रविवार, 6 जुलाई 2025

विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है? (वाद-विवाद)

 

विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है?

पक्ष में (फूल श्रेष्ठ है):

  1. सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक: फूल अपनी कोमलता, रंग-बिरंगे रूप और सुगंध के कारण सबका मन मोह लेता है। यह सौंदर्य का प्रतीक है।

  2. प्रेम और शांति का संदेश: फूल प्रेम, करुणा और सौम्यता के प्रतीक माने जाते हैं। इन्हें पूजा, उपहार और सजावट में प्रयोग किया जाता है।

  3. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व: फूल हर शुभ अवसर पर काम आते हैं — पूजा, विवाह, स्वागत या श्रद्धांजलि में। उनका भावनात्मक जुड़ाव गहरा होता है।

  4. प्रकृति को सजाते हैं: फूल बग़ीचों, पेड़ों और पौधों की शोभा बढ़ाते हैं, जिससे पर्यावरण सुंदर दिखता है।


विपक्ष में (कांटा भी श्रेष्ठ हो सकता है):

  1. रक्षा का प्रतीक: कांटा फूल और पौधे की रक्षा करता है। वह न होते तो फूल को कोई भी आसानी से तोड़ लेता।

  2. संघर्ष और साहस का प्रतीक: कांटा जीवन में संघर्ष, आत्म-संरक्षण और आत्मबल का प्रतीक है। यह दिखाता है कि जीवन सिर्फ कोमलता से नहीं, मजबूती से भी जीना चाहिए।

  3. नैतिक संदेश: कांटा सिखाता है कि सुंदरता के साथ-साथ सुरक्षा भी जरूरी है। हर चीज जो दिखने में कठोर हो, वह बुरी नहीं होती।

  4. प्राकृतिक संतुलन: कांटे जीव-जंतुओं से पौधे को बचाते हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं।


निष्कर्ष (संतुलित दृष्टिकोण):

फूल और कांटा दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं और भूमिकाएं हैं। फूल सुंदरता और प्रेम का प्रतीक है, जबकि कांटा सुरक्षा और आत्म-संरक्षण का। इसलिए श्रेष्ठता की तुलना करना उचित नहीं, क्योंकि दोनों मिलकर ही प्रकृति को संतुलित और पूर्ण बनाते हैं।

फूल और कांटा के बीच संवाद

 

फूल और कांटा के बीच संवाद

(एक सुंदर बाग़ में फूल और कांटा आपस में बातें कर रहे हैं।)

फूल: नमस्ते कांटे भैया! आज तो मौसम कितना सुहावना है, हर कोई मेरी खुशबू से खुश है।

कांटा: नमस्ते फूल बहन। हाँ, तुम्हारी सुंदरता और सुगंध सचमुच सबको लुभाती है। लोग तुम्हें देखकर मुस्कुरा उठते हैं।

फूल: लेकिन भैया, तुम्हारा चेहरा तो हमेशा ग़ुस्से में लगता है। लोग तुमसे दूर भागते हैं।

कांटा: हाँ बहन, मैं सुंदर नहीं हूँ, पर मेरा भी अपना एक महत्व है। मैं तुझे और इस पौधे को खतरे से बचाता हूँ। अगर मैं न होता, तो शायद कोई तुम्हें तोड़ ले जाता।

फूल: यह तो सच है। मैं तो नाजुक हूँ, ज़रा सी चोट भी सह नहीं पाती। तुम मेरी रक्षा करते हो, इसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूँ।

कांटा: और मैं भी गर्व से कहता हूँ कि मैं उस फूल की रक्षा करता हूँ, जिसे सब पसंद करते हैं। हर किसी का जीवन में कोई न कोई उद्देश्य होता है।

फूल: कितनी सुंदर बात कही तुमने, भैया! हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

कांटा: बिल्कुल बहन! सुंदरता और सुरक्षा का संगम ही इस पौधे को पूर्ण बनाता है।

(दोनों मुस्कुरा उठते हैं और हवाओं में उनकी दोस्ती की खुशबू फैल जाती है।)

