शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

पालकत्व

 पालकत्व



पालकत्व म्हणजे फक्त मुलांना जन्म देणे नव्हे, तर त्यांचे संगोपन, शिक्षण, मार्गदर्शन आणि उत्तम व्यक्तिमत्त्व घडवण्याची प्रक्रिया आहे. पालक हे मुलांचे पहिले गुरु असतात आणि त्यांच्यावर मुलांच्या आयुष्याच्या प्रत्येक टप्प्यावर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पडतो. योग्य संस्कार, मुलांच्या गरजा, त्यांच्या भावना, आणि त्यांची स्वप्ने समजून घेणे हे पालकत्वाचे मर्म आहे.


पालकत्वाची भूमिका फक्त मुलांच्या भौतिक गरजा पुरवण्यातच मर्यादित नाही, तर त्यांच्या मानसिक आणि भावनिक विकासातही ते महत्त्वाचे आहे. मुलांना योग्य मार्गदर्शन देण्यासाठी पालकांना स्वतःही सतत शिकावे लागते आणि काळानुसार आपली विचारधारा बदलावी लागते. मुलांमध्ये जबाबदारीची जाणीव, आत्मविश्वास, आणि आत्मनिर्भरता विकसित करणे हे पालकत्वाचे महत्वाचे उद्दिष्ट आहे. पालकांनी आपल्या मुलांना स्वातंत्र्य देणे, त्यांना त्यांच्या निर्णयांच्या चांगल्या-वाईट परिणामांची अनुभूती येऊ देणे, हे त्यांच्या आत्मविकासासाठी आवश्यक आहे.


यशस्वी पालकत्वात प्रेम, समजूतदारपणा, संयम आणि सहानुभूती या चार गुणांचा समावेश असतो. योग्य मार्गदर्शन, समर्थन, आणि कधी कधी कठोर निर्णय घेण्याची तयारी यांद्वारे पालक आपल्या मुलांना जीवनात सर्वांगीण यश मिळवण्यासाठी सक्षम बनवू शकतात. शेवटी, पालकत्व ही एक सतत शिकण्याची आणि आनंद घेण्याची प्रक्रिया आहे, जिथे पालक आपल्या मुलांच्या यशस्वी जीवनाचे आनंददायक साक्षीदार बनतात.


शिक्षकत्व

 शिक्षकत्व 

शिक्षकत्व एक पवित्र और जिम्मेदारीपूर्ण कार्य है, जो समाज को दिशा देने और उसे सभ्य, शिक्षित और सुसंस्कृत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिक्षक केवल ज्ञान का संचारक नहीं होता, बल्कि वह बच्चों में नैतिक मूल्यों, आत्मविश्वास और अनुशासन का संचार भी करता है। शिक्षक अपने छात्रों की शिक्षा और व्यक्तित्व निर्माण में एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। शिक्षक का कर्तव्य होता है कि वह छात्रों को कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित करे, उनके भीतर प्रश्न पूछने की प्रवृत्ति और ज्ञान के प्रति जिज्ञासा को बढ़ावा दे। शिक्षक अपनी मेहनत, धैर्य और ज्ञान से छात्रों को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाता है, और उनके भविष्य की नींव रखता है। सही मायनों में शिक्षक समाज का निर्माता और मार्गदर्शक होता है।


बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

कोजागिरी पूर्णिमा का महत्व

 कोजागिरी पूर्णिमा का महत्व 



कोजागिरी पूर्णिमा, जिसे शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह आश्विन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है और विशेष रूप से चंद्रमा की रोशनी का महत्त्व दर्शाती है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ आकाश में विराजमान होता है और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस रात में चंद्रमा की रोशनी में रखे गए दूध और खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।


कोजागिरी पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धालु रात भर जागरण करते हैं और यह मान्यता है कि देवी लक्ष्मी घर-घर घूमकर यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है और उसे धन-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। 'कोजागिरी' का अर्थ भी "कौन जाग रहा है" से है। इस दिन को आध्यात्मिक, स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टिकोण से शुभ माना जाता है। लोग अपने परिवार और मित्रों के साथ मिलकर इस पर्व का आनंद लेते हैं और खीर तथा अन्य मिठाइयों का भोग लगाते हैं। thus, कोजागिरी पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक विशेष स्थान रखती है।


गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस

 विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस


विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हर वर्ष 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक प्रयासों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। यह दिन उन मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है, जिनसे दुनिया भर के लाखों लोग प्रभावित होते हैं। मानसिक स्वास्थ्य केवल मानसिक बीमारियों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह हमारे सोचने, महसूस करने और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह हमारे जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है और शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है।


दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं की गंभीरता लगातार बढ़ती जा रही है। तनाव, चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक विकार आज के आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। समाज में तेजी से होते परिवर्तन, प्रतिस्पर्धा, काम का दबाव और व्यक्तिगत जीवन में अस्थिरता के कारण मानसिक समस्याओं की दर बढ़ रही है। यह चिंताजनक है कि बहुत से लोग मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को नजरअंदाज करते हैं और इसे किसी प्रकार की कमजोरी या शर्मिंदगी मानते हैं। इस कारण से लोग अपनी मानसिक स्थिति के बारे में खुलकर बात नहीं करते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का एक मुख्य उद्देश्य इस कलंक को समाप्त करना है, ताकि लोग बिना किसी झिझक के अपनी समस्याओं के बारे में बात कर सकें और समय पर मदद प्राप्त कर सकें। जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न संगठनों द्वारा इस दिन सेमिनार, वर्कशॉप और रैलियों का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने और समाधान प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सही दृष्टिकोण अपनाने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि यह शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। सही खान-पान, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद और स्वस्थ जीवनशैली मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में सहायक हो सकते हैं। साथ ही, किसी भी प्रकार की मानसिक समस्या महसूस होने पर तुरंत विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए।


अंत में, हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा, जहां लोग मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को समझें, इन पर खुलकर चर्चा करें और एक-दूसरे की मदद करें। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस हमें यह याद दिलाता है कि मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और इससे जुड़े हर पहलू पर ध्यान देना अनिवार्य है। जब हम मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देंगे, तभी हम एक स्वस्थ और खुशहाल समाज का निर्माण कर पाएंगे।


बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

रतन टाटा का जीवन: एक प्रेरणादायक यात्रा

रतन टाटा का जीवन: एक प्रेरणादायक यात्रा


रतन टाटा, भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक, अपने सरल स्वभाव, नेतृत्व कौशल और दयालु दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। उनका जन्म 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में हुआ था। टाटा परिवार के एक धनी और प्रतिष्ठित घराने में जन्मे रतन टाटा को बचपन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। उनका पालन-पोषण उनकी दादी ने किया, जिन्होंने उनमें सहनशीलता, सादगी और विनम्रता के गुणों का संचार किया।


