मंगलवार, 14 सितंबर 2021

*क्रोध मनुष्य का अवगुण*

           *क्रोध मनुष्य का अवगुण*

                           


 मानव अन्य प्राणियों के अपेक्षा अधिक बुद्धिमान माना जाता है। ईश्वर द्वारा मनुष्य को सोचने समझने के लिए बुद्धि दी है, इतना ही नहीं स्मृति की विलक्षण शक्ति मनुष्य के पास है। इसी के आधार पर वह किसी भी  घटना को वह अधिक समय तक अपने दिमाग में रखता है। इन घटनाओं में  कुछ अच्छी घटनाएं होती है, कुछ बुरी घटनाएं भी इसमें रहती है। 


          मनुष्य का स्वाभाविक गुण-धर्म यह है कि वह सुखदायक घटनाओं को अपने स्मृति पटल पर अधिक समय तक रखता है। इसी  के साथ-साथ कुछ अप्रिय घटनाएं भी होती है । जो न चाहते हुए भी जीवन में आ जाती है।

    मनुष्य के अंदर कुछ स्थायी भाव होते हैं, तो कुछ संचारी भाव भी रहते हैं वो काम, क्रोध, मोह, माया, मत्सर आदि संचारी भाव हैं। इनका वास्तव्य मनुष्य के जीवन में अधिक समय तक नहीं रहता, परंतु इसका प्रभाव अधिक होता है। क्रोध से आदमी अपने आप को भूल जाता है। क्रोध में वह कुछ भी कर देता है।परंतु क्रोध की अग्नि ऐसी है जो मनुष्य को जिंदा जलाती है।

      क्रोध के कारण आदमी का सोचना भी बंद हो जाता है। इस के संदर्भ में इंगरसोल का कहना है कि " क्रोध मस्तिष्क के दीपक को बुझा देता है।" इसका आशय यह है कि क्रोध की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि वह विचार करने की प्रक्रिया को भी बंद कर देती है।

         क्रोध कहां से शुरू होता है इस बारे में पाश्चात्य विचारक पाइथागोरस  ने लिखा है कि "क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है।" यह बात बहुत ही तर्क संगत लगती है। क्रोध मूर्खता की निशानी है क्रोध बेवजह होता है। इसके कारण आदमी के शारीरिक और मानसिक शक्ति पर बुरा परिणाम पड़ता है।

       क्रोध से क्या-क्या होता है? किन दुष्परिणामों का सामना मनुष्य को करना पड़ता है? इस के संदर्भ में भगवान श्री कृष्ण के विचार बड़े ही प्रेरक  है । उनका कहना है कि " क्रोध से मूढता उत्पन्न होती है, मूढता से स्मृति का नाश हो जाता है, और बुद्धि के नष्ट हो जाने पर प्राणी समय नष्ट हो जाता है " 

     बुद्धि ही मनुष्य की अद्भुत शक्ति है। इसी के बल पर आदमी ने असाध्य को भी साध्य कर दिया है। यही बुद्धि समाप्त होगी तो मनुष्य और जानवर में कोई अंतर नहीं दिखाई देगा। इसीलिए तो क्रोधी व्यक्ति क्रोध में कुछ भी कर बैठता है। इसके परिणाम बड़े ही भयानक होते हैं।

   क्रोध के संदर्भ में युधिष्ठिर ने कहा है कि "बुद्धिमानों ने अपनी लौकिक उन्नति पारलौकिक के सुख और मुक्ति प्राप्त करने के लिए  क्रोध पर विजय प्राप्त की है।

    इन विचारों से हमें सीख मिलती है,कि अपना विकास, सुख, आनंद प्राप्त करने के लिए क्रोध को समाप्त करना आवश्यक है।

 क्रोध किस को अधिक आता है? इसके संदर्भ में रवींद्रनाथ ठाकुर जी का कहना है ," जो मन की पीड़ा को स्पष्ट रुप में कह नहीं सकता उसी को क्रोध आता है" इनके विचार बड़े ही मार्मिक लगते हैं।

         क्रोध जब नम्रता का रूप धारण कर लेता है तब क्या होता है? इसके संदर्भ में सुदर्शन जी ने लिखा है " जब क्रोध नम्रता का का रूप धारण कर लेता है तो अभिमान भी सिर झुका लेता है। नम्रता मनुष्य का अलंकार है। नम्रता में इतनी अधिक शक्ति होती है कि वह मनुष्य को ऊंचाई के शिखर पर पहुंचा देती है । 

