अनुच्छेद लेखन
मानव मन में नाना प्रकार के भाव-विचार आते-जाते रहते हैं। किसी विषय विशेष से संबंधित भावों-विचारों को सीमित शब्दों में लिखते हुए एक अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है।
अनुच्छेद लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- अनुच्छेद लेखन में मुख्य विषय से भटकना नहीं चाहिए।
- व्यर्थ के विस्तार से बचने का प्रयास करना चाहिए।
- वाक्यों के बीच निकटता और संबद्धता होनी चाहिए।
- भाषा प्रभावपूर्ण और प्रवाहमयी होनी चाहिए।
- छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
- भाषा सरल, बोधगम्य और सहज होनी चाहिए।
- अनुच्छेद लेखन उतने ही शब्दों में करना चाहिए जितने शब्द में लिखने का निर्देश दिया गया हो। उस शब्द-सीमा से 5 या अधिक शब्द होने से फर्क नहीं पड़ता है।
- अनुच्छेद पढ़ते समय लगे कि इसमें लेखक की अनुभूतियाँ समाई हैं।
- आजकल परीक्षा में अनुच्छेद लेखन के लिए शीर्षक और उससे संबंधित संकेत बिंदु दिए गए होते हैं। इन संकेत बिंदुओं को ध्यान में रखकर अनुच्छेद लेखन करना चाहिए। इन संकेत बिंदुओं को अनदेखा करके अनुच्छेद-लेखन करना हितकर नहीं होगा। इसस अक कम हान का सभावना बढ़ जाती है।
- उदाहरण -
- एकल परिवार का बढ़ता चलन
- एकल परिवार और वर्तमान समाज
- संयुक्त परिवार की आवश्यकता
- बुजुर्गों की देखभाल
- एकाकीपन को जगह नहीं।
- 2.ग्लोबल वार्मिंग-मनुष्यता के लिए खतरा
- ग्लोबल वार्मिंग क्या है ?
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण
- ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
- समस्या का समाधान।
गत एक दशक में जिस समस्या ने मनुष्य का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वह है-ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सा अर्थ है है-धरती के तापमान में निरंतर वृद्धि। यद्यपि यह समस्या विकसित देशों के कारण बढ़ी है परंतु इसका नुकसान सारी धरती को भुगतना पड़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारणों के मूल हैं-मनुष्य की बढ़ती आवश्यकताएँ और उसकी स्वार्थवृत्ति। मनुष्य प्रगति की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होकर पर्यावरण को अंधाधुंध क्षति पहुँचा रहा है। कल-कारखानों की स्थापना, नई बस्तियों को बसाने, सड़कों को चौड़ा करने के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई है।
इससे पर्यावरण को दोतरफा नुकसान हुआ है तो इन गैसों को अपनाने वाले पेड़-पौधों की कमी से आक्सीजन, वर्षा की मात्रा और हरियाली में कमी आई है। इस कारण वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर धरती की सुरक्षा कवच ओजोन में छेद हुआ है तो दूसरी ओर पर्यावरण असंतुलित हुआ है। असमय वर्षा, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सरदी-गरमी की ऋतुओं में भारी बदलाव आना ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है।
(संकलन)
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