रतन टाटा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में की और इसके बाद उन्होंने कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर की पढ़ाई की। इसके बाद, उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम किया। पढ़ाई पूरी करने के बाद रतन टाटा 1962 में टाटा समूह से जुड़े और अपने करियर की शुरुआत टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम करते हुए की। उन्होंने सबसे पहले एक सामान्य कर्मचारी के रूप में काम किया, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठन के प्रति उनके समर्पण का पता चला।


1991 में रतन टाटा को टाटा समूह का चेयरमैन नियुक्त किया गया। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर विस्तार किया और कई महत्वपूर्ण अधिग्रहण किए। इनमें से सबसे प्रमुख था 2007 में ब्रिटिश स्टील कंपनी कोरस और 2008 में प्रतिष्ठित जैगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण। इन सौदों ने टाटा समूह को एक वैश्विक पहचान दिलाई और कंपनी की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।


रतन टाटा ने न केवल कंपनी का विस्तार किया, बल्कि उन्होंने टाटा समूह की समाजसेवा की परंपरा को भी आगे बढ़ाया। उनके नेतृत्व में टाटा ट्रस्ट ने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में कई परियोजनाएं चलाईं। इसके अलावा, रतन टाटा ने अपने जीवन में एक महत्वपूर्ण सामाजिक पहल करते हुए ‘टाटा नैनो’ का निर्माण कराया। इस किफायती कार का उद्देश्य भारत के निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों को एक सस्ती और सुरक्षित परिवहन सुविधा प्रदान करना था।


उनकी सादगी और विनम्रता हमेशा से प्रेरणादायक रही है। वे अपनी निजी जिंदगी में बेहद सरल और सादगीपूर्ण जीवन जीते हैं। रतन टाटा को न केवल उनके व्यावसायिक कौशल के लिए बल्कि उनके मानवीय दृष्टिकोण और समाज सेवा के प्रति समर्पण के लिए भी जाना जाता है। 2012 में उन्होंने टाटा समूह के चेयरमैन पद से सेवानिवृत्ति ले ली, लेकिन आज भी वे समूह के विभिन्न कार्यों में परामर्शदाता के रूप में सक्रिय हैं।


रतन टाटा को देश और विदेश से कई सम्मान मिले हैं, जिनमें भारत सरकार द्वारा दिया गया 'पद्म विभूषण' और 'पद्म भूषण' शामिल है। उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो न केवल व्यावसायिक सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाना चाहते हैं।


रतन टाटा के नेतृत्व, उनके मूल्यों और उनके सामाजिक योगदान ने उन्हें एक आदर्श व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सफलता वही है, जो दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में सहायक हो।

रतन टाटा के निधन पर उन्हें शत-शत नमन।


मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

ईमेल लेखन

 ईमेल लेखन 

  1. छात्रों के लिए अधिक खेल-सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध करते हुए अपने प्रधानाचार्य महोदय को xyzschool@gmail.com पर एक ईमेल लिखिए।

    From: mohan@mycbseguide.com
    To: xyzschool@gmail.com
    CC …
    BCC …
    विषय – अधिक खेल सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध
    महोदय,
    जैसा कि आपको विदित है कि आगामी मास में जिले स्तर पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होने वाला है जिसमें हमारा विद्यालय भी भाग ले रहा है। हालांकि उपलब्ध साधनों से हमने अभ्यास किया है किन्तु वह पर्याप्त नहीं है। यह अनुरोध हम आपसे कर रहे हैं कि कृपया खिलाड़ियों की खेल सुविधाओं एवं सामग्री में कोई कमी न की जाए तथा खेल गतिविधियों हेतु अधिक फंड निधि की व्यवस्था की जाए ताकि आने वाली प्रतियोगिता में हम बेहतर प्रदर्शन कर सकें और विद्यालय का नाम रौशन कर सकें।
    आशा है आप हम खिलाड़ियों के इस अनुरोध को स्वीकार करने की कृपा करेंगे।                                            भवदीय                                              मोहन

ईमेल लेखन

 

  1. आपके शहर में सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों में मिलावट का धंधा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अपने राज्य के खाद्य-मंत्री को dfpd@gov.in पर एक ईमेल लिखकर इस समस्या के प्रति उनका ध्यान आकृष्ट कीजिए।

    From: pawan@mycbseguide.com
    To: dfpd@gov.in
    CC …
    BCC …
    विषय – खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या के सन्दर्भ में
    महोदय,
    आप भली-भांति जानते है कि त्योहारों का मौसम आ पहुँचा है जिसमें खाद्य पदार्थों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस समय बाजार में खाद्य पदार्थों की माँग बहुत बढ़ जाती है और उनकी पूर्ति करने के लिए मिलावट करने वालों का धंधा भी ज़ोर पकड़ने लगता है जिससे ग्राहक बहुत परेशान होते हैं। आप सम्बन्धित विभागीय कर्मचारियों को सचेत करें जिससे वे जगह-जगह छापामार कार्यवाही हो और दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए ताकि जनजीवन विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित हो सके।                        
    भवदीय                                   पवन

सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

विजयादशमी (दशहरा) की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।मेरा प्रिय त्योहार दशहरा

 मेरा प्रिय त्योहार दशहरा 


दशहरा, जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्रिय त्योहारों में से एक है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। दशहरे का पर्व हर वर्ष अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से भगवान राम की रावण पर विजय और देवी दुर्गा की महिषासुर पर जीत का उत्सव मनाने के रूप में जाना जाता है।


दशहरा का पर्व एकता, भाईचारे और धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसे विविध रूपों में मनाया जाता है। उत्तर भारत में मुख्य रूप से यह त्योहार भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध की याद में मनाया जाता है, जिसे रामलीला के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। रामलीला में भगवान राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का नाटकीय प्रदर्शन होता है, और इसका समापन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों के दहन के साथ होता है। यह प्रतीकात्मक रूप से बुराई के अंत और सत्य की जीत को दर्शाता है।


पश्चिम बंगाल, असम, और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में दशहरा देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है। यहां इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाते हैं, जिसमें माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियों की पूजा की जाती है और उनके महिषासुर पर विजय का उत्सव मनाया जाता है। माँ दुर्गा की आराधना, भक्ति और उनके प्रति श्रद्धा से भरे इस पर्व में लोग एकजुट होकर देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।


दशहरे का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा विजयी होता है। भगवान राम की कथा हमें यह शिक्षा देती है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए कभी भी बुराई से समझौता नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार, देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय यह दर्शाती है कि स्त्रियों में भी असीम शक्ति होती है और वे समाज की बुराइयों का सामना करने में सक्षम हैं।


दशहरा हमें यह प्रेरणा भी देता है कि हमें अपने अंदर की बुराइयों को भी समाप्त करना चाहिए। जैसे रावण के दस सिर उसके दस अवगुणों का प्रतीक थे—अहंकार, क्रोध, मोह, लोभ, ईर्ष्या, और अन्य अवगुण—उसी प्रकार हमें भी अपने भीतर के इन दोषों को त्याग कर जीवन में सद्गुणों को अपनाना चाहिए।


