बाज और साँप का संवाद
बाज: अरे साँप! तुम हमेशा ज़मीन पर ही क्यों रहते हो? उड़ने का आनंद लो!
साँप: मुझे ज़मीन पर रहना पसंद है, यह मेरी प्रकृति है।
बाज: लेकिन ऊँचाई से दुनिया देखने का अलग ही मज़ा है!
साँप: और ज़मीन से जुड़े रहने का भी अपना महत्व है।
बाज: शायद सही कह रहे हो, हर किसी की दुनिया अलग होती है।
साँप: हाँ, और हमें अपनी विशेषताओं को स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए।
(दोनों अपने रास्ते चले जाते हैं, अपनी-अपनी सोच के साथ।)
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