गुरुवार, 31 जुलाई 2025

 

माध्यमिक स्तर के छात्र-छात्राओं में हिंदी लेखन के प्रति रुचि निर्माण करने के उपाय
(How to Develop Interest in Hindi Writing Among Secondary Level Students)

माध्यमिक स्तर पर छात्रों में लेखन के प्रति रुचि विकसित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो सकता है, परंतु यदि शिक्षण को रचनात्मक, सहभागितामूलक और प्रेरक बनाया जाए, तो विद्यार्थी लेखन को बोझ नहीं, आनंद का माध्यम मानने लगते हैं। नीचे दिए गए उपायों के माध्यम से हिंदी लेखन में रुचि उत्पन्न की जा सकती है:


1. लेखन को जीवन से जोड़ना (Make Writing Real and Relevant):

छात्रों को ऐसे विषयों पर लिखने को प्रेरित करें जो उनके जीवन, अनुभव या सामाजिक परिस्थितियों से संबंधित हों — जैसे "मोबाइल का उपयोग", "मेरा प्रिय त्योहार", "परीक्षा का दिन", आदि।

2. प्रतियोगिताओं का आयोजन (Organize Writing Competitions):

निबंध, कविता, कहानी या पत्र लेखन जैसी प्रतियोगिताएँ कक्षा स्तर पर करवाकर छात्रों में उत्साह और प्रतिस्पर्धा की भावना जगाई जा सकती है।

3. प्रशंसा और प्रोत्साहन (Positive Feedback and Recognition):

छात्रों की रचनाओं की कक्षा में सराहना करें, नोटिस बोर्ड पर लगाएँ, या विद्यालय पत्रिका में प्रकाशित करें। यह उनके आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

4. चित्र, कहानी या विडियो से प्रेरित लेखन (Visual and Multimedia Prompts):

छात्रों को चित्र दिखाकर, छोटी कहानियाँ सुनाकर या विडियो क्लिप दिखाकर रचनात्मक लेखन के लिए प्रेरित करें। इससे उनकी कल्पनाशक्ति जाग्रत होती है।

5. लेखन में तकनीकी साधनों का प्रयोग (Use of Technology):

ऑनलाइन लेखन टूल्स, मोबाइल ऐप या ई-पत्रिका जैसी तकनीकी सुविधाओं से छात्रों की रुचि बढ़ती है और वे लेखन को आधुनिक रूप में अपनाते हैं।

6. संवादात्मक और समूह लेखन (Interactive and Group Writing):

छात्रों को मिलकर कहानी पूरी करने या संवाद लेखन जैसे सहयोगात्मक कार्यों में शामिल करें। इससे लेखन प्रक्रिया को खेल जैसा आनंददायक अनुभव बनाया जा सकता है।

7. दैनिक डायरी लेखन की आदत (Diary Writing Habit):

छात्रों को व्यक्तिगत डायरी लिखने की प्रेरणा दें। यह उनकी आत्म-अभिव्यक्ति का माध्यम बनता है और लेखन में सहजता लाता है।

8. प्रेरणादायक लेखकों से परिचय (Introduce Inspiring Writers):

हिंदी साहित्य के सरल और प्रेरणादायक लेखकों जैसे प्रेमचंद, सुभद्राकुमारी चौहान, हरिवंश राय बच्चन आदि की रचनाओं से परिचय कराकर छात्रों में भाषा और लेखन के प्रति आकर्षण बढ़ाया जा सकता है।


निष्कर्ष (Conclusion):

हिंदी लेखन में रुचि पैदा करने के लिए जरूरी है कि शिक्षण प्रक्रिया को केवल पाठ्यक्रम तक सीमित न रखा जाए, बल्कि उसे रचनात्मक, संदर्भयुक्त और प्रेरक बनाया जाए। जब छात्रों को यह महसूस होता है कि उनके विचारों का मूल्य है और लेखन उनके व्यक्तित्व को सँवार सकता है, तब वे स्वाभाविक रूप से लेखन में रुचि लेने लगते हैं।



लेखन कौशल सुधारने की रणनीतियाँ (

 

लेखन कौशल सुधारने की रणनीतियाँ (Strategy for Improving Writing Skills in Hindi)
(माध्यमिक स्तर हेतु उपयुक्त)

लेखन कौशल भाषा का एक प्रमुख स्तंभ है। माध्यमिक स्तर पर यह आवश्यक हो जाता है कि विद्यार्थी अपने विचारों, भावनाओं, एवं ज्ञान को स्पष्ट और प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना सीखें। हिंदी लेखन कौशल को विकसित करने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं:


1. नियमित लेखन अभ्यास (Daily Writing Practice):

विद्यार्थियों को प्रतिदिन डायरी लेखन, अनुच्छेद लेखन, कहानी लेखन, पत्र लेखन आदि के लिए प्रेरित किया जाए। इससे लेखन में प्रवाह और आत्मविश्वास दोनों बढ़ते हैं।

2. शब्दावली विस्तार (Vocabulary Enrichment):

नए शब्दों को सीखना और उन्हें लेखन में प्रयोग करना शब्दकोश को समृद्ध बनाता है, जिससे लेखन अधिक प्रभावी होता है।

3. व्याकरणिक ज्ञान (Grammatical Accuracy):

संधि, समास, वाक्य रचना, काल, लिंग, वचन, विराम चिह्न आदि का अभ्यास कराना आवश्यक है, ताकि लेखन शुद्ध और स्पष्ट हो।

4. रचना आधारित अभ्यास (Composition-Based Practice):

निबंध, अनुच्छेद, विज्ञापन, संवाद, लेख, रिपोर्ट, समाचार आदि विभिन्न रचनात्मक लेखों का अभ्यास कराना चाहिए ताकि विद्यार्थी विविध लेखन शैलियों से परिचित हो सकें।

5. मॉडल लेखन का उपयोग (Use of Model Writings):

उत्कृष्ट लेखों का उदाहरण देना और उनके आधार पर लेखन कराना छात्रों को भाषा प्रयोग, शैली और संरचना समझने में सहायता करता है।

6. संशोधन और पुनर्लेखन (Revision and Rewriting):

छात्रों को उनके द्वारा लिखे गए कार्यों की समीक्षा करना, सुधार करना और पुनः लिखना सिखाना चाहिए। इससे आत्ममूल्यांकन और सुधार की आदत विकसित होती है।

7. विषय चयन में स्वतंत्रता (Freedom in Topic Selection):

जब विद्यार्थी अपनी रुचि के विषयों पर लिखते हैं, तो वे अधिक रचनात्मक और प्रेरित होते हैं। इससे लेखन में मौलिकता आती है।

8. सहयोगात्मक लेखन (Collaborative Writing):

समूहों में लेखन गतिविधियाँ कराने से विचारों का आदान-प्रदान होता है और छात्र एक-दूसरे से सीखते हैं।


निष्कर्ष (Conclusion):