दशहरे के अवसर पर लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। बच्चों के लिए यह एक विशेष अवसर होता है, क्योंकि वे रामलीला और रावण दहन में बहुत उत्साह से भाग लेते हैं। इस दिन लोग नए वस्त्र पहनते हैं और अपने घरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। कुछ स्थानों पर लोग शस्त्रों की पूजा भी करते हैं, जो वीरता और साहस का प्रतीक है।



अतः, दशहरा न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह समाज में नैतिकता, सत्य और न्याय की स्थापना का प्रतीक भी है। यह त्योहार हमें जीवन में सकारात्मकता बनाए रखने, बुराइयों से लड़ने और हमेशा सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

सभी को (दशहरे) विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।


अवकाश कार्य कक्षा - आठवीं विषय हिंदी

 शरदकालीन अवकाश गृहकार्य – 2024

कक्षा - आठवीं  विषय हिंदी 

1.भारत की खोज पुस्तक के युगों का दौर ,अंतिम दौर एक और अंतिम दौर दो के प्रश्न उत्तर अपनी कक्षा कार्य की कॉपी में लिखिए।

2. अकबरी लोटा पाठ पढ़कर उसमें से उपसर्ग और प्रत्यय वाले शब्दों की की सूची बनाइए।

3. जहां पहिया है पाठ में से समास शब्दों को छांटकर तथा उनका समास विग्रह करके उनका भेद लिखिए।

4. अनुच्छेद लेखन

निम्नलिखित विषयों पर 250-300 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए:

1. विज्ञान और तकनीक का हमारे जीवन पर प्रभाव

2. मेरा प्रिय त्योहार

3. जल संरक्षण के उपाय

4. अगर मैं प्रधानमंत्री होता


5. पत्र लेखन

निम्नलिखित विषय पर पत्र लिखें:

1. अपने मित्र को एक पत्र लिखकर उसे अपने स्कूल के वार्षिक उत्सव के बारे में बताइए।

2. अपने माता-पिता को पत्र लिखकर उन्हें अपने विद्यालय में हुई किसी महत्वपूर्ण घटना के बारे में जानकारी दीजिए।

3. अपने प्रधानाध्यापक को अपने स्कूल में खेलकूद सामग्री की कमी के बारे में पत्र लिखें।


6. कहानी लेखन

दी गई शुरुआत को ध्यान में रखते हुए एक रोचक कहानी पूरी कीजिए (200-250 शब्दों में):

"एक दिन जब मैं स्कूल जा रहा था, तभी अचानक मेरे सामने एक अजीब घटना घटी..."

7 मुहावरे और लोकोक्तियाँ

निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों का अर्थ लिखें और वाक्य में प्रयोग कीजिए:

1. आँखों का तारा होना

2. नौ दो ग्यारह होना

3. सिर पर पैर रखकर भागना

4. जब तक साँस, तब तक आस

8. व्याकरण अभ्यास

संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण की 

परिभाषा लिखकर उदाहरण दें।




अवकाश कार्य कक्षा 9वीं विषय हिंदी

 *कक्षा 9वीं*

*शरद ऋतु अवकाश गृहकार्य 2024*

1. 10 पृष्ठ  सुलेख  लिखना।

2. कोई दो लघुकथा लिखें।

3. अलंकार और समास के भेद को लिखते हुए प्रत्येक के चार-चार उदाहरण लिखें।

4. ग्राम श्री  कविता का सार लिखो 

5. परीक्षा परिणाम आने के बाद दो मित्रों के मध्य संवाद लिखें l

6.  निबन्ध लिखो: 

    1 दहेज प्रथा

    2 आपका  प्रिय   अध्यापक l

7  पाठ्य पुस्तक मंगाने हेतु पिता जी को पत्र लिखिए।

8    10 दिन की छुट्टियों की अपनी दैनिक दिनचर्या पर परियोजना कार्य (Project Work) तैयार करें।

अवकाश कार्य कक्षा 10वीं* विषय हिंदी

 *कक्षा 10वीं* विषय हिंदी 

*शरद ऋतु अवकाश गृहकार्य*

1. प्राथमिक शिक्षक पद के लिए आवेदन पत्र लिखें।

2. आपके शहर में सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों में मिलावट का धंधा लगातार बढ़ता ही जा रहा है आपके राज्य के खाद्य मंत्री को dfpd@gov.in पर एक ईमेल लिखकर इस समस्या के प्रति उनका ध्यान आकृष्ट कीजिए।

3. छात्रों के लिए अधिक खेल सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध करते हुए अपने प्रधानाचार्य महोदय को kvs@gmail.com पर एक ईमेल लिखें।

4. निम्नलिखित संकेत बिंदु के आधार पर अनुच्छेद लिखें-

1) प्रस्तावना 2) वर्तमान समय में नारी की स्थिति 3) नारी में अधिक मानवीय गुण 4) नारी की स्थिति और पुरुष की सोच।

5. चुनाव व राजनीति पर निबंध लिखें।

संकेत बिंदु-  1)प्रस्तावना 2)  हरियाणा विधान सभा चुनाव 

3) आम जनता की भागीदारी 

4) राजनीति में धर्म व  जातिवाद का बढ़ता वर्चस्व 

5) मैं क्यों लिखता हूँ   पाठ का सार लिखें।

अवकाश कार्य कक्षा -सातवीं विषय- हिंदी

 शरद कालीन अवकाश गृहकार्य 2024


 कक्षा -सातवीं 
विषय- हिंदी
1. अनौपचारिक और औपचारिक पत्र के दो - दो उदाहरण लिखिए।
2. दस लोकोक्तियों को लिखिए।
3. 'मेरा प्रिय त्योहार-दशहरा' इस पर सचित्र जानकारी लिखिए। 
 4.  प्रत्यय के बीस उदाहरण लिखिए।
5. बीस पर्यायवाची शब्द लिखिए।
6.उपसर्ग के बीस उदाहरण लिखिए।
7. अपने देश में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों की सचित्र सूची बनाइए। 

यह सभी कार्य नोटबुक में करना है। 

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अवकाश कार्य कक्षा - छठी विषय- हिंदी

शरद कालीन अवकाश गृहकार्य 2024
    
  कक्षा - छठी
विषय- हिंदी
1. अनौपचारिक और औपचारिक पत्र के दो - दो उदाहरण लिखिए।
2. भारत देश के प्रमुख राज्य एवं उनके  त्योहारों की सचित्र जानकारी लिखिए।      (कोई पांच राज्य)
3. 'मेरा प्रिय त्योहार' इस विषय पर   एक अनुच्छेद लिखिए।
 4. बीस विलोम शब्द लिखिए।
5. दस मुहावरे लिखकर उनका वाक्य में प्रयोग कीजिए।
6. पांच पेज सुलेख लिखिए।

यह सभी कार्य नोटबुक में करना है। 

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शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

अनुच्छेद लेखन

  अनुच्छेद लेखन


अनुच्छेद लेखन के तीन विषय दिए गए हैं, साथ में संकेत बिंदु भी:


