मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

लाल बहादुर शास्त्री


श्री लाल बहादुर शास्त्री 


 लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री और सादगी, कर्तव्यपरायणता तथा साहस के प्रतीक थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी का जीवन बेहद साधारण था, लेकिन उनके विचार और कर्म असाधारण थे। उन्होंने देश के प्रति अपने समर्पण से भारतीय राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ी।


शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा था। उनके पिता का निधन तब हो गया था, जब वे केवल डेढ़ वर्ष के थे। परिवार की आर्थिक स्थिति कठिन थी, फिर भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और "शास्त्री" की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री जी की सादगी और विनम्रता उनके जीवनभर के गुण रहे।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शास्त्री जी का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा। उन्होंने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कार्य किया और जेल भी गए। उनकी दृढ़ता और साहस ने उन्हें कांग्रेस के भीतर एक प्रभावशाली नेता बना दिया। 1952 में वे रेल मंत्री बने, जहाँ उन्होंने सादगी और ईमानदारी के नए मानदंड स्थापित किए।


शास्त्री जी का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 1964 में नेहरू जी के निधन के बाद, उन्होंने देश की बागडोर संभाली। शास्त्री जी का कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा था। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्होंने देश को एकजुट रखा और "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया। यह नारा शास्त्री जी की गहरी समझ और देश के जवानों और किसानों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।


उनका यह नारा एक प्रेरणादायक काव्यात्मक शैली में गूंजता है:


"जय जवान, जय किसान,

देश की शान, देश की जान।

सीमा पर रक्षा के प्रहरी,

खेतों में अन्नदाता महान।"


शास्त्री जी का यह नारा आज भी भारतीय समाज में उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस समय था। उन्होंने देश की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के बीच गहरा संबंध स्थापित किया। शास्त्री जी ने हरित क्रांति को प्रोत्साहित किया और भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।


उनकी सादगी, ईमानदारी और देश के प्रति अटूट समर्पण को देखकर एक प्रसिद्ध काव्य पंक्ति याद आती है:


"सादा जीवन, उच्च विचार,

लाल बहादुर के सच्चे संस्कार।"


शास्त्री जी का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 1965 के युद्ध के बाद ताशकंद समझौता करने के लिए वे पाकिस्तान गए, जहाँ 11 जनवरी 1966 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।


लाल बहादुर शास्त्री का जीवन न केवल सादगी और विनम्रता का उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि एक सामान्य व्यक्ति भी दृढ़ निश्चय और कर्तव्यपरायणता के बल पर राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकता है। उनके योगदान को भारत कभी नहीं भुला सकता।


शास्त्री जी के जीवन की इस प्रेरणा को संजोते हुए हम यही कह सकते हैं:


"तेरा नाम रहेगा इतिहास में,

लिखेगा तुझको जमाना।

तेरी मेहनत, तेरी साधना,

भारत मां का है यह नज़राना।"


लाल बहादुर शास्त्री आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति और सादगी की मिसाल के रूप में जीवित हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंति पर उन्हें शत-शत नमन।




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