लेखन कौशल का विकास एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें नियमित अभ्यास, मार्गदर्शन और आत्मसमीक्षा की आवश्यकता होती है। यदि विद्यार्थियों को रचनात्मक, व्याकरण-संपन्न, और रोचक लेखन के लिए प्रेरित किया जाए, तो वे न केवल अच्छे लेखक बनेंगे बल्कि उनकी सोचने और अभिव्यक्त करने की क्षमता भी विकसित होगी।



हिंदी में पठन कौशल (Reading Skills) सुधारने की रणनीतियाँ

 

हिंदी में पठन कौशल (Reading Skills) सुधारने की रणनीतियाँ

पठन कौशल भाषा अधिगम का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। किसी भी छात्र की भाषा दक्षता बढ़ाने के लिए उसका पठन कौशल सशक्त होना चाहिए। हिंदी में पठन कौशल को सुधारने के लिए निम्नलिखित रणनीतियाँ अपनाई जा सकती हैं:

1. नित्य पठन अभ्यास:

प्रतिदिन कम से कम 15-20 मिनट हिंदी की पुस्तकें, समाचार पत्र, बाल पत्रिकाएं या कहानियाँ पढ़ने की आदत डालें। इससे शब्दावली बढ़ेगी और समझने की क्षमता भी बेहतर होगी।

2. बोलकर पढ़ना:

बोलकर पढ़ने से उच्चारण सुधारता है और पंक्तियों को याद रखने में भी सहायता मिलती है। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

3. सवाल-उत्तर अभ्यास:

पढ़ने के बाद उस पाठ से जुड़े प्रश्नों के उत्तर देना या सारांश लिखना, समझ की गहराई को बढ़ाता है। इससे पाठ के उद्देश्य को समझने में मदद मिलती है।

4. चित्रों के माध्यम से पठन:

चित्र आधारित कहानियाँ या आलेख बच्चों के लिए रोचक होते हैं। इससे पढ़ने में रुचि उत्पन्न होती है और दृश्य स्मृति भी विकसित होती है।

5. नई शब्दावली सूची बनाना:

पठन करते समय आए नए शब्दों को लिखना और उनके अर्थ समझना — यह अभ्यास शब्द ज्ञान को बढ़ाता है और भाषा में प्रवाह लाता है।

6. संवादात्मक पठन:

जो कुछ पढ़ा गया है, उस पर समूह में चर्चा करना या प्रश्न पूछना। इससे विश्लेषणात्मक क्षमता और अभिव्यक्ति कौशल दोनों विकसित होते हैं।

7. सुनकर पढ़ना:

ऑडियोबुक्स या शिक्षकों द्वारा पढ़े गए पाठ को ध्यानपूर्वक सुनना और उसके साथ-साथ पढ़ना, श्रवण और पठन दोनों कौशलों को मज़बूत करता है।

निष्कर्ष:

पठन एक सतत प्रक्रिया है जिसे निरंतर अभ्यास, रुचिकर सामग्री, और मार्गदर्शन के द्वारा सुधारा जा सकता है। जब पठन आनंददायक बनता है, तो सीखना भी स्वाभाविक रूप से होता है।



रविवार, 27 जुलाई 2025

पद परिचय के उदाहरण

 

पद परिचय 

अतिलयुत्तरात्मक एवं लघुत्तरात्मक प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए-


1. पानवाला नया पान खा रहा था । (2024)

उत्तर - नया - विशेषण, गुणवाचक, पुल्लिंग, एकवचन,

पान' विशेष्य । 

2. वक़्त काटने के लिए खीरे खरीदे होंगे।


[SQP 2024]

उत्तर—खरीदे होंगे–क्रिया, सकर्मक, पुल्लिंग, बहुवचन, भूतकाल ।

3. विद्यालय के साथ ही एक डाकघर है।[SQP 2024]

उत्तर - के साथ - संबंधबोधक अव्यय, घर और डाकखाने के बीच संबंध दर्शा रहा है।

4. वाह! भई खूब ! क्या आइडिया है।[SQP 2024]

उत्तर - वाह ! - विस्मयादिबोधक अव्यय, प्रशंसासूचक 

5. वे बहुत कोमल और संवेदनशील व्यक्ति थे । 

उत्तर - वे - सर्वनाम, अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम, बहुवचन, कर्ता कारक । [SQP 2024] आदरार्थक


6. 'शीला जी' ने साहित्य का दायरा ही बढ़ा दिया।' वाक्य में रेखांकित पद का परिचय क्या है? [A] [Board, 2024]

 उत्तर - शीला जी - व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, 'कर्ता' कारक


7. 'लेखक ने उस घटना को पूरी ईमानदारी से लिखा । ' रेखांकित पद का परिचय क्या होगा ? [Board, 2024]

 उत्तर - सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, स्त्रीलिंग, विशेष्य'घटना'


8. हिमालय का क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है। रेखांकित पद का परिचय क्या होगा ? [Board, 2024] 

उत्तर - हिमालय - व्यक्तिवाचक संज्ञा, पुल्लिंग, एकवचन, संबंध


कारक


9. 'कस्बे की नगरपालिका प्रतिवर्ष कुछ नया करती थी । ' रेखांकित पद का परिचय क्या है?


[Board, 2024] - 


उत्तर- प्रतिवर्ष कालवाचक क्रिया विशेषण, 'करना' क्रिया की  विशेषता


10. 'बचपन में मैं दुबली-पतली और साँवली थी। ' रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024]


उत्तर - मैं - उत्तम पुरुष सर्वनाम, स्त्रीलिंग, एकवचन कर्ता कारक

 11. 'संपादक महोदय बधाई देने के लिए सीधे घर चले आए। ' वाक्य में रेखांकित पद का परिचय क्या है?

उत्तर—संपादक महोदय–व्यक्तिवाचक संज्ञा, एकवचन, पुल्लिंग, कर्ता कारक

[Board, 2024]

12. 'अपनी माँ को याद करके वे भावुक हो जाते थे । ' - रेखांकित पद का परिचय क्या है?

उत्तर - अपनी पुरुषवाचक सर्वनाम एकवचन स्त्रीलिंग कर्म कारक।

13. 'वे बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के लिए श्रीलंका रेखांकित पद का परिचय क्या है? [ Board,

- वे - सर्वनाम, पुरुषवाचक, प्रथम पुरुष, बहुवचन उत्तर- कारक

14. 'मैं बचपन में पिताजी से बहुत डरती थी।' रेखांकित ए परिचय क्या है? पद क (Board

सर्वनाम


21. ' लेखिका के व्यक्तित्व पर उनकी बहनों का बड़ा असर पड़ा।' वाक्य में रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024]


उत्तर- लेखिका - जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, स्त्रीलिंग, संबंध कारक


22. 'हम यहाँ पहरा देंगे ताकि आप चैन की नींद सो सकें।' रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024]


उत्तर - सर्वनाम, पुरुष वाचक, उत्तम पुरुष, बहुवचन, कर्ता कारक 

23. 'माताजी ने अपनी बीमारी का अहसास हमें नहीं होने दिया।' में रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024]


उत्तर- अपनी- पुरुषवाचक


, 24. 'हालदार साहब अपने काम के सिलसिले में कस्बे से गुज़रते थे।' में रेखांकित पद का परिचय क्या होगा ?


