शुक्रवार, 20 जून 2025

विद्यार्थी जीवन में योग का महत्व

 

विद्यार्थी जीवन में योग का महत्व

विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और आधारभूत चरण होता है। यह समय न केवल शिक्षा अर्जित करने का होता है, बल्कि चरित्र निर्माण, अनुशासन, आत्मविश्वास और मानसिक संतुलन को विकसित करने का भी होता है। इस महत्वपूर्ण समय में योग एक अमूल्य साधन के रूप में कार्य करता है।

योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह मन, शरीर और आत्मा को संतुलन में रखने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। विद्यार्थी जीवन में योग करने से एकाग्रता बढ़ती है, जिससे पढ़ाई में मन लगता है और स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है। परीक्षा का तनाव, प्रतिस्पर्धा का दबाव और भावनात्मक असंतुलन जैसे समस्याओं से निपटने में योग अत्यंत सहायक सिद्ध होता है।

प्रत्येक दिन कुछ समय योगासन, प्राणायाम और ध्यान के लिए निकालना विद्यार्थियों के लिए लाभकारी होता है। प्राणायाम से फेफड़े मजबूत होते हैं, मानसिक तनाव कम होता है और शरीर ऊर्जावान बना रहता है। ध्यान से मन की चंचलता कम होती है, जिससे विचारों में स्पष्टता आती है।

आज के तकनीकी युग में जहाँ मोबाइल और इंटरनेट ने बच्चों का ध्यान भटका दिया है, वहाँ योग उन्हें आत्म-अनुशासन और आत्मनियंत्रण की ओर ले जाता है। इसके अलावा योग विद्यार्थियों को नैतिक मूल्यों, सहनशीलता, सह-अस्तित्व और आंतरिक शांति की शिक्षा भी देता है।

इस प्रकार, विद्यार्थी जीवन में योग का समावेश न केवल शारीरिक और मानसिक विकास करता है, बल्कि उन्हें एक स्वस्थ, संतुलित और जागरूक नागरिक बनाने की दिशा में भी प्रेरित करता है। योग ही एक ऐसा साधन है जो विद्यार्थियों को सफलता की ओर ले जाने वाले मार्ग को सरल और सशक्त बनाता है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

 

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर वर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन योग की महत्ता को समझाने, जन-जन तक इसके लाभ पहुँचाने और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के प्रस्ताव को स्वीकार कर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया। यह दिन इसलिए भी विशेष है क्योंकि 21 जून उत्तरी गोलार्ध में वर्ष का सबसे लंबा दिन होता है, जो ऊर्जा और प्रकाश का प्रतीक है।

योग भारत की प्राचीन परंपरा है जो शारीरिक, मानसिक और आत्मिक विकास का संतुलन बनाए रखता है। नियमित योगाभ्यास से तन और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। यह तनाव, चिंता और कई शारीरिक बीमारियों से बचाता है। योगासन, प्राणायाम और ध्यान शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और आत्मबल को मजबूत करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं में योग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। देश-विदेश में लाखों लोग एक साथ योगाभ्यास कर इस दिवस को मनाते हैं। यह दिवस सभी को यह संदेश देता है कि योग किसी धर्म, जाति या देश का सीमित विचार नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक वरदान है।

इस प्रकार, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हमें न केवल योग अपनाने की प्रेरणा देता है, बल्कि एक स्वस्थ, शांतिपूर्ण और एकजुट समाज की दिशा में कदम बढ़ाने का मार्ग भी दिखाता है।

बुधवार, 18 जून 2025

कहानी: बबलू की ईमानदारी की टोकरी

 

कहानी: बबलू की ईमानदारी की टोकरी

बबलू एक छोटा सा प्यारा लड़का था, जो हर दिन अपने पिताजी के साथ सब्ज़ी मंडी में मदद करता था। उसके पास एक पुरानी टोकरी थी, जिसमें वह सब्ज़ियाँ ग्राहकों को देता था। बबलू बहुत ईमानदार और मेहनती था, इसलिए सब लोग उसे पसंद करते थे।

एक दिन एक बूढ़े दादाजी ने उससे सब्ज़ी ली और गलती से उसे 500 रुपये का नोट दे दिया, जबकि सब्ज़ी की कीमत सिर्फ 50 रुपये थी। दादाजी जल्दी में चले गए और बबलू ने नोट देखा। उसके मन में थोड़ी देर के लिए लालच आया, लेकिन फिर उसने टोकरी में नोट को अलग रखा और सोच लिया – “ईमानदारी सबसे बड़ी दौलत है।”

थोड़ी देर में दादाजी घबराते हुए वापस आए और बोले, “बेटा, मेरा बाकी पैसा तो रह गया।”
बबलू ने मुस्कराते हुए वह 450 रुपये लौटा दिए। दादाजी की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने बबलू को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तू तो सच में बहुत नेक और सच्चा बच्चा है।”

इस घटना के बाद बबलू की ईमानदारी की चर्चा पूरे बाजार में फैल गई। लोग उससे और भी ज्यादा सब्ज़ियाँ खरीदने लगे।

सीख:
बबलू की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और ईमानदारी हमेशा जीतती है। चाहे हालात जैसे भी हों, अगर दिल साफ़ हो, तो लोग भी आपका सम्मान करते हैं।

कहानी: "चिंटू की एक रूपया वाली गुल्लक"