सीख: हर किसी का जीवन में महत्व होता है, चाहे वह सुंदर हो या कठोर।

पानी रे पानी भाग 2

 पानी रे पानी" पाठ, पानी के महत्व और संरक्षण पर केंद्रित एक कहानी है। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे पानी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और इसका संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है। यह कहानी जल चक्र, जल संसाधनों के महत्व और पानी की कमी के परिणामों पर प्रकाश डालती है। 

विस्तार में:
  • पानी का महत्व:
    कहानी में बताया गया है कि पानी के बिना जीवन संभव नहीं है। यह पीने, नहाने, खाना पकाने, सिंचाई और उद्योगों सहित कई गतिविधियों के लिए आवश्यक है। 
  • जल चक्र:
    कहानी जल चक्र (पानी का एक रूप से दूसरे रूप में बदलना और फिर वापस उसी रूप में आना) को समझाती है। यह बताती है कि कैसे समुद्र से भाप बनकर बादल बनते हैं, फिर बारिश होती है और पानी वापस समुद्र में मिल जाता है। 
  • जल संरक्षण:
    कहानी जल संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देती है। यह बताती है कि हमें बारिश के पानी को जमा करना चाहिए, तालाबों और झीलों को साफ रखना चाहिए और भूजल का संरक्षण करना चाहिए। 
  • जल संसाधनों की अनदेखी:
    कहानी में उन तरीकों का वर्णन किया गया है जिनसे लोग पानी का दुरुपयोग करते हैं, जैसे कि पानी को बर्बाद करना और जल स्रोतों को प्रदूषित करना। 
  • परिणाम:
    कहानी यह भी दर्शाती है कि यदि हम पानी का संरक्षण नहीं करते हैं तो हमें किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि पानी की कमी और सूखा। 
  • शिक्षा:
    कहानी हमें सिखाती है कि हमें पानी को एक मूल्यवान संसाधन मानना ​​चाहिए और इसका जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए। 
यह कहानी हमें पानी के महत्व को समझने और इसे बचाने के लिए प्रेरित करती है। 

बुधवार, 2 जुलाई 2025

ऑनलाइन खरीददारी: समय की मांग

 

ऑनलाइन खरीददारी: समय की मांग (अनुच्छेद लेखन)

आज की तेज रफ्तार जिंदगी में समय सबसे कीमती हो गया है। घर, ऑफिस और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच बाजार जाकर खरीदारी करना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। ऐसे में ऑनलाइन खरीददारी एक वरदान की तरह सामने आई है। अब हम कुछ ही क्लिक में कपड़े, किताबें, मोबाइल, राशन जैसी चीजें घर बैठे मंगवा सकते हैं। इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि भीड़भाड़, ट्रैफिक और थकावट से भी राहत मिलती है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अक्सर छूट और ऑफ़र भी मिलते हैं, जो ग्राहकों को और आकर्षित करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि हम दिन के किसी भी समय, कहीं से भी खरीदारी कर सकते हैं। यह सुविधा खासकर कामकाजी लोगों और छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रही है। वास्तव में, ऑनलाइन खरीददारी आज के समय की आवश्यकता बन चुकी है, जिसे हर कोई अपनाने लगा है।

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

यह पाठ लेखक अनुपम मिश्र द्वारा लिखित है। वे पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले महान विचारक थे। उनकी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ लोगों को बहुत पसंद आई है। उन्होंने सिखाया कि पुराने तालाबों की मरम्मत और जलस्रोतों की रक्षा कैसे की जाए ताकि हम पानी की इस बड़ी समस्या से बाहर आ सकें।

यह पाठ हमें पानी की असली अहमियत और उसके उपयोग के तरीकों के बारे में बहुत आसान भाषा में समझाता है। स्कूल में हम जल-चक्र के बारे में पढ़ते हैं — कैसे सूरज की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों में बदल जाता है, फिर बारिश होती है और पानी नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र तो किताबों में बहुत सुंदर लगता है, पर असली ज़िंदगी में पानी का यह चक्कर अब गड़बड़ हो गया है।

अब हमारे नलों में पानी हमेशा नहीं आता। कई बार पानी बहुत देर रात या सुबह-सुबह आता है। सबको नींद छोड़कर बाल्टियाँ, घड़े भरने पड़ते हैं। कई बार इसी पानी को लेकर झगड़े भी हो जाते हैं। कुछ लोग नलों में मोटर लगाकर ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे दूसरे घरों में पानी नहीं पहुँचता। मजबूरी में सब यही करने लगते हैं और फिर समस्या और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब पानी भी बोतलों में बिकने लगा है। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में गर्मी में पानी की बहुत किल्लत हो जाती है और कई जगह तो हालत अकाल जैसी हो जाती है।

