श्रीमद् भगवद्गीता के मूल्यपरक विचार
**भूमिका:**
श्रीमद् भगवद्गीता भारतीय दर्शन, अध्यात्म और धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसे महाभारत के भीष्म पर्व में सम्मिलित किया गया है। यह ग्रंथ जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार प्रस्तुत करता है और मनुष्य को नैतिकता, धर्म, कर्तव्य और योग के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। भगवद्गीता के उपदेश भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध के मैदान में दिए गए थे, जब अर्जुन कर्तव्य और धर्म के बीच उलझन में थे। इन उपदेशों में जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों की गहनता से चर्चा की गई है, जो आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक सही और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।
**1. धर्म और कर्तव्य:**
भगवद्गीता के प्रमुख मूल्य धर्म और कर्तव्य पर आधारित हैं। धर्म का अर्थ है नैतिकता, न्याय और सत्य का पालन करना। कर्तव्य का अर्थ है अपने सामाजिक, नैतिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाना।
**उदाहरण:**
भगवद्गीता के अध्याय 2, श्लोक 47 में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, न कि उसके फलों पर। इसलिए तुम कर्मफल की आकांक्षा मत करो और न ही निष्क्रियता की ओर झुको।"
यह श्लोक यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए बिना फल की चिंता किए। यह विचार जीवन में समर्पण और निस्वार्थता का महत्व बताता है।
**2. आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण:**
भगवद्गीता आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि हमें अपने इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए और अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।
**उदाहरण:**
अध्याय 6, श्लोक 5 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "मनुष्य को स्वयं द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए और स्वयं को नीचे गिरने नहीं देना चाहिए। आत्मा ही मनुष्य का मित्र है और आत्मा ही उसका शत्रु है।"
यह श्लोक आत्मसंयम और आत्मनियंत्रण का महत्व बताता है और हमें आत्मा के सच्चे स्वरूप को समझने के लिए प्रेरित करता है।
**3. योग और ध्यान:**
भगवद्गीता योग और ध्यान के महत्व पर बल देती है। यह सिखाती है कि योग के माध्यम से हम आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और मन की शांति पा सकते हैं।
**उदाहरण:**
अध्याय 6, श्लोक 6 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "जिसने अपने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन उसका मित्र है, लेकिन जिसने अपने मन को वश में नहीं किया है, उसके लिए मन उसका शत्रु है।"
यह श्लोक योग और ध्यान के माध्यम से मन को नियंत्रित करने का महत्व बताता है।
**4. ज्ञान और विवेक:**
भगवद्गीता ज्ञान और विवेक का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि सच्चा ज्ञान आत्मज्ञान है और इसे प्राप्त करने के लिए विवेक की आवश्यकता होती है।
**उदाहरण:**
अध्याय 4, श्लोक 38 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है। जो योग के माध्यम से सिद्ध हो चुका है, वह समय के साथ आत्मा में स्थित होकर इसे प्राप्त करता है।"
यह श्लोक ज्ञान और विवेक का महत्व बताता है और हमें आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
**5. निस्वार्थता और त्याग:**
भगवद्गीता निस्वार्थता और त्याग का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि हमें अपने कार्यों को निस्वार्थ भाव से करना चाहिए और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्याग देना चाहिए।
**उदाहरण:**
अध्याय 3, श्लोक 19 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "इसलिए, निस्वार्थ भाव से निरंतर अपना कर्तव्य करो, क्योंकि निस्वार्थ भाव से कर्म करते हुए व्यक्ति परम अवस्था को प्राप्त करता है।"
यह श्लोक निस्वार्थता और त्याग का महत्व बताता है और हमें अपने कर्तव्यों को निस्वार्थ भाव से करने के लिए प्रेरित करता है।
**6. समानता और समभाव:**
भगवद्गीता समानता और समभाव का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि हमें सभी के प्रति समान भाव रखना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में स्थिर रहना चाहिए।
**उदाहरण:**
अध्याय 6, श्लोक 9 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।
साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "जो व्यक्ति मित्र, शत्रु, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य, बन्धु, सज्जन और पापियों में समान बुद्धि रखता है, वह सर्वोत्तम है।"
यह श्लोक समानता और समभाव का महत्व बताता है और हमें सभी के प्रति समान भाव रखने के लिए प्रेरित करता है।
**7. मृत्यु और पुनर्जन्म:**
भगवद्गीता मृत्यु और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्पष्ट करती है। यह सिखाती है कि आत्मा अमर है और मृत्यु केवल शरीर का परिवर्तन है।
**उदाहरण:**
अध्याय 2, श्लोक 20 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "आत्मा का न कभी जन्म होता है और न कभी मृत्यु होती है। यह न तो पैदा होती है और न ही मरती है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारी जाती।"
यह श्लोक आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्पष्ट करता है।
**8. भक्ति और समर्पण:**
भगवद्गीता भक्ति और समर्पण का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि भगवान की भक्ति और समर्पण से हम मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
**उदाहरण:**
अध्याय 9, श्लोक 22 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "जो लोग अनन्य भाव से मेरी भक्ति करते हैं और मुझे निरंतर सोचते हैं, मैं उनके योगक्षेम की व्यवस्था करता हूँ।"
यह श्लोक भक्ति और समर्पण का महत्व बताता है और हमें भगवान की भक्ति और समर्पण के लिए प्रेरित करता है।
**9. संकल्प और आत्मविश्वास:**
भगवद्गीता संकल्प और आत्मविश्वास का महत्व बताती है। यह सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं।
**उदाहरण:**
अध्याय 3, श्लोक 30 में भगवान कृष्ण कहते हैं:
"मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः॥"
इस श्लोक का अर्थ है: "सभी कर्मों को मुझमें समर्पित करके, आत्मा में स्थिर होकर, निराशा और ममता को छोड़कर, तू युद्ध कर, सभी संदेहों को त्याग कर।"
यह श्लोक संकल्प और आत्मविश्वास का महत्व बत
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