कर्मकारक


[Board, 2024]


, ana कार 

उत्तर - मैं - उत्तम पुरुष सर्वनाम, एकवचन, स्त्रीलिंग, कर्ता: 15. ' वे हमारे हँसी-मजाक में निर्लिप्त भाव से शामिल रहे। रेखांकित का पद-परिचय क्या है? Board, 2024


- रीतिवाचक क्रिया विशेषण, 'शामिल उत्तर - निर्लिप्त भावक्रिया की विशेषता


16. 'उसकी दुकान हड़ताल के आह्वान के कारण बंद थी।' इस वाक्य में रेखांकित का पद परिचय क्या है? [ Board


उत्तर- दुकान - जातिवाचक संज्ञा, एकवचन, कारक , 2024) स्त्रीलिंग,


17. 'उस गाँव में उनकी दरियादिली के चर्चे भी कम नहीं थे। '३ रेखांकित पद का परिचय क्या होगा ? [Board, 2024]


उत्तर - उस - सार्वनामिक विशेषण, एकवचन, पुल्लिंग, 'गाँव' विशेष्य


18. 'वे अपने परिवार से मिलने भारत से बेल्जियम गए। 'रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024]


उत्तर - वे - सर्वनाम, पुरुषवाचक, प्रथम पुरुष, बहुवचन, कर्ता कारक


19. 'जोश और उत्साह से मैं भी उन सबमें भाग ले रही थी। ' वाक्य में रेखांकित का सही पद-परिचय क्या है? [ Board, 2024)


उत्तर- मैं - उत्तम पुरुष सर्वनाम, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्ता कारक 20. 'बच्चे ने मुस्कुराकर अपनी माँ की ओर देखा । ' रेखांकित पद का परिचय क्या है? [Board, 2024

-मुस्कुराकर - रीतिवाचक क्रिया विशेषण, 'देख' क्रिया की उत्तर- विशेषता



बुधवार, 23 जुलाई 2025

विद्यालय छात्र-छात्राओं के लिए उचित सिस्टम

 

विद्यालय छात्र-छात्राओं के लिए उचित सिस्टम
(250 शब्दों में प्रेरक लेख)

विद्यालय का जीवन अनुशासन, सीखने और व्यक्तित्व निर्माण का श्रेष्ठ काल होता है। इस समय यदि छात्र-छात्राएं एक "उचित सिस्टम" बना लें, तो उनका शैक्षिक, मानसिक और नैतिक विकास निश्चित हो जाता है।

“जहाँ नियम हैं, वहाँ प्रगति है,
जहाँ लय है, वहाँ सफलता है।”

उचित सिस्टम का अर्थ है – एक ऐसी दिनचर्या और अध्ययन पद्धति, जिसमें पढ़ाई, खेल, विश्राम, और आत्ममूल्यांकन सभी का संतुलन हो। उदाहरण के लिए, प्रातः एक निश्चित समय पर उठना, स्कूल समय पर पहुँचना, हर विषय को देने का निश्चित समय बनाना, और मोबाइल या टीवी का सीमित उपयोग करना, ये सब सिस्टम के भाग हैं।

छात्रों को चाहिए कि वे अपना एक टाइमटेबल बनाएं, जिसमें होमवर्क, रिवीजन, और आत्म-अध्ययन का स्थान हो। परीक्षा से पहले ही नहीं, प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी पढ़ाई करना अधिक फलदायी होता है।

“छोटे-छोटे कदम, बड़े लक्ष्य की ओर
हर दिन की आदतें बनाएं हमें गौर।”

इसके अलावा, पर्याप्त नींद, पौष्टिक आहार, और ध्यान या योग को दिनचर्या में शामिल करना मानसिक शांति और ऊर्जा का स्रोत बनता है।

इस प्रकार यदि छात्र-छात्राएं एक सरल परंतु नियमित सिस्टम अपनाते हैं, तो उन्हें बार-बार प्रेरणा ढूंढने की आवश्यकता नहीं होगी। उनका आत्मविश्वास और परिणाम दोनों बेहतर होंगे।
“सिस्टम नहीं, तो संघर्ष है –
सिस्टम है, तो सफ़लता निश्चित है।”

सिस्टम बनाओ, मोटिवेशन की जरूरत नहीं

 

सिस्टम बनाओ, मोटिवेशन की जरूरत नहीं
(विद्यालय छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरक लेख – 250 शब्द)

हम सभी ने कभी न कभी यह महसूस किया है कि हमें पढ़ाई के लिए, खेल के लिए या किसी बड़े लक्ष्य को पाने के लिए "मोटिवेशन" की जरूरत है। परंतु क्या हर बार मोटिवेशन मिल ही जाता है? और जब नहीं मिलता तब क्या हम रुक जाते हैं?

इसलिए जरूरी है कि हम ऐसा "सिस्टम" बनाएं, जिससे हमारा कार्य बिना मोटिवेशन के भी चलता रहे। जैसे सूरज हर दिन बिना किसी प्रेरणा के निकलता है, वैसे ही हमें भी रोज़ कुछ आदतें बना लेनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर आप रोज़ सुबह 6 बजे उठने का नियम बना लेते हैं, तो कुछ दिनों बाद यह आपकी आदत बन जाएगी। फिर चाहे मन हो या न हो, आप उठेंगे और अपना काम करेंगे।

मोटिवेशन एक भावना है, जो अस्थायी होती है। पर सिस्टम एक नियम है, जो हमें अनुशासित बनाता है। जब हम अपना टाइमटेबल बना लेते हैं, लक्ष्य तय कर लेते हैं और उसे पाने के लिए रोज़ थोड़ा-थोड़ा प्रयास करते हैं, तब मोटिवेशन की जरूरत ही नहीं रहती।

सोचिए, क्या कोई खिलाड़ी सिर्फ मोटिवेशन से ओलंपिक जीतता है? नहीं, वो हर दिन एक ही तरह की कठिन प्रैक्टिस करता है, क्योंकि उसने एक सिस्टम बना लिया है।

इसलिए प्यारे विद्यार्थियों, मोटिवेशन का इंतज़ार मत कीजिए। अपने लिए एक ऐसा सिस्टम बनाइए, जो आपको आगे बढ़ने के लिए मजबूर कर दे। यही आपकी सफलता की असली कुंजी है।

गुरुवार, 17 जुलाई 2025

हिंदी भाषा में व्याकरण का महत्व

 

हिंदी भाषा में व्याकरण का महत्व

हिंदी भाषा में व्याकरण का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। व्याकरण भाषा की आत्मा होती है, जो शब्दों और वाक्यों को सही ढंग से बोलने, लिखने और समझने की क्षमता प्रदान करती है। जिस प्रकार किसी इमारत को मज़बूती देने के लिए मजबूत ढांचा आवश्यक होता है, उसी प्रकार किसी भी भाषा को शुद्ध, स्पष्ट और प्रभावशाली बनाने के लिए व्याकरण की आवश्यकता होती है।