1. स्वच्छ भारत अभियान


संकेत बिंदु:


अभियान की शुरुआत और उद्देश्य


स्वच्छता का महत्त्व


इसमें आपकी भूमिका और योगदान



अनुच्छेद: स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को महात्मा गांधी की जयंती पर की गई थी। इसका उद्देश्य पूरे देश में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाना और गंदगी को समाप्त करना है। यह अभियान शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई, शौचालय निर्माण और कचरा प्रबंधन पर केंद्रित है। स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य और समाज की उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे बीमारियों में कमी आती है और पर्यावरण सुरक्षित रहता है। हमें इस अभियान में भाग लेकर अपने आसपास के क्षेत्रों को स्वच्छ बनाए रखना चाहिए। जागरूक नागरिक बनकर, हम अपने देश को स्वच्छ और सुंदर बना सकते हैं।


2. प्लास्टिक प्रदूषण


संकेत बिंदु:


प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का प्रभाव


पर्यावरण पर प्लास्टिक का नकारात्मक असर


प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के उपाय



अनुच्छेद: प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग आज के समय में एक गंभीर समस्या बन गया है। प्लास्टिक नष्ट नहीं होता और यह सैकड़ों वर्षों तक हमारे पर्यावरण में बना रहता है, जिससे जल, मृदा और वायु प्रदूषित हो जाते हैं। प्लास्टिक से उत्पन्न कचरा हमारे समुद्रों, नदियों और भूमि को दूषित कर रहा है, जिससे वन्यजीवों और समुद्री जीवों की जान को खतरा है। हमें प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए जागरूकता फैलानी होगी। इसके लिए हमें कपड़े या जूट के थैले, पुनः प्रयोग में आने वाली वस्तुओं का उपयोग और सिंगल-यूज प्लास्टिक का त्याग करना होगा। साथ ही, सरकार और स्थानीय निकायों द्वारा कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि प्लास्टिक प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके।


3. ऑनलाइन शिक्षा: लाभ और चुनौतियाँ


संकेत बिंदु:


ऑनलाइन शिक्षा का परिचय और महत्व


इसके फायदे और सुविधा


चुनौतियाँ और समाधान



अनुच्छेद: ऑनलाइन शिक्षा वर्तमान समय में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गई है। यह विशेष रूप से COVID-19 महामारी के दौरान और उसके बाद अधिक प्रचलित हुई है। इंटरनेट और तकनीकी उपकरणों के माध्यम से विद्यार्थी घर बैठे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। ऑनलाइन शिक्षा में लचीलापन, समय की बचत और सुविधाजनक पहुंच जैसे अनेक फायदे हैं। लेकिन इसके साथ ही चुनौतियाँ भी हैं, जैसे इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, और उपकरणों की अनुपलब्धता। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए बेहतर तकनीकी बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है और विद्यार्थियों को समय प्रबंधन और आत्म-अनुशासन सिखाना भी आवश्यक है।


ये विषय विद्यार्थियों के लिए विचारशील और वर्तमान से जुड़े हुए हैं, जिन पर वे आसानी से विचार कर सकते हैं।



बुधवार, 2 अक्टूबर 2024

 देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले वीरता पुरस्कार विजेता प्राप्त करने वाले की यादों को जीवित रखने के लिए आप क्या करना चाहेंगे? 500 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए। 


देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीरता पुरस्कार विजेता हमारे समाज के सच्चे नायक हैं। उनका साहस, कर्तव्यनिष्ठा, और देशप्रेम हर नागरिक के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी यादों को जीवित रखना, उन्हें सम्मान देना, और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है। इसके लिए कई सार्थक कदम उठाए जा सकते हैं, जो न केवल उनकी वीरता का सम्मान करेंगे, बल्कि समाज को जागरूक और प्रेरित भी करेंगे।


पहला कदम उनकी कहानियों को जन-जन तक पहुंचाना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में विशेष सत्रों का आयोजन किया जा सकता है, जहां इन वीरों की जीवन गाथाएं साझा की जाएं। इसके अलावा, पाठ्यपुस्तकों में उनके जीवन और बलिदान की कहानियों को शामिल किया जाना चाहिए। इससे नई पीढ़ी को उनके साहस और देशभक्ति की भावना को समझने और सीखने का अवसर मिलेगा।


"जो दे गए हमें जीवन का उजाला,

उनके नाम से सजे हर एक प्याला।

उनकी गाथा हम सदा सुनाएंगे,

देश के लिए दिल में दीप जलाएंगे।"


स्मारक और संग्रहालयों की स्थापना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। हर राज्य और जिले में वीरता पुरस्कार विजेताओं की याद में स्मारक बनाए जा सकते हैं। इन स्मारकों में उनके जीवन से जुड़ी वस्तुएं, उनके द्वारा प्राप्त पुरस्कार और उनके शौर्य की कहानियां प्रदर्शित की जा सकती हैं। यह स्थान न केवल उनका सम्मान करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर भी प्रदान करेंगे।


इसके अलावा, डिजिटल युग में सोशल मीडिया और वेबसाइटों के माध्यम से उनकी कहानियों को व्यापक रूप से फैलाया जा सकता है। वृत्तचित्र, लघु फिल्में और लेख उनके जीवन पर आधारित बनाकर उन्हें लोगों के सामने लाया जा सकता है। विशेषत: उनके बलिदान दिवस पर राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए, जिसमें उनका सम्मान किया जाए।


"उनकी स्मृतियों को हम सहेज कर रखेंगे,

देशभक्ति की राह पर आगे बढ़ेंगे।

जो दिया उन्होंने अमर संदेश,

उससे बनेगा भारत देश।"


वीरता पुरस्कार विजेताओं के नाम पर छात्रवृत्तियों और पुरस्कारों की स्थापना भी एक सार्थक पहल हो सकती है। इससे न केवल उनका नाम जीवित रहेगा, बल्कि देश के युवाओं को भी प्रोत्साहन मिलेगा कि वे भी देश की सेवा और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें।


साथ ही, इन वीरों के परिवारों का सम्मान और सहयोग भी जरूरी है। उन्हें आर्थिक और सामाजिक सहायता प्रदान की जानी चाहिए, ताकि उनके परिवार को यह एहसास हो कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया और पूरा देश उनके साथ खड़ा है।


"बलिदानियों की यादें सजीव रहेंगी,

देश के हर कोने में वीर गाथाएं कहेंगी।

रखेंगे हम उनका नाम बुलंद,

उनके बलिदान से रहेगा ये धरती स्वच्छंद।"


अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उनके आदर्शों और मूल्यों को अपने जीवन में उतारें। उनके बलिदान का सही सम्मान तभी होगा जब हम उनके दिखाए मार्ग पर चलकर देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। उनके त्याग और साहस को हमेशा जीवित रखना ही हमारा सच्चा सम्मान होगा।


देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले वीरता पुरस्कार विजेता प्राप्त करने

 देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले वीरता पुरस्कार विजेता प्राप्त करने वाले की यादों को जीवित रखने के लिए आप क्या करना चाहेंगे? इस विषय पर 500 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए 





देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले वीरता पुरस्कार विजेता हमारे समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की सुरक्षा, सम्मान और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखा है। ऐसे वीरों की यादों को जीवित रखना हमारा कर्तव्य है ताकि उनकी प्रेरणा और योगदान का सदैव स्मरण किया जा सके। इसके लिए हमें कई सार्थक कदम उठाने की आवश्यकता है।


पहला कदम उनके जीवन और बलिदान की कहानियों को समाज में फैलाना है। वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले सैनिकों की वीरगाथाओं को पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया जा सकता है। इससे नई पीढ़ी को उनके साहस, त्याग और देशभक्ति की प्रेरणा मिलेगी। स्कूलों और कॉलेजों में उनके सम्मान में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जा सकता है, जिसमें छात्रों को उनके बारे में जानकारी दी जाए और उनके बलिदान को सम्मानित किया जाए। इस तरह की शैक्षिक गतिविधियों से विद्यार्थियों में देशभक्ति और राष्ट्रीय गर्व की भावना बढ़ेगी।


दूसरा कदम, वीरता पुरस्कार विजेताओं की स्मृति में स्मारक और संग्रहालय बनाना हो सकता है। इन स्मारकों में उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं, वीरता के कारनामों और उनके द्वारा प्राप्त पुरस्कारों की जानकारी होनी चाहिए। संग्रहालयों में उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियार, वर्दी, और अन्य सामग्री को प्रदर्शित किया जा सकता है। यह स्थान न केवल उनके बलिदान को सम्मानित करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनके जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर भी प्रदान करेंगे।


साथ ही, डिजिटल माध्यम का भी उपयोग किया जा सकता है। आज के समय में सोशल मीडिया, वेबसाइट और ऐप्स के माध्यम से उनकी कहानियों को व्यापक रूप से फैलाया जा सकता है। उनके जीवन पर आधारित वृत्तचित्र, लघु फिल्में और लेख भी तैयार किए जा सकते हैं जो लोगों को उनकी वीरता और बलिदान के बारे में जागरूक करेंगे। इसके अलावा, उनके नाम पर विभिन्न पुरस्कार, छात्रवृत्तियां और खेल आयोजन भी किए जा सकते हैं, जिससे उनके सम्मान को जीवित रखा जा सके और समाज में उनकी स्मृति हमेशा बनी रहे।


एक और महत्वपूर्ण कदम यह होगा कि उनके परिवारों का भी उचित सम्मान किया जाए और उन्हें सामाजिक और आर्थिक सहायता प्रदान की जाए। उनके परिवारों के लिए विशेष योजनाओं का निर्माण करना चाहिए ताकि उन्हें यह महसूस हो सके कि देश उनके बलिदान को सदा स्मरण करता है और उनके प्रति आभार व्यक्त करता है।


आखिरी लेकिन महत्वपूर्ण कदम यह हो सकता है कि हम उनके द्वारा दिए गए संदेशों और आदर्शों को अपने जीवन में उतारें। उनके बलिदान का सच्चा सम्मान तभी होगा जब हम उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलें और देश की सेवा और सुरक्षा के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करें। उनका जीवन हमें त्याग, साहस और समर्पण का आदर्श दिखाता है, जिसे हमें अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए।


इस प्रकार, उन वीरता पुरस्कार विजेताओं की यादों को जीवित रखना न केवल उनका सम्मान है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने का भी एक महत्वपूर्ण साधन है। इन वीरों के प्रति हमारा सम्मान और कृतज्ञता हमें देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता की भावना से जोड़ता है, जो किसी भी राष्ट्र के सुदृढ़ और उज्ज्वल भविष्य की नींव होती है।


नवरात्रि महोत्सव का महत्व

 नवरात्रि महोत्सव का महत्व


नवरात्रि महोत्सव भारतीय संस्कृति और धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व देवी दुर्गा की उपासना और शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है ‘नौ रात्रियों’ का उत्सव, और यह पर्व मुख्य रूप से दो बार मनाया जाता है – एक बार चैत्र मास में (वसंत ऋतु) और दूसरी बार अश्विन मास में (शरद ऋतु)। अश्विन मास की नवरात्रि को विशेष रूप से अधिक प्रमुखता प्राप्त है, जिसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है।


नवरात्रि महोत्सव के दौरान देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। हर दिन देवी के एक अलग रूप की आराधना की जाती है, जो विभिन्न शक्तियों और गुणों का प्रतीक है। पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है, जो पर्वतों की पुत्री के रूप में जानी जाती हैं और शक्ति की शुरुआत का प्रतीक हैं। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। यह नौ दिनों का क्रम जीवन में शक्ति, ज्ञान, समृद्धि, और कल्याण के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है।


नवरात्रि का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह पर्व एकजुटता, उत्साह और परंपराओं को बढ़ावा देता है। नवरात्रि के समय पूरे भारत में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विशेष रूप से गुजरात और पश्चिम बंगाल में यह महोत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। गुजरात में गरबा और डांडिया रास की धूम होती है, जबकि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन आयोजनों के माध्यम से समाज में सामूहिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा मिलता है।


नवरात्रि का एक अन्य प्रमुख पहलू है आत्मसंयम और शुद्धिकरण। इस पर्व के दौरान लोग व्रत रखते हैं और सात्विक आहार का पालन करते हैं। इसका उद्देश्य मन और शरीर को शुद्ध करना होता है, ताकि व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से सशक्त हो सके। इस दौरान भक्ति, साधना और ध्यान के माध्यम से आत्मचिंतन किया जाता है, जिससे व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है।


नवरात्रि महोत्सव का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व भी है। यह महोत्सव देवी दुर्गा की असुर महिषासुर पर विजय की याद में मनाया जाता है। महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और अंततः दसवें दिन उसकी हत्या कर दी। इस कारण दसवें दिन को विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।


नवरात्रि का एक और गहरा संदेश यह है कि नारी शक्ति को सम्मान और मान्यता दी जानी चाहिए। देवी दुर्गा के रूप में नारी की शक्ति और सामर्थ्य का प्रदर्शन होता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि महिलाएं केवल सृजन की प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे विपत्ति और बुराई के खिलाफ लड़ने वाली शक्ति का भी प्रतीक हैं।


अतः, नवरात्रि महोत्सव केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह समाज, संस्कृति, और आत्मिक उन्नति का पर्व है। इसका महत्व आध्यात्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक सभी स्तरों पर है, और यह हमें अच्छाई, शक्ति और नारी के सम्मान का संदेश देता है।