 

कहानी: "चिंटू की एक रूपया वाली गुल्लक"

चिंटू एक नन्हा सा बच्चा था, जो गाँव के सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ता था। उसका सपना था – अपनी माँ को एक बड़ी लाल साड़ी दिलाने का। लेकिन चिंटू जानता था कि उसके पास पैसे नहीं हैं। फिर भी उसने हार नहीं मानी।

एक दिन उसके पिता ने उसे एक पुरानी गुल्लक दी और कहा, "हर दिन एक रूपया इसमें डालना, देखना सपना जरूर पूरा होगा।" चिंटू ने उसी दिन से एक-एक रूपया जमा करना शुरू कर दिया। कभी बर्तन धोकर, कभी चाय लाकर, वह ईमानदारी से पैसे जोड़ता रहा।

साल भर में उसकी गुल्लक भर गई। जब उसने उसे फोड़ा, तो उसमें पूरे 365 रुपये निकले। वह दौड़कर बाज़ार गया और अपनी माँ के लिए एक सुंदर लाल साड़ी खरीद लाया।

जब उसकी माँ ने वह साड़ी देखी, उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने चिंटू को गले लगा लिया और कहा, "तू तो मेरा सबसे बड़ा खज़ाना है!"

इस कहानी से बच्चों को यह सिखने को मिलता है कि
👉 सपने बड़े हों या छोटे, अगर हम धैर्य, मेहनत और ईमानदारी से प्रयास करें, तो वे जरूर पूरे होते हैं।
और सबसे जरूरी – माँ-बाप को खुश करना सबसे बड़ा उपहार होता है।

कहानी: "गुड्डू और योग का जादू"

 

कहानी: "गुड्डू और योग का जादू"

गुड्डू एक 12 साल का लड़का था, जो शहर के एक स्कूल में पढ़ता था। वह दिनभर मोबाइल पर गेम खेलता, देर रात तक जागता और सुबह देर से उठता। उसकी यह आदतें धीरे-धीरे उसकी सेहत पर असर डालने लगीं। वह जल्दी थक जाता, पढ़ाई में मन नहीं लगता और हमेशा चिड़चिड़ा रहता।

एक दिन स्कूल में एक योग शिविर लगा। गुड्डू ने अनमने मन से उसमें भाग लिया। वहाँ योगाचार्य ने उसे बताया कि योग सिर्फ शरीर को नहीं, मन को भी मजबूत बनाता है। उन्होंने बताया कि रोज़ाना योग करने से एकाग्रता, आत्मविश्वास और ऊर्जा बढ़ती है।

गुड्डू ने ठान लिया कि वह हर दिन सुबह आधे घंटे योग करेगा। शुरुआत में कठिनाई हुई, लेकिन धीरे-धीरे उसे फर्क महसूस होने लगा। उसकी नींद सुधर गई, पढ़ाई में मन लगने लगा और वह पहले से ज्यादा खुश और शांत महसूस करने लगा।

अब वह न केवल खुद योग करता है, बल्कि अपने दोस्तों को भी इसके लिए प्रेरित करता है। स्कूल में उसने “योग क्लब” भी शुरू किया जहाँ बच्चे मिलकर योगाभ्यास करते हैं।

गुड्डू की कहानी हमें यह सिखाती है कि योग केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। यह तन, मन और आत्मा – तीनों को संतुलित करता है। योग अपनाकर हम न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी मज़बूत बनते हैं।

कहानी: "छोटू का सपना"

 

कहानी: "छोटू का सपना"

छोटू एक छोटे से गाँव में रहने वाला गरीब बच्चा था। उसका परिवार इतना गरीब था कि दो वक्त की रोटी भी मुश्किल से मिलती थी। लेकिन छोटू के पास एक चीज़ थी – सपना। वह पढ़-लिखकर कुछ बड़ा बनना चाहता था।

स्कूल की फीस भरने के लिए वह दिन में खेतों में काम करता और रात को पढ़ाई करता। उसके पास न किताबें थीं, न बिजली, लेकिन वह कभी हार नहीं मानता। गाँव के टीचर ने उसकी मेहनत देखकर उसे पुरानी किताबें दीं और पढ़ने में मदद की।

कई बार भूखा सोना पड़ा, लेकिन छोटू ने हार नहीं मानी। सालों की मेहनत और लगन से उसने स्कॉलरशिप पाई और शहर के अच्छे कॉलेज में दाखिला लिया। वहाँ से पढ़कर वह एक IAS अधिकारी बन गया और अपने गाँव में स्कूल, अस्पताल और सड़कों का निर्माण कराया।

आज छोटू हजारों बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुका है। उसकी कहानी बताती है कि सपने पूरे करने के लिए पैसे नहीं, बल्कि मेहनत, ईमानदारी और लगन चाहिए।

संघर्ष से मत डरो, वहीं से रास्ता निकलता है।

रविवार, 15 जून 2025

डॉ. राम मदने: एक सेवाभावी वैद्यकीय व्यक्तिमत्त्व

 

डॉ. राम मदने: एक सेवाभावी वैद्यकीय व्यक्तिमत्त्व

आज डॉ. राम मदने यांचा वाढदिवस! गेल्या १८ वर्षांपासून नांदेड शहरात वैद्यकीय सेवेत अखंड योगदान देणाऱ्या या समर्पित आणि सहृदय डॉक्टराला आज शुभेच्छा देताना शब्द अपुरे वाटतात. एम.डी. मेडिसिन या शाखेतील त्यांनी मिळवलेला गाढा अभ्यास आणि समाजप्रती असलेली निष्ठा, त्यांचं व्यक्तिमत्त्व अधिकच तेजस्वी बनवते.