व्याकरण हमें बताता है कि शब्दों का प्रयोग कब, कहाँ और कैसे करना चाहिए। यह संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण, काल, वचन, कारक, लिंग आदि नियमों द्वारा भाषा को सुव्यवस्थित बनाता है। यदि व्याकरण का ज्ञान न हो, तो वाक्य अर्थहीन या भ्रमपूर्ण हो सकता है। उदाहरण के लिए, "राम खाना खाता है" और "खाना राम खाता है" — इन दोनों वाक्यों में शब्द एक जैसे हैं, परंतु व्याकरण के अनुसार क्रम और प्रयोग बदलने से अर्थ भी बदल जाता है।

हिंदी भाषा के व्याकरण का ज्ञान छात्रों के लिए विशेष रूप से आवश्यक होता है, क्योंकि यह उन्हें शुद्ध लेखन, बोलचाल और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने में मदद करता है। साथ ही, इससे भाषा के प्रति आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

इस प्रकार, हिंदी भाषा में व्याकरण का अध्ययन भाषा को प्रभावशाली, संप्रेषणीय और स्पष्ट बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। व्याकरण के बिना भाषा अधूरी और अव्यवस्थित हो जाती है। इसलिए, हर व्यक्ति को व्याकरण का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन में गणित का महत्व

 

विद्यार्थी जीवन में गणित का महत्व

गणित विद्यार्थियों के जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है। यह न केवल एक शैक्षणिक विषय है, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में इसकी आवश्यकता पड़ती है। गणित हमें तर्कसंगत सोच, विश्लेषणात्मक क्षमता और समस्या समाधान की कुशलता प्रदान करता है।

विद्यार्थी जीवन में समय प्रबंधन, परीक्षा परिणामों का विश्लेषण, गणनाएँ, और विभिन्न प्रतियोगिताओं की तैयारी में गणित की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। गणितीय अभ्यास से मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है और ध्यान केंद्रित करने की शक्ति विकसित होती है।

गणित विज्ञान, तकनीकी, वाणिज्य और इंजीनियरिंग जैसे अनेक क्षेत्रों की नींव है। यदि विद्यार्थी गणित में निपुण होता है, तो वह भविष्य में अनेक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है।

गणित अनुशासन, निरंतर अभ्यास और सही दिशा में सोचने की प्रेरणा देता है। यह जीवन के छोटे-छोटे निर्णयों जैसे बजट बनाना, खरीददारी करना या यात्रा की योजना बनाना आदि में भी सहायक होता है।

इस प्रकार, विद्यार्थी जीवन में गणित का महत्व न केवल परीक्षा तक सीमित है, बल्कि यह जीवन जीने की एक मूलभूत कला भी है।

रविवार, 13 जुलाई 2025

सकारात्मक सोच

 

सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच जीवन में सफलता की कुंजी है। यह वह दृष्टिकोण है जिसमें हम हर स्थिति में आशा की किरण देखते हैं और कठिनाइयों का सामना आत्मविश्वास से करते हैं। जीवन में समस्याएँ सभी के सामने आती हैं, परंतु जो व्यक्ति सकारात्मक सोच रखता है, वह उनका समाधान ढूंढने में सक्षम होता है।

सकारात्मक सोच हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है और तनाव को कम करती है। यह आत्मविश्वास, धैर्य और सहनशीलता को बढ़ाती है। जब हम अच्छे की आशा करते हैं, तो हमारे विचार और कार्य भी उसी दिशा में होते हैं।

सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति दूसरों को भी प्रेरित करते हैं। वे असफलताओं को भी सीखने का अवसर मानते हैं। उदाहरण के लिए, महान वैज्ञानिक थॉमस एडिसन ने बल्ब बनाने में हजारों बार असफल होने के बाद भी कभी हार नहीं मानी क्योंकि उनकी सोच सकारात्मक थी।

हमें अपने विचारों को सदैव सकारात्मक दिशा में बनाए रखना चाहिए। इसके लिए अच्छे लोगों का साथ, प्रेरणादायक पुस्तकें पढ़ना और आत्मचिंतन करना सहायक होता है। सकारात्मक सोच न केवल सफलता दिलाती है, बल्कि जीवन को सुखमय और अर्थपूर्ण भी बनाती है।

स्वच्छता का महत्व

 

स्वच्छता का महत्व

स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन की नींव है। यह न केवल हमारे शरीर को बीमारियों से बचाती है, बल्कि हमारे मानसिक और सामाजिक जीवन को भी सकारात्मक बनाती है। स्वच्छ वातावरण में रहने से व्यक्ति का मन प्रसन्न रहता है और कार्यक्षमता भी बढ़ती है। गंदगी से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे डेंगू, मलेरिया, हैजा आदि फैलती हैं। यदि हम अपने घर, स्कूल, कार्यस्थल और आस-पास के वातावरण को साफ रखें, तो इन रोगों से बचा जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया "स्वच्छ भारत अभियान" भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह हमें स्वच्छता की आदतें अपनाने और दूसरों को प्रेरित करने की प्रेरणा देता है। हमें न केवल खुद साफ-सुथरे रहना चाहिए, बल्कि समाज को भी स्वच्छ बनाने में योगदान देना चाहिए।

स्वच्छता से व्यक्ति की छवि भी निखरती है और सामाजिक सम्मान मिलता है। बच्चों में शुरू से ही स्वच्छता की आदत डालनी चाहिए, जिससे वे जिम्मेदार नागरिक बन सकें। इस प्रकार, स्वच्छता केवल एक व्यक्तिगत आवश्यकता नहीं, बल्कि सामाजिक कर्तव्य भी है। यदि हम सभी मिलकर स्वच्छता को अपनाएं, तो एक स्वस्थ, सुंदर और विकसित भारत का निर्माण संभव है।

शनिवार, 12 जुलाई 2025

कक्षा सातवीं प्रथम आवधिक परीक्षा (PT1) पाठ्यक्रम एवं प्रारूप

 प्रथम आवधिक परीक्षा (PT1)

पाठ्यक्रम एवं प्रारूप 

कक्षा- सातवीं विषय - हिंदी

मल्हार पुस्तक 

पाठ 1, 2, 3 पर प्रश्न 2*5=10

पत्र लेखन =5

संवाद लेखन =5

अनुच्छेद लेखन =5

व्याकरण =5

अपठित गद्यांश =5

अपठित काव्यांश=5


कक्षा छठी प्रथम आवधिक परीक्षा (PT1) पाठ्यक्रम एवं प्रारूप

 प्रथम आवधिक परीक्षा (PT1)

पाठ्यक्रम एवं प्रारूप 

मल्हार पुस्तक 

पाठ 1, 2, 3, 4 पर प्रश्न 2*5=10

अपठित गद्यांश=5

अपठित काव्यांश=5

पत्र लेखन=5

अनुच्छेद लेखन=5

व्याकरण=10

विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, वचन, लिंग, वाक्य निर्माण, शब्द निर्माण।