   क्रोध  के संदर्भ में महात्मा गांधी जी के विचार है " क्रोध एक प्रचंड अग्नि है, जो मनुष्य इस अग्नि को वश में कर सकता है,वह उसको बुझा देगा। जो मनुष्य अग्नि को वश में नहीं कर सकता वह स्वयं अपने को जला देगा।"

     क्रोधाग्नि शरीर के अंदर होती है। बाहर लगी हुई आग को बुझाने में अन्य भी सहायक होंगे। परंतु आंतरिक अग्नि को बुझाने की क्षमता स्वयं मनुष्य के अंदर होती है। कब वह अपना परिचय करवाएगा इसको हम कह नहीं सकते।

    क्रोध का क्या परिणाम होता है? इसके बारे में हमने विचार किया है, परंतु इन विचारों की साक्ष हमें पुरानो एवं इतिहास में भी मिलते हैं। अनेक वर्षों की तपश्चर्या, साधना कुछ क्षण क्रोध करने से समाप्त हो चुकी है। क्रोध से लंका का नाश हुआ। क्रोध मानव की कमजोरी है। क्रोध मनुष्य का सही परीक्षक है।

           एक चीनी कहावत है जिसका आशय इस प्रकार है "जिस क्रोधाग्नि को तुम शत्रु के लिए प्रज्वलित करते हो, वह बहुधा तुम्हें ही अधिक जलाती है।"  इससे हमें यह सीख मिलती है कि भलाई का फल भला और बुराई का फल बुरा ही होता है। इसलिए हमेशा हमें अच्छे विचार करने चाहिए।

       क्रोध को किस प्रकार कम किया जा सकता है?  क्रोध को कम करने की औषधि कौन सी है?  इसके बारे में जेफरसन ने एक बहुगुणी औषधि बनाई है। उनका कहना है,कि जब क्रोध में हो तो दस बार सोच कर बोलिए, जब ज्यादा क्रोधित अवस्था में हो तो हजार बार सोचिए।" इनका आशय यही है कि मनुष्य को सोच समझकर बोलना चाहिए। कोई कार्य करने से पहले उसके परिणाम के बारे में सोचना चाहिए। तभी हम गलत विचार या कार्य नहीं करेंगे।         


       क्रोध ऐसा अवगुण है, जो कितना भी सोचने, समझने के बाद भी कहीं न कहीं दिखाई देता है। क्रोध यौवन  की तरह हमेशा युवा ही रहती है। बूढ़े मनुष्य को क्रोध आया तो वह जवान की तरह अपना रूप बना लेता है। क्रोध के कारण मनुष्य में शक्ति आ जाती है । क्रोध की जगह यत्र तत्र सर्वत्र है । यह बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी में दिखता है । हर मनुष्य इस क्रोध रूपी राक्षस से बचना चाहता है। क्रोध से अपनी आत्मरक्षा करना चाहता है । यदि आप आत्मरक्षा करना चाहते हैं तो अपने क्रोध को संभाल ले। ऐसा न करने पर क्रोध आपका नाश कर देगा।

    क्रोध के संदर्भ में वेदव्यास जी के विचार बड़े ही मार्मिक लगते हैं। वे कहते हैं ,"किसी के प्रति मन में क्रोध लिए रहने की अपेक्षा उसे तत्क्षण  प्रकट कर देना अधिक अच्छा है। जैसे क्षण भर में जल जाना देर तक सुलगन से अधिक अच्छा है ।" इनका यही कहना है कि क्रोध तो अपने अंदर जगह मत दो । किसी कारणवश आ भी जाता है तो उसे बाहर निकाल दो । 

   क्रोध के सिंहासन पर बैठते ही बुद्धि वहां से खिसक जाती है । खुद का किसी के साथ भी कोई संबंध नहीं रहता। क्रोध के कोई सगे संबंधी नहीं होते। वह किसी को भी  अपना रूप दिखाता है। 


    क्रोध के संदर्भ में महात्मा बुद्ध जी ने कहा है कि, "जो मानव मन में उठे हुए क्रोध को दौड़ते हुए रथ के समान शीघ्र रोक लेता है, उसी को मैं सारथी समझता हूँ। क्रोध के अनुसार चलने वाले को केवल लगाम रखने वाला मात्र कहा जा सकता है। 

       क्रोध के कुकर्मों का इतिहास बहुत बड़ा है। उन उदाहरणों को यहाँ पर देना मैंने उचित नहीं समझा। क्रोध से बचने के लिए हमेशा प्रयास कीजिए और अपने मानव जीवन का कल्याण करें।


               श्री डी.बी.देवकत्ते

        प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (हिंदी)

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