महिला सबलीकरण

 महिला सबलीकरण


महिला सबलीकरण का अर्थ है महिलाओं को उनके अधिकारों, स्वतंत्रता, और समाज में समान अवसर प्रदान करना, ताकि वे अपने जीवन को स्वतंत्र रूप से जी सकें और समाज के विकास में सक्रिय भागीदारी निभा सकें। यह प्रक्रिया सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में महिलाओं की समानता को बढ़ावा देने पर केंद्रित होती है। महिला सबलीकरण केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक अनिवार्य आवश्यकता है, जो न केवल महिलाओं के व्यक्तिगत विकास बल्कि समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है।


इतिहास में महिलाओं की स्थिति सामान्यतः कमजोर और उपेक्षित रही है। पुरुषप्रधान समाज में महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया गया, उनके योगदान को नजरअंदाज किया गया और उन्हें घर की चारदीवारी तक सीमित रखने की कोशिश की गई। शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी से उन्हें वंचित रखा गया। किंतु पिछले कुछ दशकों में समाज में महिलाओं की स्थिति में व्यापक सुधार हुआ है। महिलाओं ने शिक्षा, विज्ञान, राजनीति, व्यापार, खेल और कला के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। इसके पीछे सरकारों, संगठनों और समाज के प्रगतिशील वर्गों का निरंतर प्रयास है।


महिला सबलीकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है शिक्षा। शिक्षा न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी करती है। एक शिक्षित महिला अपने परिवार, समाज और राष्ट्र को भी शिक्षित करने की क्षमता रखती है। इसके अलावा, आर्थिक स्वतंत्रता भी महिला सबलीकरण का प्रमुख घटक है। जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं, तो वे अपने जीवन से जुड़े निर्णय स्वयं लेने में सक्षम होती हैं। उन्हें अपने परिवार और समाज पर निर्भर नहीं रहना पड़ता और वे अपने अधिकारों और सम्मान के लिए मजबूती से खड़ी हो सकती हैं।


महिला सबलीकरण का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष है सामाजिक जागरूकता। समाज में लैंगिक भेदभाव और पुरानी रूढ़िवादी सोच महिलाओं के विकास में बाधा डालती हैं। ऐसे में समाज में जागरूकता फैलाने और महिलाओं के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है। कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठन इस दिशा में काम कर रहे हैं। महिला आरक्षण, बालिका शिक्षा अभियान, महिला सुरक्षा कानून और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियां इस दिशा में अहम भूमिका निभा रही हैं।


महिला सबलीकरण के संदर्भ में राजनीति का भी महत्वपूर्ण योगदान है। महिलाओं को राजनीति में भागीदारी देने से उनकी स्थिति को सुधारने में मदद मिलती है। भारतीय संविधान ने महिलाओं को समान अधिकार दिए हैं और पंचायत राज व्यवस्था में महिलाओं को 33% आरक्षण प्रदान किया गया है। इसके अलावा, कई राज्य सरकारों ने भी महिलाओं के लिए विशेष योजनाएं चलाई हैं, जिनसे उनका सशक्तिकरण संभव हो रहा है।


महिला सबलीकरण केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह समूचे समाज का विषय है। जब महिलाएं सशक्त होंगी, तभी समाज में सच्चे अर्थों में प्रगति संभव हो सकेगी। महिलाओं के सशक्तिकरण से समाज में न्याय, समानता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। महिला सबलीकरण से न केवल महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी, बल्कि वे अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देंगी।


अतः यह आवश्यक है कि समाज, सरकार और विभिन्न संगठन मिलकर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करें और उन्हें अपने जीवन में पूर्ण स्वतंत्रता और समानता प्राप्त हो। महिला सबलीकरण समाज के विकास का एक सशक्त आधार है, जिसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।


व्याकरण - ईमानदारी पर मुहावरे

 यहां ईमानदारी से संबंधित दस मुहावरे और उनके वाक्य दिए गए हैं:


1. ईमान का खरा होना

अर्थ: पूरी तरह से सच्चा और ईमानदार होना

वाक्य: राधेश्याम अपने व्यापार में ईमान का खरा आदमी है, वह कभी धोखा नहीं देता।



2. ईमान बेच देना

अर्थ: लालच में आकर सच्चाई और नैतिकता को छोड़ देना

वाक्य: लालच में आकर उसने अपना ईमान बेच दिया और गलत कामों में लग गया।



3. ईमान पर आंच आना

अर्थ: सच्चाई और इमानदारी पर सवाल उठना

वाक्य: गलत संगत में पड़कर उसके ईमान पर आंच आ गई है।



4. ईमान का सौदा करना

अर्थ: ईमानदारी को त्यागकर स्वार्थी व्यवहार करना

वाक्य: जब उसने रिश्वत ली, तो लोगों ने कहा कि उसने ईमान का सौदा कर लिया।



5. ईमानदारी की मिसाल होना

अर्थ: पूर्ण ईमानदार और आदर्श होना

वाक्य: गाँधीजी को ईमानदारी की मिसाल माना जाता है।



6. ईमान की तिजोरी खाली होना

अर्थ: व्यक्ति में ईमानदारी और नैतिकता का न होना

वाक्य: वह जितना अमीर हो, उतना ही उसकी ईमान की तिजोरी खाली है।



7. ईमान का पक्का होना

अर्थ: विश्वासपात्र और सच्चा होना

वाक्य: मोहन ईमान का पक्का आदमी है, उस पर पूरा भरोसा किया जा सकता है।



8. ईमान का झंडा बुलंद रखना

अर्थ: हर स्थिति में ईमानदारी बनाए रखना

वाक्य: विपरीत परिस्थितियों में भी उसने अपने ईमान का झंडा बुलंद रखा।



9. ईमान से मुंह मोड़ना

अर्थ: ईमानदारी छोड़ देना

वाक्य: अब लोग पैसा कमाने के चक्कर में ईमान से मुंह मोड़ने लगे हैं।



10. ईमान का सौदा नहीं करना

अर्थ: ईमानदारी को किसी भी कीमत पर न छोड़ना

वाक्य: उसने भले ही गरीबी झेली हो, पर कभी ईमान का सौदा नहीं किया।




व्याकरण - पानी पर मुहावरे

 यहां पानी से संबंधित दस मुहावरे और उनके वाक्य दिए गए हैं:


1. पानी-पानी होना

अर्थ: शर्मिंदा होना

वाक्य: सबके सामने गलती स्वीकार करने पर वह पानी-पानी हो गया।



2. पानी सिर के ऊपर से गुजरना

अर्थ: बहुत ज्यादा हो जाना

वाक्य: अब तो उनकी ज्यादतियाँ पानी सिर के ऊपर से गुजर गई हैं, अब कार्रवाई करनी पड़ेगी।