बुधवार, 9 जुलाई 2025

इंटरनेट के लाभ और हानि

 

इंटरनेट के लाभ और हानि

इंटरनेट आज के युग की एक अद्भुत तकनीक है जिसने संपूर्ण विश्व को एक मंच पर ला खड़ा किया है। इसके माध्यम से जानकारी का विशाल भंडार कुछ ही क्षणों में प्राप्त किया जा सकता है। शिक्षा, व्यवसाय, स्वास्थ्य, मनोरंजन और संचार – हर क्षेत्र में इंटरनेट का उपयोग हो रहा है। विद्यार्थी ऑनलाइन क्लास से पढ़ाई कर सकते हैं, किसान कृषि संबंधी जानकारी ले सकते हैं, और व्यापारी अपने उत्पाद ऑनलाइन बेच सकते हैं। सोशल मीडिया, ईमेल और वीडियो कॉलिंग से लोग दूर होकर भी जुड़े रहते हैं।

लेकिन इंटरनेट का अंधाधुंध उपयोग अनेक हानियाँ भी उत्पन्न करता है। इससे समय की बर्बादी, आंखों की कमजोरी, मानसिक तनाव और सोशल मीडिया की लत जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हटकर मोबाइल और गेम्स की ओर जाता है। साथ ही, इंटरनेट पर उपलब्ध गलत या भ्रामक जानकारी भी भ्रम पैदा कर सकती है।

इसलिए इंटरनेट का उपयोग बुद्धिमानी और संयम से करना चाहिए। यदि इसे सही दिशा में प्रयोग किया जाए तो यह वरदान है, अन्यथा यह हानिकारक भी हो सकता है। संतुलन ही इसके सुरक्षित और लाभकारी उपयोग की कुंजी है।

मोबाइल से लाभ और हानि

 

मोबाइल से लाभ और हानि

आज के युग में मोबाइल फोन मनुष्य की अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है। इसके माध्यम से हम दुनिया के किसी भी कोने से संवाद कर सकते हैं। मोबाइल से शिक्षा, मनोरंजन, व्यापार, बैंकिंग, और इंटरनेट की सुविधाएं सरलता से उपलब्ध होती हैं। विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं और किसान मौसम की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

परंतु इसके अधिक प्रयोग से कई हानियाँ भी होती हैं। मोबाइल की लत से आँखों की रोशनी कमजोर हो सकती है, नींद में कमी आती है और मानसिक तनाव बढ़ता है। बच्चों में अध्ययन से ध्यान हटकर गेम्स की ओर आकर्षण हो जाता है। साथ ही, लगातार स्क्रीन पर समय बिताने से सामाजिक जीवन प्रभावित होता है।

इसलिए मोबाइल का प्रयोग सोच-समझकर और सीमित समय के लिए करना चाहिए ताकि हम इसके लाभ उठा सकें और हानियों से बच सकें। संयमित उपयोग ही इसकी कुंजी है।

मित्र को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं देते हुए पत्र

 

मित्र को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं देते हुए पत्र

प्रिय मित्र राहुल,
सप्रेम नमस्कार।

दिनांक: 10 जुलाई 2025

आशा करता हूँ कि तुम स्वस्थ, प्रसन्न और सफल हो। इस पावन अवसर पर तुम्हें गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ।

गुरु पूर्णिमा का दिन हमारे जीवन में ज्ञान, मार्गदर्शन और नैतिक मूल्यों के महत्व को समझने का सुनहरा अवसर है। हम सभी के जीवन में कोई-न-कोई ऐसा व्यक्ति अवश्य होता है जो हमें सही राह दिखाता है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। चाहे वे हमारे शिक्षक हों, माता-पिता, बड़े भाई-बहन या जीवन के किसी मोड़ पर मिले प्रेरक व्यक्ति – ये सभी हमारे गुरु ही होते हैं।

मैंने सुना है कि तुम्हारे विद्यालय में भी इस दिन विशेष कार्यक्रम होता है, जहाँ तुम अपने शिक्षकों को श्रद्धा से धन्यवाद देते हो। यह परंपरा हमारे संस्कारों को और मजबूत बनाती है।

आओ हम इस शुभ दिन पर अपने गुरुओं को नमन करें और संकल्प लें कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलकर समाज और देश का नाम रोशन करेंगे।

इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।

तुम्हारा मित्र
अभिषेक

गुरु पूर्णिमा पर अनुच्छेद (

 

गुरु पूर्णिमा पर अनुच्छेद (150-200 शब्दों में)

गुरु पूर्णिमा भारत का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो गुरु के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। यह पर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को आता है। इस दिन वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का संकलन और महाभारत की रचना की। इसलिए इस दिन को "व्यास पूर्णिमा" भी कहा जाता है।

भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा माना गया है। "गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः" यह श्लोक गुरु के महत्व को दर्शाता है। गुरु केवल शैक्षणिक ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि जीवन के मूल्य, आचरण और आत्मज्ञान की राह भी दिखाते हैं।

इस दिन विद्यालयों, आश्रमों और मंदिरों में विशेष कार्यक्रम होते हैं। शिष्य अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्हें उपहार, पुष्प आदि अर्पित करते हैं। यह पर्व हमें यह स्मरण कराता है कि सच्चा ज्ञान ही व्यक्ति को अज्ञानता से मुक्त कर सकता है, और इसके लिए गुरु का मार्गदर्शन अत्यंत आवश्यक है।

गुरु पूर्णिमा न केवल एक पर्व है, बल्कि यह जीवन में गुरु के महत्व को समझने और उनके प्रति आभार प्रकट करने का एक पावन अवसर है।

प्रथम आवधिक परीक्षा 2025 कक्षा -नौवीं विषय - हिंदी

 प्रथम आवधिक परीक्षा 2025

कक्षा -नौवीं   विषय - हिंदी अंक-40

पाठ्यक्रम एवं प्रश्नपत्र का प्रारूप

क्षितिज भाग 1

1. दो बैलों की कथा 

2.ल्हासा की ओर 

3.उपभोक्तावाद की संस्कृति 

4.साखियां एवं सबद

5. वाख

क्षितिज पाठों पर प्रश्न 2*4=8

कृतिका भाग1

1. इस जल प्रलय में  5अंक


व्याकरण - 7अंक

 उपसर्ग

 प्रत्यय 

अनुच्छेद लेखन - 5अंक

पत्र लेखन - 5

अपठित गद्यांश एवं अपठित  काव्यांश -10 अंक


रविवार, 6 जुलाई 2025

विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है? (वाद-विवाद)

 

विषय: फूल और कांटा में कौन श्रेष्ठ है?