डॉ. राम मदने हे केवळ एक यशस्वी वैद्यकीय व्यावसायिक नाहीत, तर एक संवेदनशील माणूस आहेत. त्यांच्या दवाखान्यात येणाऱ्या प्रत्येक रुग्णाला केवळ औषधोपचारच मिळत नाही, तर माणुसकीची आणि मानसिक आधाराची ऊबसुद्धा मिळते. रुग्णाशी माणूस म्हणून वागणं, त्यांची व्यथा समजून घेणं आणि शक्य तेवढं सहकार्य करणं, ही त्यांची कार्यपद्धती आहे.

"सेवा हीच खरी पूजा" या तत्त्वावर विश्वास ठेवणारे डॉ. मदने अनेक गरजू रुग्णांना मोफत सल्ला, सवलतीने उपचार, आणि अनेक वेळा औषधोपचारही देतात. विशेषतः ग्रामीण भागातील लोकांसाठी ते एक आधारस्तंभ ठरले आहेत. कोविड-१९ महामारीच्या काळातही त्यांनी स्वतःच्या आरोग्याची पर्वा न करता, दिवस रात्र रुग्णसेवेत आपली ऊर्जा झोकून दिली. त्यांची सेवा आणि समर्पण पाहून अनेक तरुण डॉक्टर्स आज प्रेरणा घेत आहेत.

ते केवळ वैद्यकीय सेवा देणारे नाहीत, तर सामाजिक कार्यामध्येही त्यांचा सक्रिय सहभाग असतो. आरोग्य शिबिरं, जनजागृती मोहीमा, आणि आरोग्य शिक्षण यामार्फत ते समाजाला निरोगी जीवनशैलीचा संदेश देत असतात. त्यांच्या बोलण्यात सौम्यता आहे, चेहऱ्यावर नेहमी स्मितहास्य असतं, आणि कामात नेमकेपणा असतो – ही त्यांच्या यशामागची मुख्य सूत्रं आहेत.

डॉ. मदने यांचा व्यावसायिक पराक्रम जितका मोठा आहे, तितकीच मोठी त्यांची माणुसकीची झेप आहे. त्यांनी वैद्यकीय व्यवसायाला केवळ आर्थिक दृष्टिकोनाने न पाहता, एक सामाजिक जबाबदारी म्हणून घेतलं आहे. त्यांचं जीवन म्हणजे एक प्रेरणादायी अध्याय आहे, ज्यातून शिकण्यासारखं खूप काही आहे.

आज त्यांच्या वाढदिवसानिमित्त त्यांच्या कार्याची आणि सेवाभावाची आठवण करून देणं हे आपल्या सर्वांचं कर्तव्य आहे. अशा या महान व्यक्तिमत्त्वास हार्दिक शुभेच्छा! त्यांच्या पुढील आयुष्यात आरोग्य, यश, आणि समाधानी सेवा लाभो हीच प्रार्थना.

वाढदिवसाच्या मनःपूर्वक शुभेच्छा, डॉ. राम मदने सर!
आपणास longevity आणि समाजसेवेसाठी अजून मोठं आयुष्य लाभो हीच सदिच्छा!

शनिवार, 14 जून 2025

नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान” रवींद्र बेम्बरे

 “नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान” रवींद्र बेम्बरे

                पुस्तक -परीक्षण 

          

       नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान या पुस्तकाचे प्रकाशन दिनांक 13 जून 2025 रोजी साहित्य भारती द्वारा छत्रपति संभाजीनगर मध्यमे करण्यात आले. या पुस्तकाचे लेखक रविंद्र बेम्बरे यांनी या पुस्तकात नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान या विषयावर अत्यंत अभ्यास पूर्ण व मार्मिक शब्दांत विवेचन केले आहे . पुस्तकावर अभ्यासपूर्ण भाष्य श्री. उपेंद्र कुलकर्णी यांनी केले.न्यायमूर्ती श्री.अंबादासराव जोशी यांनी ही या पुस्तकाविषयी आपले विचार व्यक्त करताना म्हणाले कि आजच्या परिस्थितिमध्ये या पुस्तकाचे महत्व अधिक आहे. या पुस्तकाबद्दल जिज्ञासा निर्माण झाल्याने मी ही या पुस्तकाचे वाचन केले.तसेच या पुस्तकाचा परिचय आपणास ही व्हावा म्हणून केलेला हा प्रपंच आहे.सर्वप्रथम लेखकाने आपले मनोगत व्यक्त केले आहे ते म्हणतात कि संत साहित्य म्हणजे चिरंतन सत्याचा शोध असल्यामुले ते कधीच शिले किंवा कालबाह्य ठरत नाही.या पुस्तकात एकूण सात प्रकरणे आहेत. नैसर्गिक आपत्ति संकल्पना आणि स्वरूप,नैसर्गिक आपत्ती आणि मनोविज्ञान : परस्पर संबंध ,भारतीय संत साहित्यातील मनोविज्ञान,नैसर्गिक आपत्तीत संत तुकाराम यांचे मनोविज्ञान,नैसर्गिक आपत्तीत संत रामदास यांचे मनोविज्ञान,कोरोना महामारीत मराठी संतांचे मनोविज्ञाननिष्कर्षात्मक समारोप,शेवटी परिशिष्ट व लेखक परिचय देण्यात आला आहे.