लेकिन जब बारिश होती है, तब सड़कों, घरों, स्कूलों में पानी भर जाता है। रेल की पटरियाँ भी डूब जाती हैं। देश के कई हिस्सों में बाढ़ आ जाती है। यानी कभी बहुत पानी और कभी बिल्कुल नहीं — ये दोनों परेशानियाँ एक ही समस्या के दो रूप हैं। अगर हम समझदारी से काम लें, तो इन दोनों मुश्किलों से बच सकते हैं।

इस पाठ में एक सुंदर उदाहरण दिया गया है गुल्लक का। जैसे हम पैसे जोड़ने के लिए गुल्लक में बचत करते हैं, वैसे ही हमें पानी की भी बचत करनी चाहिए। धरती एक बड़ी गुल्लक की तरह है। बारिश के समय जो तालाब, झीलें, कुएँ आदि हैं, वो इस गुल्लक को भरने का काम करते हैं। बारिश का पानी धीरे-धीरे ज़मीन में जाता है और हमारे लिए भूजल का खजाना बनाता है। यही पानी हम पूरे साल इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन हमने गलती की। ज़मीन के लालच में हमने तालाबों को मिटा दिया, कचरा भर दिया, वहाँ मकान, बाज़ार बना दिए। अब गर्मी में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं। इसीलिए हमें फिर से अपने जलस्रोतों की देखभाल करनी होगी — तालाबों, झीलों, नदियों की रक्षा करनी होगी। अगर हम जल-चक्र को समझकर बारिश के पानी को सँभालेंगे, भूजल को सुरक्षित रखेंगे, तो कभी भी पानी की कमी नहीं होगी। वरना हम हमेशा इस पानी के चक्कर में फँसे रहेंगे।

इस जल प्रलय में का सारांश

इस जल प्रलय में का सारांश 

इस जल प्रलय में ऋणजल-धनजल नाम से रेणु ने सूखा और बाढ़ पर कुछ अत्यंत मर्मस्पर्शी रिपोर्ताज लिखे हैं, जिसका एक सुंदर उदाहरण है इस जल प्रलय में। इस पाठ में उन्होंने सन् 1975 की पटना की प्रलयंकारी बाढ़ का अत्यंत रोमांचक वर्णन किया है, जिसके वे स्वयं भुक्तभोगी रहे। उस कठिन आपदा के समय की मानवीय विवशता और चेतना को रेणु ने शब्दों के माध्यम से साकार किया है।

इस जल प्रलय में लेखक ने अपने गाँव और उससे जुड़े क्षेत्र का वर्णन किया है। लेखक सहायक कार्यकर्ता की हैसियत से अपने ग्रामीण अंचल के तमाम इलाकों में कार्य कर चुका है। लेखक कहता है कि उसने एक शहरी की भाँति बाढ़ की विभीषिका को भोगा है। वस्तुत: वर्तमान स्थिति में पटना शहर में आई बाढ़ के संदर्भ में पूर्व अनुभवों को याद करते हुए लेखक कहता है कि बाढ़ की विभीषिका केवल शारीरिक और आर्थिक रूप को प्रभावित नहीं करती है वरन् मानसिक-सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करती है।

इस जल प्रलय में लेखक ने बाढ़ आने से पूर्व का वर्णन किया है। वह सन् 1967 की बाढ़ को भी याद करता है। लेखक बताता है कि पटना शहर के सभी प्रमुख इलाकों में पानी भर गया है, लोग विभिन्न प्रकार के वाहनों से तथा पैदल भी बाढ़ के पानी को देखने जा रहे हैं। सभी के मन में बाढ़ के जल से प्लावित क्षेत्रों से संबंधित सूचना के प्रति गहरी उत्सुकता है। लेखक अपने एक कवि-मित्र के साथ एक रिक्शे वाले से बातचीत करते हुए उसके रिक्शे पर बैठा यह सब दृश्य देख रहा है।