पक्ष में (फूल श्रेष्ठ है):

  1. सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक: फूल अपनी कोमलता, रंग-बिरंगे रूप और सुगंध के कारण सबका मन मोह लेता है। यह सौंदर्य का प्रतीक है।

  2. प्रेम और शांति का संदेश: फूल प्रेम, करुणा और सौम्यता के प्रतीक माने जाते हैं। इन्हें पूजा, उपहार और सजावट में प्रयोग किया जाता है।

  3. सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व: फूल हर शुभ अवसर पर काम आते हैं — पूजा, विवाह, स्वागत या श्रद्धांजलि में। उनका भावनात्मक जुड़ाव गहरा होता है।

  4. प्रकृति को सजाते हैं: फूल बग़ीचों, पेड़ों और पौधों की शोभा बढ़ाते हैं, जिससे पर्यावरण सुंदर दिखता है।


विपक्ष में (कांटा भी श्रेष्ठ हो सकता है):

  1. रक्षा का प्रतीक: कांटा फूल और पौधे की रक्षा करता है। वह न होते तो फूल को कोई भी आसानी से तोड़ लेता।

  2. संघर्ष और साहस का प्रतीक: कांटा जीवन में संघर्ष, आत्म-संरक्षण और आत्मबल का प्रतीक है। यह दिखाता है कि जीवन सिर्फ कोमलता से नहीं, मजबूती से भी जीना चाहिए।

  3. नैतिक संदेश: कांटा सिखाता है कि सुंदरता के साथ-साथ सुरक्षा भी जरूरी है। हर चीज जो दिखने में कठोर हो, वह बुरी नहीं होती।

  4. प्राकृतिक संतुलन: कांटे जीव-जंतुओं से पौधे को बचाते हैं। वे पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा हैं।


निष्कर्ष (संतुलित दृष्टिकोण):

फूल और कांटा दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं और भूमिकाएं हैं। फूल सुंदरता और प्रेम का प्रतीक है, जबकि कांटा सुरक्षा और आत्म-संरक्षण का। इसलिए श्रेष्ठता की तुलना करना उचित नहीं, क्योंकि दोनों मिलकर ही प्रकृति को संतुलित और पूर्ण बनाते हैं।

फूल और कांटा के बीच संवाद

 

फूल और कांटा के बीच संवाद

(एक सुंदर बाग़ में फूल और कांटा आपस में बातें कर रहे हैं।)

फूल: नमस्ते कांटे भैया! आज तो मौसम कितना सुहावना है, हर कोई मेरी खुशबू से खुश है।

कांटा: नमस्ते फूल बहन। हाँ, तुम्हारी सुंदरता और सुगंध सचमुच सबको लुभाती है। लोग तुम्हें देखकर मुस्कुरा उठते हैं।

फूल: लेकिन भैया, तुम्हारा चेहरा तो हमेशा ग़ुस्से में लगता है। लोग तुमसे दूर भागते हैं।

कांटा: हाँ बहन, मैं सुंदर नहीं हूँ, पर मेरा भी अपना एक महत्व है। मैं तुझे और इस पौधे को खतरे से बचाता हूँ। अगर मैं न होता, तो शायद कोई तुम्हें तोड़ ले जाता।

फूल: यह तो सच है। मैं तो नाजुक हूँ, ज़रा सी चोट भी सह नहीं पाती। तुम मेरी रक्षा करते हो, इसके लिए मैं तुम्हारी आभारी हूँ।

कांटा: और मैं भी गर्व से कहता हूँ कि मैं उस फूल की रक्षा करता हूँ, जिसे सब पसंद करते हैं। हर किसी का जीवन में कोई न कोई उद्देश्य होता है।

फूल: कितनी सुंदर बात कही तुमने, भैया! हम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

कांटा: बिल्कुल बहन! सुंदरता और सुरक्षा का संगम ही इस पौधे को पूर्ण बनाता है।

(दोनों मुस्कुरा उठते हैं और हवाओं में उनकी दोस्ती की खुशबू फैल जाती है।)

सीख: हर किसी का जीवन में महत्व होता है, चाहे वह सुंदर हो या कठोर।

पानी रे पानी भाग 2

 पानी रे पानी" पाठ, पानी के महत्व और संरक्षण पर केंद्रित एक कहानी है। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे पानी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है और इसका संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है। यह कहानी जल चक्र, जल संसाधनों के महत्व और पानी की कमी के परिणामों पर प्रकाश डालती है। 

विस्तार में:
  • पानी का महत्व:
    कहानी में बताया गया है कि पानी के बिना जीवन संभव नहीं है। यह पीने, नहाने, खाना पकाने, सिंचाई और उद्योगों सहित कई गतिविधियों के लिए आवश्यक है। 
  • जल चक्र:
    कहानी जल चक्र (पानी का एक रूप से दूसरे रूप में बदलना और फिर वापस उसी रूप में आना) को समझाती है। यह बताती है कि कैसे समुद्र से भाप बनकर बादल बनते हैं, फिर बारिश होती है और पानी वापस समुद्र में मिल जाता है। 
  • जल संरक्षण:
    कहानी जल संरक्षण की आवश्यकता पर जोर देती है। यह बताती है कि हमें बारिश के पानी को जमा करना चाहिए, तालाबों और झीलों को साफ रखना चाहिए और भूजल का संरक्षण करना चाहिए। 
  • जल संसाधनों की अनदेखी:
    कहानी में उन तरीकों का वर्णन किया गया है जिनसे लोग पानी का दुरुपयोग करते हैं, जैसे कि पानी को बर्बाद करना और जल स्रोतों को प्रदूषित करना। 
  • परिणाम:
    कहानी यह भी दर्शाती है कि यदि हम पानी का संरक्षण नहीं करते हैं तो हमें किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि पानी की कमी और सूखा। 
  • शिक्षा:
    कहानी हमें सिखाती है कि हमें पानी को एक मूल्यवान संसाधन मानना ​​चाहिए और इसका जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिए। 
यह कहानी हमें पानी के महत्व को समझने और इसे बचाने के लिए प्रेरित करती है। 

बुधवार, 2 जुलाई 2025

ऑनलाइन खरीददारी: समय की मांग

 

ऑनलाइन खरीददारी: समय की मांग (अनुच्छेद लेखन)

आज की तेज रफ्तार जिंदगी में समय सबसे कीमती हो गया है। घर, ऑफिस और परिवार की जिम्मेदारियों के बीच बाजार जाकर खरीदारी करना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। ऐसे में ऑनलाइन खरीददारी एक वरदान की तरह सामने आई है। अब हम कुछ ही क्लिक में कपड़े, किताबें, मोबाइल, राशन जैसी चीजें घर बैठे मंगवा सकते हैं। इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि भीड़भाड़, ट्रैफिक और थकावट से भी राहत मिलती है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर अक्सर छूट और ऑफ़र भी मिलते हैं, जो ग्राहकों को और आकर्षित करते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि हम दिन के किसी भी समय, कहीं से भी खरीदारी कर सकते हैं। यह सुविधा खासकर कामकाजी लोगों और छात्रों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रही है। वास्तव में, ऑनलाइन खरीददारी आज के समय की आवश्यकता बन चुकी है, जिसे हर कोई अपनाने लगा है।

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary

 