       नैसर्गिक आपत्ती म्हणजे निसर्गातील अनपेक्षित, अचानक आणि हानीकारक घटना ज्यामुले मानवी जीवन, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था यांना मोठ्या प्रमाणावर बाधित करतात. यात भूकंप, पूर, वादळ, दुष्काळ, ज्वालामुखी, महामारी अशा घटना मोडतात. या आपत्ती केवळ शारीरिक हानी करत नाहीत तर मानसिक, सामाजिक पातळीवरही माणसाला हादरवतात.यामध्ये नैसर्गिक आपत्ती संकल्पना, आपत्तीची व्याख्या, आपत्तीचे प्रकार व शेवटी संदर्भ सूची दिली आहे.नैसर्गिक आपत्तीमुळे माणसाच्या मनोवस्थेत अनेक प्रकारचे बदल घडतात — भीती, चिंता, असुरक्षितता, नैराश्य, शोक आणि अस्तित्वाचा प्रश्न निर्माण होतो. या अवस्थेत मानसिक आरोग्य अत्यंत दुर्बल होते. परंतु अशा स्थितीत आध्यात्मिकता, धर्म, भक्ती हे आधार बनतात. यात मानवी जीवनातील आपत्तीची आटलता महामारीतील जीवितहानी, नैसर्गिक आपत्ती आणि मनोविज्ञान सहसंबंध, आपत्तीचे मानसशास्त्रीय व्यवस्थापन याविषयी अधिक विचार व्यक्त केले आहेत.भारतीय संतसाहित्य केवळ अध्यात्मवादी नसून त्यात मानवी भावनांचा, संघर्षांचा, जीवनदृष्टीचा सखोल अभ्यास आहे. संत परमार्थाचे उपदेश देताना मानवी स्वभाव, मनोव्यथा, सामाजिक व नैतिक आव्हानांची जाणीव बाळगतात. महात्मा बसवेश्वर, श्री चक्रधर स्वामी,संत नामदेव ,संत ज्ञानेश्वर,संत एकनाथ संत तुकाराम संत रामदास, यांच्या साहित्यातील मनोविज्ञानाचा शोध घेतला आहे..संत तुकाराम यांचे जीवनच एक आपत्तीपूर्ण कथा आहे. दुष्काळात त्यांचे घर उद्ध्वस्त झाले, पत्नीसह अनेक कुटुंबीय वारले, समाजाकडून उपेक्षा झाली. यात संत तुकाराम महाराज यांनी अनुभवलेला दुष्काल आणि महामारी,दु:ख आणि संकटे स्वीकारण्याची दृष्टी,मरणाची अटलता, आपत्तीतील मनोधैर्य,विचारार्थ नियंत्रण, चित्त आणि मनाची स्थिरता, चंचल मनाचे स्वयं नियंत्रण, संकटकालीन सावधानता, संकटकालात मानसिक आधार,समाजाची मानसिकता, नैराश्य आणि आत्महत्या याविषयी विवेचन केले आहे.संत रामदास हे कर्मयोग आणि राष्ट्रभक्तीचे प्रतीक आहेत. त्यांनी दासबोध, मनाचे श्लोक या ग्रंथांमधून मानसिक शिस्त, धैर्य, संयम आणि स्थितप्रज्ञता शिकवली. संकटसमयी मन कोसळू नये. त्यांच्या लेखनात आत्मबल, संयम आणि दृढनिश्चय यांचा मानसशास्त्रीय पाया आहे. आपत्तीसमयी भावनांवर ताबा ठेवणे, विवेकाने निर्णय घेणे आणि सामाजिक कर्तव्य निभावणे ही त्यांची शिकवण आजही प्रासंगिक आहे.यामध्ये संत रामदासाच्या कालातील नैसर्गिक आपत्ती,मृत्यूच्या भीतीची निरर्थकता,दु:ख आणि संकटाची अटलता, मानसिक स्थैर्य आणि धैर्य,संयम आणि संतुलित विचार,सहकार्य आणि समर्पणभाव, सकारात्मक विचार, चिंता आणि भय,श्रध्देचे अधिष्ठान याविषयी सखोल माहिती दिली आहे.कोरोना काळात लॉकडाऊन, मृत्यू, अनिश्चितता आणि भय यामुळे मानसिक आरोग्यावर मोठा परिणाम झाला. याकाळात अनेकांनी संत वाङ्मयाकडे मानसिक आधारासाठी वळले.  

