कहानी: "चिंटू की एक रूपया वाली गुल्लक"
चिंटू एक नन्हा सा बच्चा था, जो गाँव के सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ता था। उसका सपना था – अपनी माँ को एक बड़ी लाल साड़ी दिलाने का। लेकिन चिंटू जानता था कि उसके पास पैसे नहीं हैं। फिर भी उसने हार नहीं मानी।
एक दिन उसके पिता ने उसे एक पुरानी गुल्लक दी और कहा, "हर दिन एक रूपया इसमें डालना, देखना सपना जरूर पूरा होगा।" चिंटू ने उसी दिन से एक-एक रूपया जमा करना शुरू कर दिया। कभी बर्तन धोकर, कभी चाय लाकर, वह ईमानदारी से पैसे जोड़ता रहा।
साल भर में उसकी गुल्लक भर गई। जब उसने उसे फोड़ा, तो उसमें पूरे 365 रुपये निकले। वह दौड़कर बाज़ार गया और अपनी माँ के लिए एक सुंदर लाल साड़ी खरीद लाया।
जब उसकी माँ ने वह साड़ी देखी, उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने चिंटू को गले लगा लिया और कहा, "तू तो मेरा सबसे बड़ा खज़ाना है!"
इस कहानी से बच्चों को यह सिखने को मिलता है कि
👉 सपने बड़े हों या छोटे, अगर हम धैर्य, मेहनत और ईमानदारी से प्रयास करें, तो वे जरूर पूरे होते हैं।
और सबसे जरूरी – माँ-बाप को खुश करना सबसे बड़ा उपहार होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें