बुधवार, 2 जुलाई 2025

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

यह पाठ लेखक अनुपम मिश्र द्वारा लिखित है। वे पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले महान विचारक थे। उनकी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ लोगों को बहुत पसंद आई है। उन्होंने सिखाया कि पुराने तालाबों की मरम्मत और जलस्रोतों की रक्षा कैसे की जाए ताकि हम पानी की इस बड़ी समस्या से बाहर आ सकें।

यह पाठ हमें पानी की असली अहमियत और उसके उपयोग के तरीकों के बारे में बहुत आसान भाषा में समझाता है। स्कूल में हम जल-चक्र के बारे में पढ़ते हैं — कैसे सूरज की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों में बदल जाता है, फिर बारिश होती है और पानी नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र तो किताबों में बहुत सुंदर लगता है, पर असली ज़िंदगी में पानी का यह चक्कर अब गड़बड़ हो गया है।

अब हमारे नलों में पानी हमेशा नहीं आता। कई बार पानी बहुत देर रात या सुबह-सुबह आता है। सबको नींद छोड़कर बाल्टियाँ, घड़े भरने पड़ते हैं। कई बार इसी पानी को लेकर झगड़े भी हो जाते हैं। कुछ लोग नलों में मोटर लगाकर ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे दूसरे घरों में पानी नहीं पहुँचता। मजबूरी में सब यही करने लगते हैं और फिर समस्या और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब पानी भी बोतलों में बिकने लगा है। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में गर्मी में पानी की बहुत किल्लत हो जाती है और कई जगह तो हालत अकाल जैसी हो जाती है।

लेकिन जब बारिश होती है, तब सड़कों, घरों, स्कूलों में पानी भर जाता है। रेल की पटरियाँ भी डूब जाती हैं। देश के कई हिस्सों में बाढ़ आ जाती है। यानी कभी बहुत पानी और कभी बिल्कुल नहीं — ये दोनों परेशानियाँ एक ही समस्या के दो रूप हैं। अगर हम समझदारी से काम लें, तो इन दोनों मुश्किलों से बच सकते हैं।

इस पाठ में एक सुंदर उदाहरण दिया गया है गुल्लक का। जैसे हम पैसे जोड़ने के लिए गुल्लक में बचत करते हैं, वैसे ही हमें पानी की भी बचत करनी चाहिए। धरती एक बड़ी गुल्लक की तरह है। बारिश के समय जो तालाब, झीलें, कुएँ आदि हैं, वो इस गुल्लक को भरने का काम करते हैं। बारिश का पानी धीरे-धीरे ज़मीन में जाता है और हमारे लिए भूजल का खजाना बनाता है। यही पानी हम पूरे साल इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन हमने गलती की। ज़मीन के लालच में हमने तालाबों को मिटा दिया, कचरा भर दिया, वहाँ मकान, बाज़ार बना दिए। अब गर्मी में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं। इसीलिए हमें फिर से अपने जलस्रोतों की देखभाल करनी होगी — तालाबों, झीलों, नदियों की रक्षा करनी होगी। अगर हम जल-चक्र को समझकर बारिश के पानी को सँभालेंगे, भूजल को सुरक्षित रखेंगे, तो कभी भी पानी की कमी नहीं होगी। वरना हम हमेशा इस पानी के चक्कर में फँसे रहेंगे।

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