लेखक बाढ़ और उसके कारण पटना शहर के अस्त-व्यस्त हुए जनजीवन के विषय में बताता है। पटना शहर में आई बाढ़ के भयंकर अनुभव का वर्णन करते हुए वह स्पष्ट करता है कि आकाशवाणी से प्रसारित समाचार पर कान लगाए सुनते लोगों ने जब संवाददाता के मुँह से यह सुना कि पानी किसी भी क्षण हमारे स्टूडियो में प्रवेश कर सकता तो सब लोग डर गए। कहने का तात्पर्य यह है कि सारे लोग बाढ़ के प्रलय से परेशान और अव्यवस्थित हो गए हैं।लेखक के अनुसार उसके अप्सरा सिनेमा पहुंचने पर और वहाँ से पटना के प्रसिद्ध गांधी मैदान का दृश्य देखने पर रामलीला के दशहरे की याद आ जाती है क्योंकि वैसी ही भीड़ बाढ़ की विभीषिका का दर्शन कर रही थी। लेखक को ऐसा लगा जैसे दक्षिण भारत के धनुष्कोटि द्वीप की भाँति आज पटना शहर भी जल प्रलय में समा जाएगा क्योंकि ऐसा लग रहा था कि पानी सबको अपने में डुबोता शहर के सभी हिस्सों में घुस रहा है।

सरकार के जनसंपर्क विभाग की गाड़ी पटना शहर के राजेन्द्र नगर इलाके में सावधान-सावधान की उद्घोषणा कर रही थी। लेखक इन दृश्यों से घबराकर सोने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे नींद नहीं आई अपितु उसकी स्मृति में 1947 और 1949 की बाढ़ के दृश्य आ गए जब अपने गुरू स्व. सतीनाथ भादुड़ी के साथ वह गंगा की बाढ़ से प्रभावित इलाकों में राहत और सहायता कार्य के लिए गया हुआ था। लेखक बताता है कि उसके गुरू की हिदायत थी कि राहत सामग्री में सबसे पहले दवा, किरासन का तेल और माचिस होने चाहिए।

सन् 1949 की बाढ़ भी कुछ ऐसी ही थी। इसी प्रकार जब लेखक बालक था तब सन् 1937 की बाढ़ आई थी और उसमें नाव को लेकर लड़ाई हो गई थी। 1967 की बाढ़ की याद करते हुए पुनपुन नदी के जल सैलाब को याद करता है।

एकाएक लेखक को यह याद आता है कि उसके मित्र और रिश्तेदार तत्काल आई हुई बाढ़ में फँसे हैं। टेलीफोन डेड होने के कारण उनसे संपर्क कर पाना भी संभव नहीं उसकी इच्छा फिर कुछ लिखने को बलवती हो उठी उसने अपनी स्मृति में वह दृश्य दुहराया जब उसने बाढ़ के पानी में घिरी आसन्नप्रसवा महिला को गाय के समान अपनी ओर टकटकी लगाए देखा था।

अंत में लेखक को नींद आ गई सुबह जब लोगों ने उसे झकझोर कर जगाया तो उसने देखा कि जहाँ वह था, उस जगह की ओर बड़ी तेज़ी से झाग-फेन से भरा बाढ़ का पानी आ रहा था। दीवारं डूब रही थीं। लेखक कहता है कि यदि उसके पास कैमरा या टेप रिकार्डर होता तो वह इस जल प्रलय को, उसक जल ताण्डव को अपनी स्मृतियों में सुरक्षित करता। बाढ़ें बहुत आईं लेकिन यह तो साक्षात् जलप्रलय था। लेखक के देखते ही देखते चाय वाले की दुकान, जल पार्क हरियाली सभी जलमग्न हो गए। उसका कहना है, कि अच्छा है इस दारुण दृश्य के अंकन हेतु उसके पास कुछ भी नहीं क्योंकि उसकी कलम भी चोरी चली गई थी। बाढ़ ने सबकुछ ले लिया। वह अपने को हतोत्साहित और असहाय महसूस करने लगा

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

"फूल और कांटा" कविता का सारांश

 कविता "फूल और कांटा" में कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने फूल और कांटे के स्वभाव और कर्मों की भिन्नता को दर्शाया है। फूल, जो अपनी सुंदरता, सुगंध और कोमलता से सबको मोहित करता है, वहीं कांटा अपनी चुभन और कठोरता से सबको कष्ट पहुंचाता है। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य का आचरण ही उसे महान बनाता है, न कि उसका जन्म। 