          मराठी संतांचे मनोविज्ञान हे संकट काळात धीर, श्रद्धा, समर्पण आणि सेवा या तत्त्वांवर आधारलेले आहे. त्यांनी आपल्या वाङ्मयातून नैसर्गिक आपत्तींसारख्या प्रसंगातही कसे स्थिर राहावे, हे शिकवले. अशा संतविचारांचा आधार घेतल्यास, कोणतीही आपत्ती मानसिक शांततेने आणि आत्मबलाने पार करता येते. मानसशास्त्रज्ञ प्रीतमकुमार बेदरकर ही या पुस्तकाबद्धल आपला अभिप्राय व्यक्त केला आहे. संत साहित्यातील अनेकविध संदर्भानी समृद्ध बनलेला हा ग्रंथ मराठी वाचक, अभ्यासक आणि संशोधकांना संत साहित्याकडे पाहण्याची एक नवी दृष्टी देतो. या पुस्तकात एकशे दहा पृष्ठे आहेत.पुस्तकाचे मुखपृष्ठ संतोष धोंगडे यांनी बनविले आहे.या पुस्तकाचे प्रकाशन स्नेहवर्धन प्रकाशन पुणे यांनी केले आहे. वाचकांना आग्रह आहे की या पुस्तकाचे जरूर वाचन करावे व आपल्या संग्रही ठेवावी अशी अमूल्य कृती आहे.

                                 ज्ञानोबा देवकत्ते 

                                 छत्रपती संभाजीनगर.

                             मोबाइल नंबर- 9527381007

नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान” डा.रविंद्र बेम्बरे (पुस्तक -परीक्षण )

 

नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान” डा.रविंद्र बेम्बरे

                पुस्तक -परीक्षण 

       नैसर्गिक आपत्तीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान या पुस्तकाचे प्रकाशन दिनांक 13/6/2025 साहित्य भारती द्वारा छत्रपति संभाजीनगर मेरे करण्यात आले या पुस्तकाचे लेखक प्रा.डॉ रविंद्र बेम्बरे, देगलूर यांनी या पुस्तकात मराठी संतांचे मनोविज्ञान या विषयावर अत्यंत अभ्यास पूर्ण व मार्मिक शब्दांथ विवेचन केले आहे . पुस्तकाचे परीक्षण श्री उपेंद्र कुलकर्णी यानी अत्यंत अभ्यासपूर्ण पध्दती ने आपले विचार व्यक्त केले.न्यायमूर्ति अंबादास जोशी यांनी ही या पुस्तकाविषयी आपले विचार व्यक्त करताना म्हणाले कि आजच्या परिस्थिति मध्ये या पुस्तकाचे महत्व अधिक आहे. या पुस्तकाबद्धल जिज्ञासा निर्माण झाल्याने मी ही या पुस्तकाचे वाचन केले.

       सर्व प्रथम लेखकाने आपले मनोगत व्यक्त केले आहे ते म्हणतात कि संत साहित्य म्हणजे चिरंतन सत्याचा शोध असल्यामुले ते कधीच शिले किंवा कालबाह्य ठरत नाही.या पुस्तकात एकूण सात प्रकरणे आहेत. नैसर्गिक आपत्ति संकल्पना आणि स्वरूप,

 नैसर्गिक आपत्ती आणि मनोविज्ञान : परस्पर संबंध ,

 भारतीय संत साहित्यातील मनोविज्ञान,

 नैसर्गिक आपत्तीत संत तुकाराम यांचे मनोविज्ञान,

 नैसर्गिक आपत्तीत संत रामदास यांचे मनोविज्ञान

 कोरोना महामारीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान

निष्कर्षात्मक समारोप,शेट्टी परिशिष्ट व लेखक परिचय देण्यात आला आहे.


1. नैसर्गिक आपत्ती: संकल्पना आणि स्वरूप

नैसर्गिक आपत्ती म्हणजे निसर्गातील अनपेक्षित, अचानक आणि हानीकारक घटना ज्या मानवी जीवन, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था यांना मोठ्या प्रमाणावर बाधित करतात. यात भूकंप, पूर, वादळ, दुष्काळ, ज्वालामुखी, महामारी अशा घटना मोडतात. या आपत्ती केवळ शारीरिक हानी करत नाहीत तर मानसिक, सामाजिक आणि आध्यात्मिक पातळीवरही माणसाला हादरवतात.

यामध्ये नैसर्गिक आपत्ती संकल्पना, आपत्तीची व्याख्या, आपत्तीचे प्रकार व शेवटी संदर्भ सूची दिली आहे.

2. नैसर्गिक आपत्ती आणि मनोविज्ञान: परस्पर सहसंबंध

नैसर्गिक आपत्तीमुळे माणसाच्या मनोवस्थेत अनेक प्रकारचे बदल घडतात — भीती, चिंता, असुरक्षितता, नैराश्य, शोक आणि अस्तित्वाचा प्रश्न निर्माण होतो. या अवस्थेत मानसिक आरोग्य अत्यंत दुर्बल होते. परंतु अशा स्थितीत आध्यात्मिकता, धर्म, भक्ती हे आधार बनतात. मनोविज्ञान हे याचं स्पष्टीकरण 'resilience', 'coping mechanisms' आणि 'spiritual buffering' या संकल्पनांच्या आधारे करते.यात मानवी जीवनातील आपत्तीची आटलता महामारीतील जीवितहानी, नैसर्गिक आपत्ती आणि मनोविज्ञान सहसंबंध, आपत्तीचे मानसशास्त्रीय व्यवस्थापन याविषयी अधिक विचार व्यक्त केले आहेत.