3. पानी उतारना

अर्थ: घमंड तोड़ना

वाक्य: हार के बाद उसके घमंड का पानी उतर गया।



4. पानी भरना

अर्थ: किसी से कमतर होना

वाक्य: वह इतना प्रतिभाशाली है कि उसके सामने बड़े-बड़े विद्वान पानी भरते हैं।



5. पानी मांगना

अर्थ: हार मानना या परास्त होना

वाक्य: खेल में उसकी चालों से विरोधी टीम पानी मांगने लगी।



6. पानी की तरह पैसा बहाना

अर्थ: बहुत अधिक खर्च करना

वाक्य: शादी में उसने पानी की तरह पैसा बहाया।



7. पानी पर लिखी लकीर होना

अर्थ: अस्थाई होना

वाक्य: उसकी बातें पानी पर लिखी लकीर जैसी हैं, जिनका कोई महत्व नहीं।



8. पानी-पतासे एक करना

अर्थ: पूरी कोशिश करना

वाक्य: उसने अपनी नौकरी पाने के लिए पानी-पतासे एक कर दिए।



9. पानी न माँगना

अर्थ: बिना कठिनाई के करना

वाक्य: इस काम में वह इतना माहिर है कि उसे करने में उसे पानी भी नहीं माँगना पड़ा।



10. आंखों में पानी होना

अर्थ: शर्म और स्वाभिमान होना

वाक्य: दूसरों से मदद मांगते हुए उसकी आंखों में पानी था, उसने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा।




व्याकरण - आंख पर मुहावरे

 यहां आंख से संबंधित दस मुहावरे और उनके उदाहरण वाक्य दिए गए हैं:


1. आंख का तारा होना

अर्थ: बहुत प्रिय होना

वाक्य: रीना अपने माता-पिता की आंख का तारा है।



2. आंखों में धूल झोंकना

अर्थ: धोखा देना

वाक्य: उसने व्यापार में अपने साथी की आंखों में धूल झोंक कर सारा पैसा हड़प लिया।



3. आंखें दिखाना

अर्थ: गुस्सा प्रकट करना

वाक्य: बच्चों ने जब शरारत की, तो माँ ने उन्हें आंखें दिखाईं।



4. आंखें बिछाना

अर्थ: बड़े प्रेम से इंतजार करना

वाक्य: मां अपने बेटे के आने का इंतजार करते हुए उसकी राह में आंखें बिछाए बैठी थी।



5. आंखें चौंधिया जाना

अर्थ: अचानक चकित या प्रभावित होना

वाक्य: उसकी नई कार देखकर सबकी आंखें चौंधिया गईं।



6. आंख उठाना

अर्थ: बुरी दृष्टि डालना या विरोध करना

वाक्य: गांव में कोई भी उसके घर की ओर आंख उठाकर नहीं देख सकता।



7. आंखों का पानी मरना

अर्थ: लज्जा का समाप्त होना

वाक्य: इतनी गलती करने के बाद भी उसे कोई शर्म नहीं है, लगता है उसकी आंखों का पानी मर चुका है।



8. आंखें फेर लेना

अर्थ: पहचानने से इंकार करना

वाक्य: बुरे समय में उसके अपने ही आंखें फेर लेते हैं।



9. आंखें बंद करके विश्वास करना

अर्थ: पूरी तरह से विश्वास करना

वाक्य: मैं अपने दोस्त पर आंखें बंद करके विश्वास करता हूँ।



10. आंखें छलकना

अर्थ: भावुक हो जाना

वाक्य: अपनी बेटी की विदाई पर पिता की आंखें छलक आईं।




व्याकरण - नाक पर मुहावरे

 यहां नाक से संबंधित दस मुहावरे और उनके उदाहरण वाक्य दिए गए हैं:


1. नाक में दम करना

अर्थ: परेशान करना

वाक्य: शोर मचाने वाले बच्चों ने मेरी नाक में दम कर रखा है।



2. नाक कटना

अर्थ: अपमानित होना

वाक्य: अपनी हरकतों से उसने पूरे परिवार की नाक कटवा दी।



3. नाक रखना

अर्थ: इज्जत बचाना

वाक्य: अच्छे प्रदर्शन से उसने अपनी टीम की नाक रख ली।



4. नाक रगड़ना

अर्थ: बहुत विनम्रता से माफी मांगना

वाक्य: अपनी गलती पर उसे बॉस के सामने नाक रगड़नी पड़ी।



5. नाक ऊँची रखना

अर्थ: प्रतिष्ठा बनाए रखना

वाक्य: सदा सच्चाई के मार्ग पर चलने से उसकी नाक ऊँची रहती है।



6. नाक में नकेल डालना

अर्थ: काबू में करना

वाक्य: सरकार ने नए नियमों से व्यापारियों की नाक में नकेल डाल दी।



7. नाक का बाल होना

अर्थ: किसी के लिए बहुत प्रिय होना

वाक्य: वह अपने माता-पिता की नाक का बाल है।



8. नाक पर मक्खी न बैठने देना

अर्थ: बहुत सतर्क रहना

वाक्य: वह इतना चौकस है कि अपनी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देता।



9. नाक घिसना

अर्थ: बहुत मेहनत करना

वाक्य: नौकरी पाने के लिए उसे कई जगह नाक घिसनी पड़ी।



10. नाक ऊपर करना

अर्थ: घमंड करना

वाक्य: सफलता मिलते ही उसने सबके सामने नाक ऊपर करनी शुरू कर दी।




मंगलवार, 1 अक्टूबर 2024

लाल बहादुर शास्त्री


श्री लाल बहादुर शास्त्री 


 लाल बहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमंत्री और सादगी, कर्तव्यपरायणता तथा साहस के प्रतीक थे। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी का जीवन बेहद साधारण था, लेकिन उनके विचार और कर्म असाधारण थे। उन्होंने देश के प्रति अपने समर्पण से भारतीय राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ी।


शास्त्री जी का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों से भरा था। उनके पिता का निधन तब हो गया था, जब वे केवल डेढ़ वर्ष के थे। परिवार की आर्थिक स्थिति कठिन थी, फिर भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी और "शास्त्री" की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री जी की सादगी और विनम्रता उनके जीवनभर के गुण रहे।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शास्त्री जी का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा। उन्होंने महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कार्य किया और जेल भी गए। उनकी दृढ़ता और साहस ने उन्हें कांग्रेस के भीतर एक प्रभावशाली नेता बना दिया। 1952 में वे रेल मंत्री बने, जहाँ उन्होंने सादगी और ईमानदारी के नए मानदंड स्थापित किए।


शास्त्री जी का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 1964 में नेहरू जी के निधन के बाद, उन्होंने देश की बागडोर संभाली। शास्त्री जी का कार्यकाल कई चुनौतियों से भरा था। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्होंने देश को एकजुट रखा और "जय जवान, जय किसान" का नारा दिया। यह नारा शास्त्री जी की गहरी समझ और देश के जवानों और किसानों के प्रति सम्मान को दर्शाता है।


उनका यह नारा एक प्रेरणादायक काव्यात्मक शैली में गूंजता है:


"जय जवान, जय किसान,

देश की शान, देश की जान।

सीमा पर रक्षा के प्रहरी,

खेतों में अन्नदाता महान।"


शास्त्री जी का यह नारा आज भी भारतीय समाज में उतना ही प्रासंगिक है, जितना उस समय था। उन्होंने देश की सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा के बीच गहरा संबंध स्थापित किया। शास्त्री जी ने हरित क्रांति को प्रोत्साहित किया और भारत को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए।