यह पाठ लेखक अनुपम मिश्र द्वारा लिखित है। वे पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले महान विचारक थे। उनकी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ लोगों को बहुत पसंद आई है। उन्होंने सिखाया कि पुराने तालाबों की मरम्मत और जलस्रोतों की रक्षा कैसे की जाए ताकि हम पानी की इस बड़ी समस्या से बाहर आ सकें।

यह पाठ हमें पानी की असली अहमियत और उसके उपयोग के तरीकों के बारे में बहुत आसान भाषा में समझाता है। स्कूल में हम जल-चक्र के बारे में पढ़ते हैं — कैसे सूरज की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों में बदल जाता है, फिर बारिश होती है और पानी नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र तो किताबों में बहुत सुंदर लगता है, पर असली ज़िंदगी में पानी का यह चक्कर अब गड़बड़ हो गया है।

अब हमारे नलों में पानी हमेशा नहीं आता। कई बार पानी बहुत देर रात या सुबह-सुबह आता है। सबको नींद छोड़कर बाल्टियाँ, घड़े भरने पड़ते हैं। कई बार इसी पानी को लेकर झगड़े भी हो जाते हैं। कुछ लोग नलों में मोटर लगाकर ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे दूसरे घरों में पानी नहीं पहुँचता। मजबूरी में सब यही करने लगते हैं और फिर समस्या और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब पानी भी बोतलों में बिकने लगा है। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में गर्मी में पानी की बहुत किल्लत हो जाती है और कई जगह तो हालत अकाल जैसी हो जाती है।

लेकिन जब बारिश होती है, तब सड़कों, घरों, स्कूलों में पानी भर जाता है। रेल की पटरियाँ भी डूब जाती हैं। देश के कई हिस्सों में बाढ़ आ जाती है। यानी कभी बहुत पानी और कभी बिल्कुल नहीं — ये दोनों परेशानियाँ एक ही समस्या के दो रूप हैं। अगर हम समझदारी से काम लें, तो इन दोनों मुश्किलों से बच सकते हैं।

इस पाठ में एक सुंदर उदाहरण दिया गया है गुल्लक का। जैसे हम पैसे जोड़ने के लिए गुल्लक में बचत करते हैं, वैसे ही हमें पानी की भी बचत करनी चाहिए। धरती एक बड़ी गुल्लक की तरह है। बारिश के समय जो तालाब, झीलें, कुएँ आदि हैं, वो इस गुल्लक को भरने का काम करते हैं। बारिश का पानी धीरे-धीरे ज़मीन में जाता है और हमारे लिए भूजल का खजाना बनाता है। यही पानी हम पूरे साल इस्तेमाल कर सकते हैं।

लेकिन हमने गलती की। ज़मीन के लालच में हमने तालाबों को मिटा दिया, कचरा भर दिया, वहाँ मकान, बाज़ार बना दिए। अब गर्मी में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं। इसीलिए हमें फिर से अपने जलस्रोतों की देखभाल करनी होगी — तालाबों, झीलों, नदियों की रक्षा करनी होगी। अगर हम जल-चक्र को समझकर बारिश के पानी को सँभालेंगे, भूजल को सुरक्षित रखेंगे, तो कभी भी पानी की कमी नहीं होगी। वरना हम हमेशा इस पानी के चक्कर में फँसे रहेंगे।

इस जल प्रलय में का सारांश

इस जल प्रलय में का सारांश 

इस जल प्रलय में ऋणजल-धनजल नाम से रेणु ने सूखा और बाढ़ पर कुछ अत्यंत मर्मस्पर्शी रिपोर्ताज लिखे हैं, जिसका एक सुंदर उदाहरण है इस जल प्रलय में। इस पाठ में उन्होंने सन् 1975 की पटना की प्रलयंकारी बाढ़ का अत्यंत रोमांचक वर्णन किया है, जिसके वे स्वयं भुक्तभोगी रहे। उस कठिन आपदा के समय की मानवीय विवशता और चेतना को रेणु ने शब्दों के माध्यम से साकार किया है।

इस जल प्रलय में लेखक ने अपने गाँव और उससे जुड़े क्षेत्र का वर्णन किया है। लेखक सहायक कार्यकर्ता की हैसियत से अपने ग्रामीण अंचल के तमाम इलाकों में कार्य कर चुका है। लेखक कहता है कि उसने एक शहरी की भाँति बाढ़ की विभीषिका को भोगा है। वस्तुत: वर्तमान स्थिति में पटना शहर में आई बाढ़ के संदर्भ में पूर्व अनुभवों को याद करते हुए लेखक कहता है कि बाढ़ की विभीषिका केवल शारीरिक और आर्थिक रूप को प्रभावित नहीं करती है वरन् मानसिक-सामाजिक जीवन को भी प्रभावित करती है।

इस जल प्रलय में लेखक ने बाढ़ आने से पूर्व का वर्णन किया है। वह सन् 1967 की बाढ़ को भी याद करता है। लेखक बताता है कि पटना शहर के सभी प्रमुख इलाकों में पानी भर गया है, लोग विभिन्न प्रकार के वाहनों से तथा पैदल भी बाढ़ के पानी को देखने जा रहे हैं। सभी के मन में बाढ़ के जल से प्लावित क्षेत्रों से संबंधित सूचना के प्रति गहरी उत्सुकता है। लेखक अपने एक कवि-मित्र के साथ एक रिक्शे वाले से बातचीत करते हुए उसके रिक्शे पर बैठा यह सब दृश्य देख रहा है।

लेखक बाढ़ और उसके कारण पटना शहर के अस्त-व्यस्त हुए जनजीवन के विषय में बताता है। पटना शहर में आई बाढ़ के भयंकर अनुभव का वर्णन करते हुए वह स्पष्ट करता है कि आकाशवाणी से प्रसारित समाचार पर कान लगाए सुनते लोगों ने जब संवाददाता के मुँह से यह सुना कि पानी किसी भी क्षण हमारे स्टूडियो में प्रवेश कर सकता तो सब लोग डर गए। कहने का तात्पर्य यह है कि सारे लोग बाढ़ के प्रलय से परेशान और अव्यवस्थित हो गए हैं।लेखक के अनुसार उसके अप्सरा सिनेमा पहुंचने पर और वहाँ से पटना के प्रसिद्ध गांधी मैदान का दृश्य देखने पर रामलीला के दशहरे की याद आ जाती है क्योंकि वैसी ही भीड़ बाढ़ की विभीषिका का दर्शन कर रही थी। लेखक को ऐसा लगा जैसे दक्षिण भारत के धनुष्कोटि द्वीप की भाँति आज पटना शहर भी जल प्रलय में समा जाएगा क्योंकि ऐसा लग रहा था कि पानी सबको अपने में डुबोता शहर के सभी हिस्सों में घुस रहा है।