3. भारतीय संत साहित्यातील मनोविज्ञान

भारतीय संतसाहित्य केवळ अध्यात्मवादी नसून त्यात मानवी भावनांचा, संघर्षांचा, जीवनदृष्टीचा सखोल अभ्यास आहे. संत परमार्थाचे उपदेश देताना मानवी स्वभाव, मनोव्यथा, सामाजिक व नैतिक आव्हानांची जाणीव बाळगतात. संत तुकाराम, नामदेव, रामदास, ज्ञानेश्वर, एकनाथ यांच्या वाङ्मयात जीवनविषयक तात्त्विक चिंतनासोबतच मानसिक समाधानाचीही दिशा दिसते. ते मनाच्या नियंत्रणावर, श्रद्धेवर आणि भूतदयेवर भर देतात.यात महात्मा बसवेश्वर,श्री चक्रधर स्वामी,संत नामदेव,संत ज्ञानेश्वर,संत कबीर,संत एकनाथ, संत मन्मथ स्वामी यांचे विचार व्यक्त केले आहेत.९

4. नैसर्गिक आपत्तीत संत तुकाराम यांचे मनोविज्ञान

संत तुकाराम यांचे जीवनच एक आपत्तीपूर्ण कथा आहे — पंढरपूरच्या दुष्काळात त्यांचे घर उद्ध्वस्त झाले, पत्नीसह अनेक कुटुंबीय वारले, समाजाकडून उपेक्षा झाली. पण अशा क्लेशदायक अवस्थेत तुकारामांनी नामस्मरण, विठोबा भक्ती आणि अखंड हरिपाठ यांचा आधार घेतला. त्यांच्या अभंगांमध्ये "हे देवा, तुझ्या इच्छेशिवाय काही घडत नाही" ही मनोवृत्ती स्पष्ट दिसते. उदाहरणार्थ:

"हेचि दान देता ज्ञानेश्वरी, सुखेनि मरावे |

 आणि पुढे जन्म घेऊ नये"

या ओळीत आत्मसमर्पण आणि दैवावर असलेली श्रद्धा यातून एक स्थिर मानसिक अवस्था दिसते.

यात संत तुकाराम महाराज यांनी अनुभवलेला दुष्काल आणि महामारी,दु:क आणि संकटे स्वीकारण्याची दृष्टी,मरणाची अटलता, आपत्तीतील मनोधैर्य,विचारार्थ नियंत्रण, चित्त आणि मनाची स्थिरता, चंचल मनाचे स्वयं नियंत्रण, संकटकालीन सावधानता, संकटकालात मानसिक आधार,समाजाची मानसिकता, नैराश्य आणि आत्महत्या याविषयी विवेचन केले आहे.

5. नैसर्गिक आपत्तीत संत रामदास यांचे मनोविज्ञान

संत रामदास हे कर्मयोग आणि राष्ट्रभक्तीचे प्रतीक आहेत. त्यांनी दासबोध, मनाचे श्लोक या ग्रंथांमधून मानसिक शिस्त, धैर्य, संयम आणि स्थितप्रज्ञता शिकवली. संकटसमयी मन कोसळू नये, यासाठी ते म्हणतात:

"संकटात जो धीर सोडित नाही |

 तयास संकट काही भीत नाही ||"

त्यांच्या लेखनात आत्मबल, संयम आणि दृढनिश्चय यांचा मानसशास्त्रीय पाया आहे. आपत्तीसमयी भावनांवर ताबा ठेवणे, विवेकाने निर्णय घेणे आणि सामाजिक कर्तव्य निभावणे ही त्यांची शिकवण आजही प्रासंगिक आहे.यामध्ये संत रामदासाच्या कालातील नैसर्गिक आपत्ती,मृत्यूच्या भीतीची निरर्थकता,दु:क आणि संकटाची अटलता, मानसिक स्थैर्य आणि धैर्य,संयम आणि संतुलित विचार,सहकार्य आणि समर्पणभाव, सकारात्मक विचार, चिंता आणि भय,श्रध्देचे अधिष्ठान याविषयी सखोल माहिती दिली आहे.

6. कोरोना महामारीत मराठी संतांचे मनोविज्ञान

कोरोना काळात लॉकडाऊन, मृत्यू, अनिश्चितता, वेगळेपण आणि भय यांमुळे मानसिक आरोग्यावर मोठा परिणाम झाला. याकाळात अनेकांनी संत वाङ्मयाकडे मानसिक आधारासाठी वळण घेतले. तुकारामांचे भक्तीमार्ग, रामदासांचे धैर्यशील जीवन, ज्ञानेश्वरांचे विश्वात्मा दृष्टिकोन आणि एकनाथांचे समत्वभाव हे तत्व आजच्या आपत्तीकाळातही उपयुक्त ठरले.

लोकांनी "राम कृष्ण हरि", "पांडुरंग" यांचे नामस्मरण अधिक प्रमाणात करायला सुरुवात केली. काही ठिकाणी ऑनलाइन हरिपाठ, दासबोध वाचन, मनाचे श्लोक पठण यामुळे मानसिक समाधान आणि सहकार्याची भावना निर्माण झाली.


