभव
एवं कल्पना के सुंदर रंग ढले होते हैं | संक्षिप्त रूप में हम कह सकते हैं कि सामाजिक विषमताओं, भ्रष्टाचारों तथा वैयक्तिक
स्वार्थ से आक्रान्त , पीड़ित समाज की दयनीय परिस्थितियों को उसके
वास्तविक रूप में समाज के सामने प्रस्तुत करना सामाजिक यथार्थवाद का प्रधान लक्ष्य
है|”३ कुलमिलाकर कहा जा सकता है कि समाज जैसा है वैसा ही उसका
चित्रण किया जाए | समाज गुण दोषों का पुंज है उसमें से जो अवश्यक हो उसी का चित्रण किया जाना
चाहिए |
कहानियों में चित्रित सामाजिक यथार्थ : मालती जोशी एक सशक्त महिला कहानीकार है | उन्होंने अपनी कहानियों में हमेशा समाज के
यथार्थ का ही चित्रण किया है | समाज में जीवन जीते हुए जो अनुभूति उन्हें हुई उसी को अपनी कहानियों का आधार बनाया ऐसा कहा जाए तो कोई
अतिशोक्ति नहीं होगी | मालती जोशी की सभी कहानियों का उल्लेख करना यहाँ संभव नहीं हैं
इसलिए उनकी कुछ प्रमुख कहानियों को ही यहाँ उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा
रहा हैं |
रानियाँ : मालती जोशी के ‘बोल री कठपुतली’ इस कहानी-संग्रह में संकलित ‘रानियाँ ’ यह कहानी है | इस कहानी की नायिका वंदना है | जिन्होने समाजशास्त्र में पी-एच.डी. की है | वह समाजशास्त्र की
व्याख्याता थी, इसी के साथ उन्हें संगीत
का शौक होने के कारण वह संगीत के स्टेज प्रोग्राम भी करती थी | किसी प्रोग्राम में जब उसका गला खराब हुआ तो
उसे ठीक करने के लिए डॉ. कुमार के पास जाती है | डॉ कुमार ने उसका गला तो ठीक किया, इसी के साथ वे वंदना का संगीत प्रोग्राम देखने भी गए | वंदना डॉ. कुमार की कला रसिकता को देखकर अपना सबकुछ उन्हें
दे देती है मतलब उनसे प्यार करती है|
डॉ. कुमार की पत्नी चौथे बच्चे की माँ बन रही थी | जब वंदना को कुमार के बारे में पता चलता है तब
वह बेहोश हो जाती है | बाद में संभल कर उसके पत्नी का पता पुछकर कुमार
की पत्नी के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहती है कि “ जो औरत मन से, शरीर से इतना टूट गई हो, वह सौम्य और सुंदर कैसी
बनी रहे ? सुरुचि संपन्न होने के लिए
भी साधन चाहिए, समय और सुविधा चाहिए | अपने साथी का सहयोग और सहानुभूति चाहिए| कुमार तो उन्हें ससुराल की
खुला जेल में छोड़कर निश्चिंत हो गए | वह औरत पति की महती
आकांशाओं के लिए शहीद होती रही है और शहादत का तमगा ये लटकाए घूम रहे हैं |”४ डॉ.वंदना पढ़ी लिखी होकर भी वह कुमार को समझ नहीं पाई| आज ऐसी कहीं सारी महिला हैं, जो इसी तरह फँसती जा रही है
| लेखिका ने आज के समाज का यथार्थ इस कहानी के
माध्यम से प्रस्तुत किया है |
मालती जोशी
की सामाजिक यथार्थ की और एक कहानी है जिसका नाम ‘साथी’ है | जो ‘आखिरी शर्त’ इस कहानी संग्रह में संकलित है | ‘साथी’ इस कहानी में एक परिवार जिनके बच्चों की शादी एवं नौकरी के कारण माता-पिता को अकेलापन लगने लगता है | एक दिन उनका बेटा गाव आता है जो कलेक्टर है | वह उन्हें अपने साथ चलने को कहता है | जब माता-पिता उनके साथ जाते है | पिता अपनी डेढ़ सौ रूपये
की पेंशन पर जब तब अपनी बेटियों को बुला लेते थे | एक दिन कलेक्टर बेटे ने माँ से कहा कि “लड़कियों को बुलाने पर सौ खर्चे होते हैं | दोनों अपनी-अपनी ससुराल में नाम ऊँचा किए हुए हैं कि मेरा भाई कलेक्टर है | हर बार उनकी विदाई पाँच सौ से कम में नहीं पड़ती |”५ बेटे को घर में आए हुए मेहमान अच्छे नहीं लगते| पिता जी की देखभाल माँ को करना पढ़ता था | बाद में माँ को समझ में आता है की उनका रहना उन्हें
अच्छा नहीं लग रहा है | तो भी उन्हें मजबूरी से
वहाँ रहना पड़ता है | ऐसा चित्र आज भी हमें देखने को मिलता है | इसलिए कहना पड़ता है की मालतीजी की कहानियाँ समाजिक यथार्थ का दर्पण हैं | इसी तरह की उनकी अनेक
कहानियाँ है जिस में से कुछ प्रमुख कहानियों का नामोलेख्ख करता हूँ | जो इस प्रकार हैं – ‘मध्यांतर’, ‘मोहभंग’, ‘सती’ ,’आवारा बादल’ ,’मान-अपमान’ ,’मन हुआ धुआँ-धुआँ’ और ‘अक्षम्य’ आदि | कुलमिलाकर इतना ही कहा जा
सकता है कि मालती जोशी की कहानियां सामाजिक यथार्थ की दस्तावेज़ हैं |
संदर्भ-सूची :
१) रामचन्द्र वर्मा – मानस हिन्दी कोश, पृष्ठ संख्या - ४३५
२) डॉ. त्रिभुवन सिंह –हिन्दी उपन्यास और यथार्थ, पृष्ठ संख्या-४४
३) – वहीं -- पृष्ठ संख्या-२३१
४) मालती जोशी – रानियाँ , ‘बोल री कठपुतली’कहानी संग्रह,पृष्ठ संख्या-९३
५) मालती जोशी – साथी,‘आखिरी शर्त’ कहानी संग्रह,पृष्ठ संख्या-१०९