विस्तार से:

फूल:

फूल कोमल, सुंदर और सुगंधित होता है। वह तितलियों को अपनी गोद में लेता है, भौंरों को रस पिलाता है और अपनी खुशबू से सबको आनंदित करता है। फूल देवताओं के सिर पर भी सुशोभित होता है, जिससे उसका सम्मान और बढ़ जाता है। 

कांटा:

कांटा कठोर, चुभने वाला और अप्रिय होता है। वह दूसरों को चोट पहुंचाता है, उनके कपड़ों को फाड़ता है और तितलियों और भौंरों को भी नुकसान पहुंचाता है। कांटा किसी को भी प्रिय नहीं लगता। 

कवि का संदेश:

कवि कहते हैं कि फूल और कांटे एक ही पौधे पर जन्म लेते हैं, लेकिन उनके स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर होता है। यह अंतर उनके कर्मों के कारण है। फूल अपने अच्छे कर्मों से सबका प्रिय बनता है, जबकि कांटा अपने बुरे कर्मों से सबका तिरस्कार पाता है। इसलिए, मनुष्य को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, न कि अपने कुल या जन्म स्थान पर। अच्छे कर्म ही मनुष्य को महान बनाते हैं। 

मुख्य बातें:

फूल और कांटे दोनों एक ही पौधे पर उगते हैं, लेकिन उनके स्वभाव में अंतर होता है। 

फूल सुंदरता, सुगंध और कोमलता का प्रतीक है, जबकि कांटा कठोरता और चुभन का प्रतीक है। 

मनुष्य का आचरण ही उसे महान बनाता है, न कि उसका जन्म।

पहली बूँद"

 पहली बूँद" कविता, गोपालकृष्ण कौल द्वारा रचित है, जिसमें वर्षा की पहली बूँद के धरती पर गिरने के प्रभाव का वर्णन है। यह कविता वर्षा ऋतु के आगमन और उसके द्वारा लाए गए नवजीवन का उत्सव मनाती है। 

व्याख्या:
कवि गोपालकृष्ण कौल "पहली बूँद" कविता में वर्षा की पहली बूँद के धरती पर गिरने के सुंदर दृश्य और उसके प्रभाव का वर्णन करते हैं। कवि कहते हैं कि जब वर्षा की पहली बूँद धरती पर गिरती है, तो ऐसा लगता है मानो धरती की सूखी प्यासी धरती को अमृत मिल गया हो। यह बूँद धरती के सूखे होठों को तृप्त करती है और उसमें दबे बीजों को अंकुरित करके नया जीवन देती है। धरती हरी-भरी हो उठती है, और ऐसा लगता है जैसे वह खुशी से मुस्कुरा रही हो। 
कवि ने आकाश और बादलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वे कहते हैं कि आकाश नीले नयनों के समान है और बादल काली पुतली के समान। बादलों के बीच बिजली चमकती है, मानो सागर ने सुनहरे पंख लगाकर आकाश में उड़ान भरी हो। बादलों की गर्जना, कवि के अनुसार, धरती के यौवन को जगाने के लिए नगाड़े बजाने जैसा है। 
इस कविता में, पहली बूँद जीवन और उर्वरता का प्रतीक है। यह कविता वर्षा ऋतु के आगमन और उसके द्वारा लाए गए नवजीवन का उत्सव मनाती है। 
मुख्य बातें:
  • जीवन का प्रतीक:
    पहली बूँद जीवन और उर्वरता का प्रतीक है। 
  • प्रकृति का सौंदर्य:
    कविता में वर्षा ऋतु और प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है। 
  • अमृत:
    वर्षा की पहली बूँद को अमृत के समान बताया गया है। 
  • नया जीवन:
    पहली बूँद धरती को नया जीवन देती है। 
  • प्रसन्नता:
    वर्षा की पहली बूँद से धरती प्रसन्न हो उठती है। 


विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है? (वाद-विवाद)

  विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है? ✦ पक्ष में (फूल श्रेष्ठ है): सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक: फूल अपनी कोमलता, रंग-बिरंगे रूप और स...