निष्कर्षात्मक समारोप 

मराठी संतांचे मनोविज्ञान हे संकट काळात धीर, श्रद्धा, समर्पण आणि सेवा या तत्त्वांवर आधारलेले आहे. त्यांनी आपल्या वाङ्मयातून नैसर्गिक आपत्तींसारख्या प्रसंगातही कसे स्थिर राहावे, हे शिकवले. अशा संतविचारांचा आधार घेतल्यास, कोणतीही आपत्ती मानसिक शांततेने आणि आत्मबलाने पार करता येते. डाक्टर प्रीतमकुमार बेदरकर ही या पुस्तकाबद्धल आपले विचार व्यक्त केले आहेत संत साहित्य हे शाश्वत स्वरूपाचे आहे,अनेक प्रश्नांची उत्तरे भारतीय साहित्यात सापडतात. संत साहित्या तील अनेकविध संदर्भानी समृद्ध बनलेला हां ग्रंथ मराठी वाचक, अभ्यासक आणि संशोधकांना संत साहित्याकडे पाहण्याची एक नवी दृष्टी देतो. या पुस्तकात एकशे दहा पृष्ठे आहेत.पुस्तकाचे मुखपृष्ठ संतोष धोंगडे यांनी बनविले आहे.या पुस्तकाचे प्रकाशन स्नेह वर्धन प्रकाशन पुणे यांनी केले आहे. वाचकांना आग्रह आहे की या पुस्तकाचे जरूर वाचन करावे व आपल्या संग्रही ठेवावी अशी अमूल्य कृती आहे.

                                 ज्ञानोबा देवकत्ते 

                                 छत्रपति संभाजीनगर.

                                मोबाइल नंबर-9527381007





शुक्रवार, 13 जून 2025

नैसर्गिक आपदा में संतों का मनोविज्ञान

 

नैसर्गिक आपदा में संतों का मनोविज्ञान


भूमिका:

नैसर्गिक आपदाएँ – जैसे भूकंप, बाढ़, सूखा, ज्वालामुखी, चक्रवात आदि – मानव जीवन को झकझोर देने वाली घटनाएँ होती हैं। ऐसे समय में अधिकांश लोग मानसिक रूप से टूट जाते हैं, भय, चिंता, और अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं। लेकिन एक वर्ग ऐसा भी होता है जो अत्यंत शांत, स्थिर और करुणामय बना रहता है – वह वर्ग है संतों का। संत, चाहे किसी भी धर्म या परंपरा के हों, आपदा के समय एक विशेष प्रकार की मानसिक स्थिति दर्शाते हैं जो आम जन से भिन्न होती है। इस लेख में हम नैसर्गिक आपदा के समय संतों की मानसिकता, उनके दृष्टिकोण, व्यवहार और मनोविज्ञान का विश्लेषण करेंगे।


संतों की मानसिकता का आधार:

संतों की मानसिकता सामान्य जन की मानसिकता से भिन्न होती है। उनके विचार, व्यवहार और अनुभूति एक दीर्घकालीन साधना, आत्मचिंतन और दार्शनिक दृष्टिकोण से पोषित होते हैं। वे जगत को ‘माया’ मानते हैं, शरीर को ‘नश्वर’ और आत्मा को ‘शाश्वत’। ऐसे विचार उन्हें नैसर्गिक आपदाओं में भी स्थिर, संतुलित और करुणा-युक्त बनाए रखते हैं।


1. वैराग्य और आत्म-नियंत्रण:

संतों का जीवन वैराग्य और आत्म-नियंत्रण पर आधारित होता है। वे भौतिक वस्तुओं से आसक्त नहीं होते, इसलिए जब आपदा में भौतिक संसाधन नष्ट होते हैं, तो वे मानसिक रूप से विचलित नहीं होते। उनका मन बाहर की वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मा में स्थिर होता है।

उदाहरण: जब 2004 की सुनामी आई, कई संतों ने अपने आश्रमों को राहत केंद्र में परिवर्तित कर दिया और स्वयं भोजन, दवाइयाँ बाँटते रहे, जबकि उनके आश्रमों को भी नुकसान हुआ था। वे दुखी नहीं हुए, बल्कि सेवा में लग गए।


2. करुणा और सेवा भाव:

संतों का मन दूसरों की पीड़ा में सहज रूप से द्रवित होता है। आपदा के समय वे केवल अपने लिए नहीं सोचते, बल्कि समाज की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानते हैं। यही कारण है कि आपदाओं में वे सबसे पहले पीड़ितों की सहायता के लिए सामने आते हैं।

उदाहरण: अन्ना हज़ारे, बाबा आमटे जैसे संतों ने आपदाओं के समय जन-सेवा का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा। बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों की सेवा के साथ-साथ बाढ़ पीड़ितों के लिए भी बड़े पैमाने पर राहत कार्य किए।


3. अस्थायित्व की स्वीकृति:

संत यह भलीभांति जानते हैं कि संसार और इसकी घटनाएँ क्षणभंगुर हैं। इस गहरी समझ के कारण वे आपदा को भी जीवन के प्रवाह का हिस्सा मानते हैं। वे इसे विधि का विधान मानकर स्वीकार करते हैं, न कि विरोध।

यह मानसिकता उन्हें मानसिक शांति देती है, क्योंकि वे प्रश्न नहीं करते – “ऐसा क्यों हुआ?”, बल्कि कहते हैं – “जो हुआ, वह ईश्वर की इच्छा से हुआ, इसमें भी कोई गूढ़ कारण होगा।”


4. धैर्य और मानसिक संतुलन:

संतों में धैर्य की अद्भुत क्षमता होती है। वे भय, क्रोध, दुख आदि मानसिक विकारों से ऊपर उठ चुके होते हैं। आपदा के समय जब चारों ओर भय और अराजकता फैली होती है, वे लोगों के लिए मानसिक स्थिरता का स्तंभ बनते हैं।