सरकार के जनसंपर्क विभाग की गाड़ी पटना शहर के राजेन्द्र नगर इलाके में सावधान-सावधान की उद्घोषणा कर रही थी। लेखक इन दृश्यों से घबराकर सोने की कोशिश करने लगा लेकिन उसे नींद नहीं आई अपितु उसकी स्मृति में 1947 और 1949 की बाढ़ के दृश्य आ गए जब अपने गुरू स्व. सतीनाथ भादुड़ी के साथ वह गंगा की बाढ़ से प्रभावित इलाकों में राहत और सहायता कार्य के लिए गया हुआ था। लेखक बताता है कि उसके गुरू की हिदायत थी कि राहत सामग्री में सबसे पहले दवा, किरासन का तेल और माचिस होने चाहिए।

सन् 1949 की बाढ़ भी कुछ ऐसी ही थी। इसी प्रकार जब लेखक बालक था तब सन् 1937 की बाढ़ आई थी और उसमें नाव को लेकर लड़ाई हो गई थी। 1967 की बाढ़ की याद करते हुए पुनपुन नदी के जल सैलाब को याद करता है।

एकाएक लेखक को यह याद आता है कि उसके मित्र और रिश्तेदार तत्काल आई हुई बाढ़ में फँसे हैं। टेलीफोन डेड होने के कारण उनसे संपर्क कर पाना भी संभव नहीं उसकी इच्छा फिर कुछ लिखने को बलवती हो उठी उसने अपनी स्मृति में वह दृश्य दुहराया जब उसने बाढ़ के पानी में घिरी आसन्नप्रसवा महिला को गाय के समान अपनी ओर टकटकी लगाए देखा था।

अंत में लेखक को नींद आ गई सुबह जब लोगों ने उसे झकझोर कर जगाया तो उसने देखा कि जहाँ वह था, उस जगह की ओर बड़ी तेज़ी से झाग-फेन से भरा बाढ़ का पानी आ रहा था। दीवारं डूब रही थीं। लेखक कहता है कि यदि उसके पास कैमरा या टेप रिकार्डर होता तो वह इस जल प्रलय को, उसक जल ताण्डव को अपनी स्मृतियों में सुरक्षित करता। बाढ़ें बहुत आईं लेकिन यह तो साक्षात् जलप्रलय था। लेखक के देखते ही देखते चाय वाले की दुकान, जल पार्क हरियाली सभी जलमग्न हो गए। उसका कहना है, कि अच्छा है इस दारुण दृश्य के अंकन हेतु उसके पास कुछ भी नहीं क्योंकि उसकी कलम भी चोरी चली गई थी। बाढ़ ने सबकुछ ले लिया। वह अपने को हतोत्साहित और असहाय महसूस करने लगा

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

"फूल और कांटा" कविता का सारांश

 कविता "फूल और कांटा" में कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने फूल और कांटे के स्वभाव और कर्मों की भिन्नता को दर्शाया है। फूल, जो अपनी सुंदरता, सुगंध और कोमलता से सबको मोहित करता है, वहीं कांटा अपनी चुभन और कठोरता से सबको कष्ट पहुंचाता है। कवि यह संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य का आचरण ही उसे महान बनाता है, न कि उसका जन्म। 

विस्तार से:

फूल:

फूल कोमल, सुंदर और सुगंधित होता है। वह तितलियों को अपनी गोद में लेता है, भौंरों को रस पिलाता है और अपनी खुशबू से सबको आनंदित करता है। फूल देवताओं के सिर पर भी सुशोभित होता है, जिससे उसका सम्मान और बढ़ जाता है। 

कांटा:

कांटा कठोर, चुभने वाला और अप्रिय होता है। वह दूसरों को चोट पहुंचाता है, उनके कपड़ों को फाड़ता है और तितलियों और भौंरों को भी नुकसान पहुंचाता है। कांटा किसी को भी प्रिय नहीं लगता। 

कवि का संदेश:

कवि कहते हैं कि फूल और कांटे एक ही पौधे पर जन्म लेते हैं, लेकिन उनके स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर होता है। यह अंतर उनके कर्मों के कारण है। फूल अपने अच्छे कर्मों से सबका प्रिय बनता है, जबकि कांटा अपने बुरे कर्मों से सबका तिरस्कार पाता है। इसलिए, मनुष्य को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, न कि अपने कुल या जन्म स्थान पर। अच्छे कर्म ही मनुष्य को महान बनाते हैं। 

मुख्य बातें:

फूल और कांटे दोनों एक ही पौधे पर उगते हैं, लेकिन उनके स्वभाव में अंतर होता है। 

फूल सुंदरता, सुगंध और कोमलता का प्रतीक है, जबकि कांटा कठोरता और चुभन का प्रतीक है। 

मनुष्य का आचरण ही उसे महान बनाता है, न कि उसका जन्म।

पहली बूँद"

 पहली बूँद" कविता, गोपालकृष्ण कौल द्वारा रचित है, जिसमें वर्षा की पहली बूँद के धरती पर गिरने के प्रभाव का वर्णन है। यह कविता वर्षा ऋतु के आगमन और उसके द्वारा लाए गए नवजीवन का उत्सव मनाती है। 

व्याख्या:
कवि गोपालकृष्ण कौल "पहली बूँद" कविता में वर्षा की पहली बूँद के धरती पर गिरने के सुंदर दृश्य और उसके प्रभाव का वर्णन करते हैं। कवि कहते हैं कि जब वर्षा की पहली बूँद धरती पर गिरती है, तो ऐसा लगता है मानो धरती की सूखी प्यासी धरती को अमृत मिल गया हो। यह बूँद धरती के सूखे होठों को तृप्त करती है और उसमें दबे बीजों को अंकुरित करके नया जीवन देती है। धरती हरी-भरी हो उठती है, और ऐसा लगता है जैसे वह खुशी से मुस्कुरा रही हो। 
कवि ने आकाश और बादलों का भी सुंदर वर्णन किया है। वे कहते हैं कि आकाश नीले नयनों के समान है और बादल काली पुतली के समान। बादलों के बीच बिजली चमकती है, मानो सागर ने सुनहरे पंख लगाकर आकाश में उड़ान भरी हो। बादलों की गर्जना, कवि के अनुसार, धरती के यौवन को जगाने के लिए नगाड़े बजाने जैसा है। 
इस कविता में, पहली बूँद जीवन और उर्वरता का प्रतीक है। यह कविता वर्षा ऋतु के आगमन और उसके द्वारा लाए गए नवजीवन का उत्सव मनाती है। 
मुख्य बातें:
  • जीवन का प्रतीक:
    पहली बूँद जीवन और उर्वरता का प्रतीक है। 
  • प्रकृति का सौंदर्य:
    कविता में वर्षा ऋतु और प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन है। 
  • अमृत:
    वर्षा की पहली बूँद को अमृत के समान बताया गया है। 
  • नया जीवन:
    पहली बूँद धरती को नया जीवन देती है। 
  • प्रसन्नता:
    वर्षा की पहली बूँद से धरती प्रसन्न हो उठती है। 


हिंदी भाषा का महत्व

  हिंदी भाषा का महत्व  हिंदी भाषा का महत्व  भारत की सांस्कृतिक एकता, प्रशासनिक सुगमता, आर्थिक अवसरों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में निहित है ....