उनकी सादगी, ईमानदारी और देश के प्रति अटूट समर्पण को देखकर एक प्रसिद्ध काव्य पंक्ति याद आती है:


"सादा जीवन, उच्च विचार,

लाल बहादुर के सच्चे संस्कार।"


शास्त्री जी का जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। 1965 के युद्ध के बाद ताशकंद समझौता करने के लिए वे पाकिस्तान गए, जहाँ 11 जनवरी 1966 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।


लाल बहादुर शास्त्री का जीवन न केवल सादगी और विनम्रता का उदाहरण है, बल्कि यह दिखाता है कि एक सामान्य व्यक्ति भी दृढ़ निश्चय और कर्तव्यपरायणता के बल पर राष्ट्र को एक नई दिशा दे सकता है। उनके योगदान को भारत कभी नहीं भुला सकता।


शास्त्री जी के जीवन की इस प्रेरणा को संजोते हुए हम यही कह सकते हैं:


"तेरा नाम रहेगा इतिहास में,

लिखेगा तुझको जमाना।

तेरी मेहनत, तेरी साधना,

भारत मां का है यह नज़राना।"


लाल बहादुर शास्त्री आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति और सादगी की मिसाल के रूप में जीवित हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जी की जयंति पर उन्हें शत-शत नमन।




राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

   राष्ट्रपिता महात्मा गांधी  


महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अद्वितीय नेता और अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक थे। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, लेकिन लोग उन्हें सम्मानपूर्वक महात्मा गांधी कहते हैं। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड जाकर वकालत की पढ़ाई की। वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका में उनके अनुभव ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया, जहाँ उन्होंने नस्लीय भेदभाव का कड़ा विरोध किया। वहाँ के संघर्ष ने ही उन्हें अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।


गांधी जी के नेतृत्व में भारत में स्वतंत्रता आंदोलन ने एक नई दिशा प्राप्त की। उन्होंने सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, और दांडी मार्च जैसे अभियानों का नेतृत्व किया। ये आंदोलन न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे, बल्कि देशवासियों में आत्मविश्वास और एकता की भावना भी पैदा करते थे। उन्होंने कहा था, "तुम मुझे मार सकते हो, लेकिन मेरी आत्मा नहीं मर सकती।" यह उनका अदम्य साहस और अडिग विश्वास था कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को बिना हथियार उठाए ही झुका दिया।


महात्मा गांधी ने सदैव सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। उन्होंने कहा, "अहिंसा परम धर्म है", और इसे अपने जीवन का आधार बनाया। उनका मानना था कि यदि व्यक्ति के मन में सत्य और अहिंसा के प्रति आस्था हो, तो वह बड़े से बड़ा परिवर्तन कर सकता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, उन्होंने धार्मिक सौहार्द, स्वदेशी, और अस्पृश्यता के उन्मूलन जैसे मुद्दों पर भी जोर दिया।


उनकी विचारधारा को लेकर कहा गया है:


"रघुपति राघव राजा राम,

पतित पावन सीता राम।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सबको सन्मति दे भगवान।"


गांधी जी की ये प्रार्थना उनके धार्मिक सहिष्णुता और मानवता के प्रति गहरे विश्वास को दर्शाती है। उनके नेतृत्व में भारत ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन गांधी जी ने कभी सत्ता का लोभ नहीं किया। उन्होंने जीवनभर साधारण जीवन जिया और अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि माना। उनके कार्य और आदर्श आज भी पूरी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं।


गांधी जी ने एक और महत्वपूर्ण संदेश दिया: "अगर कोई बदलाव देखना चाहते हो, तो पहले खुद को बदलो।" यह वाक्य उनकी सोच और कर्म का प्रतिबिंब था। उन्होंने स्वराज का सपना देखा था, जिसमें हर भारतीय आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हो।


30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या कर दी, लेकिन उनकी मृत्यु ने भी उनके विचारों को और भी प्रबल कर दिया।


महात्मा गांधी का जीवन एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है जो हमें आज भी सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनके जीवन पर विचार करते हुए यह पंक्ति अनायास ही याद आती है:


"दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल,

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।"


महात्मा गांधी का योगदान युगों-युगों तक भारत और विश्व में याद किया जाएगा।


महात्मा गांधी जी की जयंति पर उन्हें शत-शत नमन।



पद परिचय

 पद परिचय


पद-परिचय को समझने से पहले शब्द और पद का भेद समझना आवश्यक है।


शब्द- वर्णों के सार्थक मेल को शब्द कहते हैं।

शब्द भाषा की स्वतंत्र इकाई होते हैं जिनका अर्थ होता है।

 

पद – जब कोई शब्द व्याकरण के नियमों के अनुसार प्रयुक्त हो जाता है तब उसे पद कहते हैं।

उदाहरण-राम, पत्र, पढ़ना – शब्द हैं।

राम पत्र पढ़ता है।


राम ने पत्र पढ़ा-इन दोनों वाक्यों में अलग-अलग ढंग से प्रयुक्त होकर राम, पत्र और पढ़ता है पद बन गए हैं।





पद-परिचय- वाक्य में प्रयुक्त पदों का विस्तृत व्याकरणिक परिचय देना ही पद-परिचय कहलाता है।



व्याकरणिक परिचय क्या है?


वाक्य में प्रयोग हुआ कोई पद व्याकरण की दृष्टि से विकारी है या अविकारी, यदि बिकारी है तो उसका भेद, उपभेद, लिंग, वचन पुरुष, कारक, काल अन्य शब्दों के साथ उसका संबंध और अविकारी है तो किस तरह का अव्यय है तथा उसका अन्य शब्दों से क या संबंध है आदि बताना व्याकरणिक परिचय कहलाता है।




पदों का परिचय देते समय निम्नलिखित बातें बताना आवश्यक होता है –


संज्ञा–तीनों भेद, लिंग, वचन, कारक क्रिया के साथ संबंध।


सर्वनाम-सर्वनाम के भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक, क्रिया से संबंध।


विशेषण-विशेषण के भेद, लिंग, वचन और उसका विशेष्य।


क्रिया-क्रिया के भेद, लिंग, वचन, पुरुष, काल, वाच्य,धातु कर्म और कर्ता का उल्लेख।


क्रियाविशेषण-क्रियाविशेषण का भेद तथा जिसकी विशेषता बताई जा रही है, का उल्लेख।


समुच्चयबोधक-भेद, जिन शब्दों या पदों को मिला रहा है, का उल्लेख।


संबंधबोधक-भेद, जिसके साथ संबंध बताया जा रहा है, का उल्लेख।


विस्मयादिबोधक-हर्ष, भाव, शोक, घृणा, विस्मय आदि किसी एक भाव का निर्देश।




हिंदी भाषा का महत्व

  हिंदी भाषा का महत्व  हिंदी भाषा का महत्व  भारत की सांस्कृतिक एकता, प्रशासनिक सुगमता, आर्थिक अवसरों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में निहित है ....