उदाहरण: संत तुकाराम हों या संत एकनाथ, भले ही उनके व्यक्तिगत जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उन्होंने कभी मानसिक संतुलन नहीं खोया। वे हमेशा शांत और ईश्वर में समर्पित बने रहे।


5. ध्यान और साधना की शक्ति:

संत ध्यान और साधना के द्वारा अपने मन पर नियंत्रण रखते हैं। आपदा के समय यह ध्यान उन्हें आंतरिक बल देता है। वे अपने मन को बाहरी परिस्थितियों से विचलित नहीं होने देते।

आधुनिक विज्ञान भी अब यह स्वीकार कर रहा है कि ध्यान और प्राणायाम मानसिक स्वास्थ्य के लिए वरदान हैं। संतों की साधना उन्हें इस मानसिक शक्ति से युक्त करती है जिससे वे किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होते।


6. प्रेरणा का स्रोत बनना:

आपदा के समय समाज में प्रेरणा की अत्यंत आवश्यकता होती है। संत अपने आचरण, वाणी और सेवा से लोगों को आशा, धैर्य और संयम का पाठ पढ़ाते हैं। वे अपने उदाहरण से दिखाते हैं कि विषम परिस्थितियों में भी मनुष्यता और सेवा सर्वोपरि है।

महात्मा गांधी एक ऐसे संत थे जिन्होंने विश्व युद्धों और भारत के विभाजन जैसी आपदाओं में भी अपने अहिंसक और करुणामय दृष्टिकोण से लोगों को संयमित रखा।


7. नव-सृजन की भावना:

आपदा के बाद पुनर्निर्माण और समाज को फिर से खड़ा करने की आवश्यकता होती है। संतों का मन नकारात्मकता में नहीं उलझता, वे आशावादी दृष्टिकोण रखते हैं और कहते हैं – “अब हमें नया आरंभ करना है।”

ओशो जैसे संतों ने भी आपदाओं को चेतना की आंख खोलने वाली घटनाएँ बताया। वे कहते हैं कि हर संकट एक अवसर है – आत्मनिरीक्षण और पुनर्निर्माण का।


8. धार्मिक आस्था और आंतरिक शक्ति का संचार:

संत आपदा के समय धार्मिक विधियों, भजन, कीर्तन, प्रवचन आदि के माध्यम से लोगों के मन में ईश्वर की आस्था बनाए रखते हैं। यह आस्था संकट की घड़ी में आंतरिक शक्ति का संचार करती है।

वेदों और उपनिषदों में वर्णित मंत्रों का उच्चारण, ध्यान और सामूहिक प्रार्थना – यह सब संतों द्वारा संचालित किया जाता है ताकि भयभीत समाज में मानसिक स्थिरता बनी रहे।


9. मृत्यु बोध और स्वीकार्यता:

संत मृत्यु को जीवन का अंत नहीं मानते, बल्कि एक अवस्था परिवर्तन मानते हैं। इस बोध के कारण वे आपदा में मृत्यु को लेकर भयभीत नहीं होते। जब चारों ओर मृत्यु का तांडव हो रहा होता है, तब भी संत शांत भाव से उसे स्वीकार करते हैं।

संत कबीर ने कहा था –
"जो उभरा सो डूबेगा, जो आया सो जाएगा।"
इस दृष्टिकोण से वे जीवन-मृत्यु दोनों को समभाव से देखते हैं।


10. सामूहिक चेतना का जागरण:

आपदा संतों के लिए केवल एक भौतिक घटना नहीं होती, वे इसे एक चेतावनी के रूप में देखते हैं। उनका यह दृष्टिकोण होता है कि शायद मानव समाज प्रकृति से बहुत दूर चला गया है, और यह समय है आत्ममंथन का। वे समाज को प्रकृति के साथ समरसता में जीने की प्रेरणा देते हैं।


निष्कर्ष:

नैसर्गिक आपदा के समय संतों का मनोविज्ञान समाज के लिए एक प्रकाश स्तंभ के समान होता है। वे न केवल स्वयं मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं, बल्कि अन्य लोगों को भी मानसिक संबल, प्रेरणा और सेवा भाव प्रदान करते हैं। उनका जीवनदर्शन, सेवा भावना, वैराग्य और आध्यात्मिक ज्ञान उन्हें विषम परिस्थितियों में भी मजबूत बनाए रखता है। वर्तमान समय में, जब मानवता विभिन्न प्रकार की आपदाओं से जूझ रही है, ऐसे संतों का मार्गदर्शन और उनकी मनोवृत्ति हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है।


संभावित उपसंहार:

"जब प्रकृति क्रुद्ध होती है, तब केवल भौतिक संरचनाएँ नहीं, मानसिक संकल्प भी टूटते हैं। ऐसे समय में संतों का मनोविज्ञान – जो आत्म-शांति, करुणा, सेवा और समर्पण से युक्त होता है – समाज को न केवल आपदा से उबारने में मदद करता है, बल्कि उसे एक नया दृष्टिकोण भी देता है। संत अपने जीवन से सिखाते हैं कि संकट चाहे जितना भी बड़ा क्यों न हो, यदि मन स्थिर और श्रद्धा से युक्त हो, तो हर आपदा से उबरा जा सकता है।"



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